SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1023
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संश्रवस् प्राचीन चरित्रकोश सगर द्वय! संश्रवस् संवर्चनस्-एक आचार्य, जिसने तुमिंज वंशावलि भी दी गयी है (ब्रह्मांड. ३.५.३८-३९)। ३. नामक आचाय के साथ यज्ञप्रक्रिया के संबंध में वाद- विष्णु में--आयुष्मत् , शिबि एवं बाष्कल (विष्णु. १. विवाद किया था। सत्र में होता के द्वारा किये जानेवाले | २१.१;); ४. भागवत में--पंचजन (भा. ६.१८.१३); इडोपाह्वान के संबंध में यह चर्चा हुई थी (तै. सं. १.७. ५. मत्स्य में--इस ग्रंथ में इसके पुत्रों का सामूहिक नाम २.१)। 'निवातकवच' दिया गया है, एवं उन्हें देव, गंधर्व एवं संश्रुत्य--विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक। उरग आदि के लिए अवध्य बताया गया है (मत्स्य, एक गोत्रकार के नाते भी इसका निर्देश प्राप्त है (म. अनु. ६.९.२८-२९)। ४.५५)। २. जालंधरसेना का एक सैनिक । संस्कृति--(सो. क्षत्र.) एक राजा, जो भागवत के सकतिपुत्र--एक आचार्य, जो वायु के अनुसार अनुसार जयसेन राजा का, तथा विष्णु एवं वायु के अनुसार व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से लौगाक्षि नामक आचार्य जयत्सन राजा का पुत्र था। विष्णु एवं वायु में इसे संकृति का शिष्य था। ब्रह्मांड में इसे 'सकोतिपत्र' कहा गया है। कहा गया है। सकौगाक्षि एवं सकौवाक्षि–भृगुकुलोत्पन्न गोत्रकारसंहत (सो. सह.)--एक राजा, जो सांची (सांहजनि)। नगरी का संस्थापक माना जाता है। भागवत, विष्णु सक्तुप्रस्थ-उच्छवृत्ति नामक ब्राह्मण का नामान्तर एवं वायु में इसे क्रमशः 'सोहं जि,' 'साहजि' एवं (उच्छवृत्ति देखिये)। 'संजेय' कहा गया है। हरिवंश में इसे 'साहजि' कहा २. एक आचार्य, जो पूषमित्र गोभिल नामक आचार्य गया है (ह. वं. १.३३:४; साहजि देखिये)। मत्स्य में का शिष्य था (वं. ब्रा. ३)। इसे कुंति राजा का पुत्र कहा गया है (मत्स्य. ४३.९)। । संहतागद--ऐरावतकुल का एक नाग, जो जनमेजय सगर-(सू. इ.) एक सुविख्यात इक्ष्वाकुवंशीय के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१०)। । राजा, जो बाहु अथवा बाहुक राजा का पुत्र था। इसकी संहताश्व-- इक्ष्वाकुवंशीय बर्हणाश्व राजा का माता का नाम कालिंदी अथवा केशिनी था। भागवत नामान्तर। एवं पद्म में इसे क्रमशः 'फल्गुतंत्र,' एवं 'गर' राजा का पुत्र संहिता-धृतराष्ट्र की द्वितीय पत्नी, जो गांधारराज कहा गया है, जो संभवतः बाहुराजा के ही नामान्तर थे। सुबल की कन्या एवं गांधारी की कनिष्ठ भगिनी थी। यह पराक्रमी सत्यधर्मी, सत्यवक्ता, दानशूर एवं विचारज्ञ | था। इसके कई सिक्के मोहेंजोदड़ो के उत्खनन में प्राप्त राजा का प्रपौत्र, एवं मनस्यु राजा का पुत्र था (म. आ. ८९.७)। इसकी माता का नाम सौवीरी था। जन्म-इसका जन्म अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् संहति--अंगिराकुलोत्पन्न एक मंत्रकार । हुआ था । बाहुराजा की मृत्यु के समय उसकी पत्नी के शिनी, संडाद--एक अनुर, जो हिरण्यकशिपु का और्व ऋषि के आश्रम में गर्भवती थी। उस समय बाहु राजा द्वितीय पुत्र एवं प्रह्लाद का छोटा भाई था। इसके अन्य की अन्य पत्नियों ने केशिनी को सवतीमत्सर से प्रेरित हो भाइयों के नाम प्रह्लाद, अनुहाद, शिबि एवं बाष्कल थे कर विष दिया । इस विष के कारण, यह सात वर्षों तक (म. आ.८९.१७-१८)। इसकी माता का नाम कयाधु अपनी माता के गर्भ में रहा, एवं जन्म के पश्चात् यह एवं पत्नी का नाम कृति था । मृत्यु के पश्चात् यह वरुण- | दुर्बल ही रहा । अपनी माता की गर्भ में जो विष इसके शरीर सभा में रह कर वरुण की उपासना करने लगा (म. स. | में उतर गया, इसके कारण इसे सगर विषयुक्त नाम प्राप्त ९.१२) । पाठभेद - प्रह्लाद। | हुआ। और्व ऋषि की कृपा के ही कारण, अपनी सापत्न पुत्र-महाभारत एवं पुराणों में इसके पुत्रों के नाम माता के विषप्रयोग से यह बच सका। विभिन्न प्रकार से दिये गये है :-१. महाभारत में-इस शिक्षा-इसके क्षत्रियोचित सारे संस्कार और्व ऋषि ने ग्रंथ में मद्रदेश का सुविख्यात राजा शल्य इसी के अंश किये, एवं इसे भार्गव नामक अग्न्यस्त्र उसीने ही प्रदान से उत्पन्न कहा गया है (म. आ. ६१.६); २. ब्रह्मांड | किया (विष्णु. ४.४)। च्यवन ऋषि ने भी इसे अनेकामें-जंभ, बाष्कल, कालनेमि, शंभु । इस पुराण में इसकी नेक अस्त्रशस्त्रों की जानकारी दी थी। प्रा. च. १२६] १००१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy