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श्रुष
प्राचीन चरित्रकोश
श्वेत
'वाय' एवं 'काश्यप' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। श्रीमत्य-एक आचार्य (श. बा. १०.४.५.१)। इसके 'श्रुष' नाम का सही पाठ संभवतः 'शूष' ही होगा। 'श्रुमत् ' का वंशज होने के कारण, इसे यह नाम प्राप्त
श्रष्टि आंगिरस--एक सामद्रष्टा आचार्य (पं. ब्रा. | हुआ होगा। १३.११.२१-२३)।
__श्वफल्क-(सो. यदु. वृष्णि. ) एक पुण्यश्लोक
यादव राजा, जो वृष्णि राजा का पुत्र, एवं चित्रक राजा श्रुटिगु काण्व-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.५१)।
का ज्येष्ठ भाई था। मत्स्य एवं पद्म में इसे 'जयंत' कहा इसके सूक्त में निम्नलिखित आचार्यों के साथ इसका निर्देश
गया है। प्राप्त है :--१. सांवरणि मनु; २. नीपातिथि: ३. मेध्या
___ एक बार काशी देश में बारह वर्षों तक वर्षा न होने से तिथि (ऋ. ८.५१.१)। पार्षद्वाण राजा के द्वारा प्रस्कण्व
अकाल पड़ गया । उस समय यह सहज ही काशी देश नामक आचार्य को विपुल धन दिये जाने का निर्देश इसके
जा पहूँचा । इसके वहाँ जाते ही, वृष्टि हो कर अकाल नष्ट सूक्त में प्राप्त है (ऋ. ८.५१.२)।
हुआ। इस कारण इसे पुण्यशील मान कर काशिराज ने श्रेणिमत--गोशृंग पर्वत पर निवास करनेवाला एक इसका सत्कार किया, एवं अपनी गांदिनी नामक कन्या राजा । भीमसेन ने अपने पूर्व दिग्विजय में, तथा सहदेव इसे विवाह में दे दी। ने अपने दक्षिण दिग्विजय में इसे परास्त किया था (म. परिवार-गांदिनी से इसे निम्नलिखित तेरह पुत्र उत्पन्न स. २७.१; २८.५)।
हुए :-१. अकर; २. आसंग; ३. सारमेयः ४. मृदुर; भारतीययुद्ध में यह पांडव पक्ष में शामिल था (म. ५. मृदुविद्ः ६. गिरिः ७. धर्मवृद्धः ८.सुवर्मन् ; ९. क्षेत्रोद्रो. २२.३०)। इसके रथ के अश्व पीले रेशमी वस्त्र के पेक्ष; १०. अरिमर्दन ; ११. शत्रुघ्नः १२. गंधमाह; वर्ण के थे, एवं उनका जीन स्वर्ण का था। उनके गलों में १३. प्रतिबाहु । स्वर्ण मालाएँ थी (म. द्रो. २२.३०)। पांडव सैन्य में इसकी उपर्युक्त पुत्रों के अतिरिक्त, इसकी सुचीरा नामक श्रेणी 'अतिरथि' थी। अंत में यह कौरवपक्षीय वीरों एक कन्या भी (भा. ९.२४.१६-१७)। के द्वारा मारा गया (म. द्रो. २२.३०)।
श्वसन--धृतराष्ट्रकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय २. कुमार देश का एक राजा, जिसे भीम ने अपने के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१७)। पूर्व दिग्विजय के समय जीता था (म. स. २७.१)। पाठभेद-'सुपेण'।
श्रेष्ठ--सुधामन् देवों में से एक ( ब्रह्मांड. २. श्वसृप-एक सैहिकेय असुर, जो हिरण्यकशिपु का ३६.२८)।
भतीजा था (मत्स्य. ६.२७)। श्रेष्ठभाज वासिष्ठ--कल्माषपाद सौदास राजा के श्वाजनि--एक वैश्य ( जै. उ. ब्रा. ३.५.२)। पुरोहित वसिष्ठ ऋषि का नामांतर (म. आ. १६७.१५ श्वात-एक राक्षस, जो कश्यप एवं ब्रह्मधना के पुत्रों १६८. २२; वसिष्ठ श्रेष्ठभाज् देखिये)।
में से एक था (ब्रह्मांड. ३.७.१८)। श्रोतन-कश्यपकुलोत्पन्न गोत्रकार ऋषिगण । पाठभेद श्वाहि--(सो. क्रोष्टु.) एक राजा, जो भागवत के -'श्रुतय।
अनुसार वृजिनवत् राजा का पुत्र, एवं रुशेकु राजा का
पिता था (भा. ९.२३.३१) । मत्स्य एवं वायु में इसे श्रोतृ-श्रावण माह का यक्ष (भा. १२.११.३७)। क्रमशः 'स्वाह' एवं 'खाहि' कहा गया है । २. आद्य देवों में से एक।
श्विन--एक जातिविशेष, जिनके राजा का नाम ऋषभ श्रोत्र--तुषित देवों में से एक (वायु. ६६.१८)। याज्ञतुर था (श. ब्रा. १२.८.३.७; १३.५.४.१५)।
श्रौतर्षि--देवभाग नामक आचार्य का पैतृक नाम गौरवीति नामक आचार्य इनका पुरोहित था। (ऐ. ब्रा. ७.१.६; श. ब्रा. २.४.४; तै. ब्रा. ३.१०.९. श्वेत--पाताल में रहनेवाला एक नाग, जो कश्यप एवं
कद्र के पुत्रों में से एक था (भा. ५.२४.२१) । श्रौतश्रवस--शिशुपाल राजा का मातृक नाम, जो २. एक शिवावतार, जो सातवें वाराह कल्पान्तर्गत वैवउसे उसके 'श्रुतश्रवा' नानक माता के कारण प्राप्त स्वत मन्वन्तर के प्रथन युगचक्र में उत्पन्न हुआ था। हुआ था (श्रुतश्रवा देखिये)।
| यह अवतार प्रभु व्यास के समकालीन माना जाता है।