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श्रावण
प्राचीन चरित्रकोश
श्रीमात
अपने अंधे माता पिता को अपने कंधे पर बिटा कर श्रीदामन--कृष्णसखा सुदामन् अथवा कुचैल का यह काशीयात्रा को जा रहा था। एक बार रात के समय, नामान्तर (भा. १०.१५-२० कुचल देखिये)। यह कुएँ में पानी लेने गया था, जिस समय इसके पानी श्रीदेव--(सो. क्रोष्ट. ) एक यादव राजा, जो कर्म के भरने की आवाज से इसे कोई वन्य जानवर समझ कर, अनुसार लोमपाद शाखा के बृहन्मेधम् राजा का पुत्र था। मृगयातुर दशरथ ने इस पर शरसंधान किया। दशरथ श्रीदेवा-देवक राजा की कन्या, जो वसुदेव की के बाण से इसको मृत्यु हो गयी।
पत्नियों में से एक थी। इसके कुल छः पुत्र थे, जिनमें शासी असावधानी से हा बहारत्या के कारण दशरथ | नंदक प्रमुख था (भा. ९.२४.२३; विष्णु. ४.१८)। विह्वल हो उठा, किन्तु श्रावण ने उसका समाधान किया। श्रीधर--एक ब्राह्मण, जिसकी कथा 'बालवत' का पश्चात् इसके माता-पिता ने दशरथ राजा को 'पुत्र पुत्र' माहात्म्य कथन करने के लिए पन में दी गयी हैं (पन, करते हुए मृत्यु पाने का शाप दिया, एवं वे स्वयं इसकी | व्र.५)। अकाल मृत्यु से दुःखी हो कर मृत हुए।
श्रीनिवास-तिरुपति में स्थित वेंकटेश का नामांतर श्रावस्त अथवा शावस्त--स. इ.) एक सुविख्यात (वेंकटेश देखिये)। स्कंद में इसकी पत्नी का नाम पग्रिनी इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो भागवत, विष्णु, वायु एवं मत्स्य बताया गया है। के अनुसार इंदु राजा का पौत्र, एवं युवनाश्व (द्वितीय) श्रीमानु--कृष्ण एवं सत्यभामा का एक पुत्र (भा. राजा का पुत्र था। महाभारत में इसे युवनाश्व (द्वितीय)| १०.६१.११)। राजा का पौत्र, एवं श्राव राजा का पुत्र कहा गया है, एवं श्रीमत्--एक राजकुमार, जो दत्तात्रेय राजा का पौत्र, इस प्रकार श्रावस्त इसका पैतृक नाम बताया गया है। एवं निमि राजा का पुत्र था। इसकी असामयिक मृत्यु होने
इसने श्रावस्ति ( श्रावस्त ) नगरी की स्थापना की. पर एक वर्ष के पश्चात् अमावस्या के दिन, इसके पिता एवं अपने उत्तर कोशल देश की राजधानी वहाँ बसायी
निमि ने इसका पहला वर्षश्राद्ध किया। (ह. वं. १११.२२ ब्रह्मांड. ३.६३.२८; वायु, ८८.
__ श्राद्धविधि--इस प्रकार निमि इस संसार में प्रचलित २००)।
श्राद्धविधि का आद्यजनक बन गया। आगे चल कर,
अत्रि ऋषि ने निमि के द्वारा प्रणीत श्राद्धविधि को स्वयंभु इसके पुत्र का नाम बृहदश्व (ब्रह्मदश्व) था (म. व.
के द्वारा प्रणीत बता कर उसका पुरस्कार किया, एवं मृत १९३.४)। इसके अन्य पुत्र का नाम वंशक अथवा
रिश्तेदारों के लिए श्राद्धविधि करने की प्रथा भारतवर्ष में वत्सक था।
सर्वत्र प्रचलिन हुई (म. अनु. ९१:१-२१)। इसका राज्यकाल राम दाशरथि के पूर्वकाल में पचास
महाभारत में इसका वंशक्रम निम्न प्रकार दिया गया पीढियाँ माना जाता है । राम दाशरथि के कनिष्ठ पुत्र लव है:-स्वयंभु-अत्रि-दत्तात्रेय-निमि-श्रीमत् । ने उत्तर कोसल देश की राजधानी अयोध्या नगरी से
गरा स श्रीमती--संजय राजा की कन्या दमयन्ती का हटा कर, वह पुनः एक बार श्रावस्ति नगरी में बसायी।
| नानान्तर (दमयन्ती २. देखिये )। पौराणिक साहित्य में इस कारण अयोध्या नगरी उजड़ गयी, जो आगे चल
इसके संबंध में एक चमत्कृतिपूर्ण कथा दी गयी है। एक कर लव के ज्येष्ठ बन्धु कुश ने पुनः एक बार बसायी
बार इसके प्रति नारद एवं उसके मित्र पर्वत को धोखा (रघु. १६.९७ )।
दे कर विष्णु ने इसका हरण किया, जिस कारण वे दोनों श्राविष्टायन--पराशर कुलोत्पन्न -एक गोत्रकार। विष्णु की उपासना छोड़ कर शिवोपासक बन गये (लिंग,
श्री-(स्था.) ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवता लक्ष्मी २.५.; अ. रा. ४; शिव रुद्र २.४) । का नामान्तर, जिसे पुराणों में भृगु एवं ख्याति की कन्या श्रीमल कार्ण--आंध्रवंशीय शातकर्णि राजा का कहा गया है (लक्ष्मी देखिये)।
नामान्तर ( शातकर्णि १. देखिये )। २. धर्म ऋषि की पत्नियों में से एक ।
श्रीमाता--देवी का एक अवतार, जिसने मातंगी का श्रीकर--एक शिवगण, जो गोप का पुत्र था। इसने रूप धारण कर, कर्नाटक नामक राक्षस का वध किया। काशी में मध्यमेश्वर की आराधना कर 'शिवगणपतित्त्व यह राक्षस ब्राह्मण का वेश धारण कर ऋपियों के स्त्रियों प्राप्त किया (शिव. उ. ४४,८५)।
का हरण करता था (स्कंद. ३.२.१७-१८)। ९९०