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________________ सम्राज प्राचीन चरित्रकोश सरमा था, जिससे इसे मरीचि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था पम के अनुसार, विभीषण के राज्यकाल में राम एवं (भा. ५.१५.१४)। सीता पुनः एकबार लंका गये थे, जिस समय उन्होंने २. चक्रवर्ति राजा की एक सामान्य उपाधि, जो समस्त लंका में स्थित वामनमंदिर का उद्घाटन किया था। अपनी भारतवर्ष को जीतनेवाले राजा को प्राप्त होती थी (वायु.. लंका भेट में सीता ने बड़े ही सौहार्द से इसकी पूछताछ की ४५.८६ )। पौराणिक साहित्य में हरिश्चंद्र एवं कार्तवीय थी ( पन. सृ. ३८)। राजाओं के लिए यह उपाधि प्रयुक्त की गयी है (वायु. २. कश्यप ऋषि की पत्नी, जो दक्ष प्रजापति एवं ८८.११८; ब्रह्मांड. ३.१६.२३; चक्रवर्तिन् देखिये) असिनी की कन्या थी। संसार के समस्त हिंस्त्र पशु वैदिक साहित्य में--ऋग्वेद काल में राजा (राजन् ) की इसीके ही संतान माने जाते हैं (भा. ६.६.२६ )। अपेक्षा शक्ति में श्रेष्ठ शासक को 'सम्राज्' कहा जाता था | सरमा देवशुनी-देवलोक की एक कुतिया, जो इंद्र (ऋ. ३.५५.६०; वा. सं. ५.३२) शतपथ ब्राह्मण में की दूती मानी जाती थी। यम के श्याम एवं शबल नामक वाजपेय यज्ञ करनेवाले राजा को 'सम्राज'कहा गया है (श. दो. कुत्ते इसीके ही पुत्र थे, जिस कारण वे 'सारमेय' बा. ५.१.१.१३) । बृहदारण्यकोपनिषद् में राजा के उपाधि (सरमा के पुत्र ) नाम से सुविख्यात थे। संसार के के नाते 'सम्राज' का निर्देश प्राप्त है (बृ. उ. ४.१.१)। समस्त ' सारमेय' (कुत्ते ) भी इसीके ही संतान माने सयष्टव्य-रैवत मनु के पुत्रों में से एक। | जाते हैं। सरघा--बिंदुमत् राजा की पत्नी, जो मधु र जा | वैदिक साहित्य में--ऋग्वेद में 'इंद्र के दत के रूप में की माता थी ( भा. ५.१५.१५)। | इसका निर्देश प्राप्त है (ऋ. १८.१०८) । यद्यपि ऋग्वेद सरधा-(स्वा. प्रिय.) प्रियव्रतवंशीय बिंदुमत् राजा | में कहीं भी इसे स्पष्ट रूप से कुतिया नहीं कहा गया है, का नामांतर (बिंदुमत्. देखिये)। फिर भी उत्तरकालीन वैदिक साहित्य में, एवं यास्क के सरण्यू-सूर्य की पत्नी ('ऋ. १०.१७.२)। 'निरुक्त' में इसे 'देवों की कुतिया' ( देवशुनी) ही सरभभेरुंड-एक पापी पुरुष, जिसकी कथा गीता- माना गया है। ..पटन का माहात्म्य कथन करने के लिए पद्म में प्राप्त है। इंद्रदौत्य-पणि नामक कृपण लोगों का धन ढूंढ (पद्म. सृ. ३८)। . निकालने के लिए इंद्र ने अपने दूत एवं गुप्तचर सरमा .. सरमा--विभीषण की पत्नी, जो ऋषभ पर्वत पर को पणियों के निवासस्थान में भेजा था (ऋ. १०.१०८. निवास करनेवाले शैलूष नामक गंधर्व की कन्या थी १-२)। पणियों ने वैदिक ऋत्विजों की गायों को पकड़ .( वा. रा. उ. १२.२४-२७ )। कर, उन्हें रसा नामक नदी के तट पर स्थित कंदरों में . जन्म--मानससरोवर के तट पर इसका जन्म हुआ। छिपा रखा था । सरमा ने उन गायों का पता लगाया, इसके जन्म के समय सरोवर में बाढ आने के कारण, | एवं इंद्र के दूत के नाते उनकी माँग की। किन्तु उन्हें उसका पानी लगातार बढ़ रहा था। उस समय इसकी देने से इन्कार कर, पणियों ने सरमा को कैद कर दिया । माता ने घबरा कर बढ़ते हुए पानी से प्रार्थना की, 'सर अन्त में इन्द्र ने सरमा की एवं पणियों के द्वारा बन्दी मा' (आगे मत बढना)। | की गयी गायों की मुक्तता की। इसकी माता की उपर्युक्त प्रार्थना के कारण, सरोवर इंद्र के दूत के नाते इसका पणियों से किया संवाद का पानी बढ़ना बंद हुआ। इस कारण, अपनी नवजात | ऋग्वेद में सरमा-पणि संवाद' नाम से प्राप्त है (ऋ. कन्या का नाम उसने 'सरमा' ही रख दिया। १०८.२, ४, ६:८; १०, ११)। बृहद्देवता में भी इस सीता को सान्त्वना--रावण के द्वारा सीता का हरण संवाद का निर्देश प्राप्त है (बृहद्दे. ८.२४.३६ )। किये जाने पर, उसके देखभाल का कार्य अशोकवन में | उत्तरकालीन वैदिक साहित्य में भी सरमा-पणि कथा इस पर ही सौंपा गया था। यह शुरू से ही सीता से | अधिक विस्तृत स्वरूप में दी गयी है। सहानुभूति रखती थी। इस कारण यह सीता को रावण पौराणिक साहित्य में--इस साहित्य में इसे कश्यप एवं के सारे षड्यंत्र समझाकर उसे सांत्वना देती थी । इसी क्रोधा की कन्या कहा गया है (ब्रह्मांड, ३.७.३१२)। सांत्वना से सीता का भय कम होता था, एवं इसका यह इंद्र की दूती थी, एवं सारे दानव इससे डरते थे धीरज बँधा जाता था (विभीषण देखिये )। (भा. ५.२४.३०)। १०२३ AMA
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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