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________________ सन्नति प्राचीन चरित्रकोश सप्तर्षि सन्नति-ब्रह्मदत्त (प्रथम) राजा की तपस्विनी पत्नी, सप्तग आंगिरस--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. जिसने अपने पति के साथ मानससरोवर में तपस्या की | ४७)। इसके द्वारा विरचित सूक्त के अंतिम ऋचा में थी (पद्म. सु. १०)। | इसने स्वयं को अंगिरस्कुलोत्पन्न (आंगिरस) बताया है । २. (सो. क्षत्र.) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु के ___ सप्तजित्-एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों अनुसार अलके राजा का पुत्र था। भागवत में इसे संतति में से एक था (मत्स्य. ६.१९)। कहा गया है, एवं इसके पत्र का नाम सुनीथ दिया गया। सप्तति--(मौर्य. भविष्य.) एक राजा, जो मत्स्य के है (भा. ९.१७.८)। अनुसार दशरथ राजा का पुत्र था। सप्तपाल--युधिष्ठिरसभा में उपस्थित एक ऋषि (म. सन्नतिमत्-(सो. द्विमीढ.) एक राजा, जो स. ४.१२)। पाठभेद (भांडारकर संहिता)-'सत्यपाल'। . भागवत, विष्णु, मत्स्य एवं वायु के अनुसार सुमति राजा सप्तराच--वरुण के पुत्रों में से एक। . का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम कृति था (भा. ९. सप्तवार-गरुड की प्रमुख संतानों में से एक २१.२८)। (म. उ. )। सन्नतेयु--(सो. पूरु.) एक राजा, जो पूरु राजा का सप्तर्षि--सात ऋषियों का एक समुदाय, जिनका निर्देश पौत्र, एवं रोद्राश्व राजा का पुत्र था। इसकी माता का ऋग्वेद सर्वानुक्रमणी, महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है। नाम मिश्रकेशी अप्सरा था (म. आ. ८९.१०)। इसने पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट मन्वन्तरों की तालिका में हर इंद्रको परास्त किया था। इसके निम्नलिखित भाई थे:-- एक मन्वन्तर के लिए विभिन्न सप्तर्षि बताये गये हैं। १. रुचेयु; २. पक्षंयु; ३. कृकणेयु; ४. स्थंडिलेयु; ५. | इस प्रकार चौदह मन्वन्तरों के लिए ९८ सप्तर्षियों की वनेयु; ६. जलेयु; ७: तेजेयु; ८. सत्येयु; ९. धर्मेयु (म. | नामावलि पुराणों में दी गयी है (मनु आदिपुरुष आ. ८९.१०)। पाठभेद (भांडारकर संहिता -'संनतेपु'। देखिये)। विभिन्न मन्वन्तरों के सप्तर्षियों के संबंध में सन्नादन--रामसेना का एक वानर (वा. रा. यु. | विभिन्न पुराणों में भी एकवाक्यता नहीं है । इस प्रकार २७.१८)। पौराणिक साहित्य में अनेकानेक सप्तर्षियों के नाम प्राप्त सन्निवेश-त्वष्ट प्रजापति एवं रचना के पुत्रों में से होते हैं। एक (भा. ६.६.४४ )। सप्तर्षि-कल्पना का विकास-पौराणिक साहित्य में - सन्निहित--एक अग्नि, जो मनु का तृतीय पुत्र था मन्वंतर कल्पना के विकास के साथ साथ सप्तर्षि कल्पना का (म. व. २११.१९)। विकास हुआ, जो विभिन्न मन्वन्तरों के मनु, देव,इंद्र, अवतार . सपत्य--एक आचार्य, जो ब्रह्मांड के अनुसार व्यास आदि के साथ मन्वन्तरों के प्रमुख अधियंता-गण माने की यजुःशिष्यपरंपरा में से याज्ञवल्क्य का वाजसनेय गये हैं। इन सप्तर्षियों की संख्या प्रारंभ में केवल सात ही शिष्य था। थी, बल्कि आगे चल कर उनमें अनेकानेक नये नाम समाविष्ट किये गये। इससे प्रतीत होता है कि, उत्तरसपरायण--एक आचार्य, जो वायु के अनुसार कालीन सप्तर्षि आद्य सप्तर्षियों के वंशज थे। विभिन्न व्यास की यजुः शिष्यपरंपरा में से याज्ञवल्क्य का वाज मन्वन्तरों में प्रजोत्पादन का कार्य इन ऋषियों पर निर्भर सनेय शिष्य था। सपौल--एक राजा, जो उन्तीसवें युगचक्र में उत्पन्न रहता था ( ब्रह्मांड, ३६; ह. वं. १.७; मार्क.५०, विष्णु. होनेवाले देवापि राजा का पुत्र माना गया है (सुवर्चस् ३.१, ब्रह्म. ५; मनु आदिपुरुष देखिये)। ९. देखिये)। ___ पौराणिक साहित्य में इन्हें द्वापरयुग के ऋषि कहा गया सप्तकर्ण प्लाक्षि-एक तत्त्वज्ञ आचार्य, जो प्लक्ष नामक | है, एवं इनका निवासस्थान शनैश्चर ग्रह से एक लाख आचार्य का पुत्र था (तै. आ. १.७.३)। योजन दूरी पर बताया गया है (वायु. ५३.९७; विष्णु. सप्तकेत-ब्रह्मसावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक।। २.७.९)। इनकी कालगणना मनुष्यप्राणियों से विभिन्न सप्तकृत्-एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१. | थी, एवं इनके एक वर्ष में मानवीय ३०३० वर्ष समाविष्ट ३६)। | होते थे।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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