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श्वेत
प्राचीन चरित्रकोश
श्वेतकेतु
७)।
हिमालय के छागल नामक शिखर में यह अवतीर्ण हुआ अन्त में ब्रह्मा ने इसे मुक्ति का मार्ग बताते हुए पुनः था। इसके शिखा धारण करनेवाले निम्नलिखित चार शिष्य | एक बार पृथ्वीलोक पर जाने के लिए कहा, एवं अगस्त्य थे :-१. श्वेत; २. श्वेत शिख; ३. श्वेताश्व; ४.श्वतलोहित | ऋषि के दर्शन से मुक्ति प्राप्त करने की आज्ञा दी । (शिव. शत. ४)।
तदनुसार यह पृथ्वीलोक में आया, एवं इसने अगस्त्य ३. एक शिवावतार, जो सातवें वाराह कल्पान्तर्गत | ऋषि के दर्शन से मुक्ति प्राप्त की ( वा.रा. उ. ७८, पन. वैवस्वत मन्वन्तर के तेइसवें युगचक्र में उत्पन्न हुआ था। सू. ३४)। यह कालंजर पर्वत पर अवतीर्ण हुआ था। इसके निम्न- । १६. एक राजा, जो अर्जुन एवं कौरवों के बीच हुआ लिखित चार शिष्य थे:-१. उशिक; २. बृहदश्व; 'उत्तर गोग्रहण' युद्ध देखने के लिए स्वर्ग से पृथ्वी ३. देवल; ४. कवि (शिव. शत. ५.)।
| पर अवतीर्ण हुआ था (म. भी. ९१.७*, पंक्ति. २८)।. ४. श्वेत नामक शिवावतार का शिष्य था (श्वेत. २. १७. एक शिवभक्त, जिसने शिवभक्ति कर मृत्यु देखिये)।
| पर विजय प्राप्त की थी (स्कंद. १.१.३२, ब्रह्म. ५९. ५. एक दिग्गज, जो क्रोधवशाकन्या श्वेता का पुत्र था। | ७४; लिंग. ३१)।
६. एक असुर, जो विप्रचित्ति असुर का पुत्र था। श्वेतकि--एक राजा, जो सदैव यज्ञकार्य में रत रहता इसने तारकासुर-युद्ध में भाग लिया था (मत्स्य. १७७. | था। इसने यज्ञकार्य में सिद्धि प्राप्त करने के लिए शिव की
कठोर तपस्या की थी। इसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर, ७. एक यक्ष, जो मणिवर एवं देवजनी के पुत्रों में से | शिव ने नामम बतिको
शिव ने दुर्वासस् ऋषि को इसका पुरोहित बनने की आज्ञा एक था ( वायु. ६९.१६९)।
दी । आगे चल कर दुर्वासस् की सहायता से इसने शत८. एक राजा, जो वष्मत् राजा के पुत्रों में से एक था।
| संवत्सरात्मक सत्र का आयोजन किया, एवं इस प्रकार बारह इसके ही नाम से इसके देश को 'श्वेतदेश' नाम प्राप्त
वर्षों तक निरंतर यज्ञकार्य कर अगणित पुण्य संपादन किया। हुआ था (वायु. ३३.२८)।
श्वेतकेतु औदालकि आरुणेय-एक सुविख्यात ९. मत्स्यनरेश विराट राजा के पुत्रों में से एक ।
| तत्त्वज्ञानी आचार्य, जिसका अत्यंत गौरवपूर्ण उल्लेख कोसलराजकन्या सुरथा इसकी माता थी। यह अत्यंत
शतपथ ब्राह्मण, छांदोग्य उपनिषद, बृहदारण्यक उपनिषद पराक्रमी था, एवं इसने भारतीय युद्ध में शल्य एवं
आदि ग्रंथों में पाया जाता है। यह अरुण एवं उद्दालक - मीष्म से युद्ध किया था । अन्त में यह भीष्म के द्वारा
नामक आचार्यों का वंशज था, जिस कारण इसे 'आरुणेय' मारा गया (म. भी. परि. १. क्र. ११८)।
एवं 'औद्दालकि ' पैतृक नाम प्राप्त हुए थे (श.बा.११. १०. एक धर्मनिष्ठ राजर्षि, जिसने अपने मृत हुए पुत्र २.७.१२, छां. उ. ५,३.१; बृ. उ. ३.७.१; ६.१.१)। को पुनः जीवित किया था (म. शां १४९.६३)।
कौषीतकि उपनिषद में इसे आरुणि का पुत्र, एवं ११. एक राजा, जिस की गणना भारतवर्ष के प्रमुख
गोतम ऋषि का वंशज कहा गया है (को. उ. १.१)। वीरों में की जाती थी।
छांदोग्य उपनिषद में इसे अरुण ऋषि का पौत्र, एवं उद्दालक . १२. स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.६३ )।
आरुणि का पुत्र कहा गया है (छां उ. ५.११.२)। १३. राम के पक्ष का एक वानर (वा. रा. यु. ३०)। कौसुरुबिंदु औद्दालकि नामक आचार्य इसका ही भाई था । १४. (सो. कोष्ट.) एक राजा, जो कर्म के अनुसार यह गौतमगोत्रीय था। आहृति राजा का पुत्र था।
निवासस्थान-अपने पिता आरुणि की भाँति यह १५. एक पापी राजा, जो अगस्त्य ऋषि के दर्शन से | कुरु पंचाल देश का निवासी था। अन्य ब्राहाणों के साथ मुक्त हुआ था। यह सुदेव राजा का ज्येष्ठ पुत्र था। यात्रा करते हुए यह विदेह देश के जनक राजा के दरबार
इसने अपनी उत्तर आयु में कठोर तपस्या की, किन्तु | में गया था। किन्तु उस देश में इसने कभी भी निवास अन्नदान का पुण्य कहीं भी संपादन नहीं किया। इस नहीं किया था (श. बा. ११.६.२.१)। कारण यद्यपि इसे स्वर्गप्राप्ति हुई, फिर भी यह सदैव । कालनिर्णय--यह पंचाल राजा प्रवाहण जैवल राजा क्षुधा एवं तृषा से तड़पता रहा । यहाँ तक कि, अपनी का समकालीन था, एवं उसका शिष्य भी था (बृ. उ. ६. ही माँस खाने लगा।.
१.१. माध्य; छां. उ. ५.३.१)। यह विदेह देश के जनक ९९५