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सगर
प्राचीन चरित्रकोश
संकृति
पराक्रम--उपरोक्त अस्त्रों की सहायता से इसने ब्रह्मांड के अनुसार, इसकी पत्नी प्रभा को पुत्र के रूप हैहय तालजंघ राजा का नाश कर अपना राज्य पुनः प्राप्त | में एक मांसखंड उत्पन्न हुआ था, जिससे आगे चल कर, किया। पश्चात् इसने यवन, शक, हैहय, बर्बर आदि लोगों | और्व ऋषि की कृपा प्रसाद से साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए को परास्त किया । किन्तु अपने गुरु वसिष्ठ की सलाह | थे (ब्रह्मांड. ३.४८)।। से उनका वध न कर, एवं उन्हें केवल विरूप बना कर आधुनिक अभ्यासकों के अनुसार, सगर राजा के साठ छोड़ दिया। ये लोग आगे चल कर म्लेंच्छ एवं ब्रात्य | हज़ार पुत्रों के उपर्युक्त कथाभाग में इसके पुत्रों का नहीं, लोग बन गये (भा. ९.८)।
बल्कि अयोध्या राज्य की इसकी प्रजाजनों की ओर संकेत ___ अश्वमेध यज्ञ-एक बार इसने अश्वमेध यज्ञ किया, किया गया है, जो इसके राज्य में उत्पन्न हुए अकाल के जिस समय इसका अश्वमेधीय अश्व इंद्र ने चुरा लिया। | कारण मृत हुए । आगे चल कर इसके पुत्र असमंजसू के आगे चल कर यह अश्व कपिलऋषि के आश्रम के पास प्रपौत्र भगीरथ ने इसके राज्य में गंगा नदी को ला कर, इंद्र ने छोड़ दिया। इसके साठ हजार पुत्रों ने अश्वमेधीय इसका राज्य आबाद बना दिया। इस प्रकार भगीरथ के अश्व के लिए पृथ्वी, स्वर्गलोक, एवं पाताल हूँढ डाले। कारण, इसकी प्रजा को नवजीवन प्राप्त हुआ ( भगीरथ ढूँढते-ढूँढते अपना अश्व कपिलऋषि के आश्रम के पास देखिये)। मिलते ही, उन्होंने इस अश्व के चोरी का इल्जाम कपिल
सागरोपद्वीप-इसके पुत्र जब इसका अश्वमेधीय अश्व ऋषि पर लगाया। इस झुठे इल्जाम के कारण, कपिल ऋषि
ढूँढ रहे थे, उस समय उन्होंने जंबुद्वीप के समीप के ने क्रुद्ध हो कर उन साठ हज़ार सगरपुत्रों को जला कर
कर प्रदेश से आठ उपद्वीप उत्खनन कर के बाहर निकाले । भस्म कर दिया। इस प्रकार इसके पुत्रों में से हृषिकेतु,
ये ही द्वीप आगे चल कर 'सागरोपद्वीप ' नाम से प्रसिद्ध सुकेतु, धर्मरथ, पंचजन एवं अंशुमत् नामक केवल पाँच ही
| हुए (भा. ५.१९.२९-३०)। पुत्र बच सके। उन्होंने इसका अश्वमेधीय अश्व अयोध्या में लाया, एवं तदुपरांत इसने अपना अश्वमेध यज्ञ पूर्ण किया।
समालव--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
संकट-धर्म एवं ककुम के पुत्रों में एक (भा, परिवार--इसकी निम्नलिखित दो पत्नियाँ थी:१. केशिनी (शैब्या, भानुमती), जो विदर्भकन्या थी,
संकर गौतम--एक आचार्य, जो अर्यमराध गौतम, एवं जो इसकी ज्येष्ठ पत्नी थी (वायु. ८८.१५५);
एवं पूषमित्र गोभिल नामक आचार्य का शिष्य था। इसके २. प्रभा (सुमति), जो यादवराजा अरिष्टनेमि की कन्या
शिष्य का नाम पुष्पयशस् औदवजि था (वं. बा. ३.)। थी (मत्स्य. १२.४२०)। ।
__संकल्प--धर्म एवं संकल्पा के पुत्रों में से एक। यह __पुत्र-(१) केशिनीपुत्र- उपर्युक्त पत्नियों में से
उदात्त जीवनहेतु का मानवीकरण प्रतीत होता है । इसके केशिनी से इसे असमंजस् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो
पुत्र का नाम काम था (भा. ६.६.१०.)। इसका वंशकर्ता एवं इसके पश्चात् अयोध्या नगरी का
___संकल्पा-दक्ष प्रजापति की एक कन्या, जो धर्म ऋषि राजा बन गया (वायु. ८८.१५७); (२) प्रभापुत्र--प्रभा
की दस पत्नियों में से एक थी। इसके पुत्र का नाम को साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए, जो कपिल ऋषि के शाप
| संकल्प था ( भा. ६.६.४)। के कारण दग्ध हो गये।
___ संकील-एक मंत्रकार, जो वैश्य जाति में उत्पन्न हुआ इसके साठ हजार पुत्रों के जन्म से संबन्धित एक
| था (ब्रह्मांड. २.३२.१२१; मत्स्य. १४५.१३६)। चमत्कृतिपूर्ण कथा महाभारत में प्राप्त है। और्व ऋषि के आश्रम में पुत्रप्राप्ति के लिए तपस्या करने पर, इसकी संकु-कुकुर वंशीय शंकु राजा का नामान्तर ( शक. पत्नी प्रभा को एक तुंबी उत्पन्न हुई। यह उसे फेंक देना | १. देखिये)। चाहता था, किन्तु आकाशवाणी के द्वारा मना किये जाने | संकुसुक यामायन--एक वैदिक सूक्तदृष्टा (ऋ. पर इसने उस तुंबी के एक एक बीज निकाल कर साठ | १०.१८)। हजार घुतपूर्ण कलशों में रख दिये, एवं उनकी रक्षा के संकृति--एक क्षत्रोपेत ब्राह्मण, जो अपने तपस्या के लिए धायें नियुक्त की । तदुपरान्त उन कुंभों से इसके | कारण अंगिरस् कुल का गोत्रकार, एवं मंत्रकार बन गया साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए (म. व. १०४.१७; १०५.२)।। (ब्रह्मांड. २.३२.१०७; गुरु २. देखिये)।
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