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श्याम
प्राचीन चरित्रकोश
श्येनजित्
२.एक श्वान, जो सरमा के पुत्रों में से एक था (ब्रह्मांड. श्यालायनि--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार | ३.७.११२)। यज्ञ में इसे बलि अर्पण किया जाता है। श्यावक-एक यज्ञकता आचार्य, जो इंद्र का मित्र
श्यामपराशर-पराशर कुलोत्पन्न एक ऋषि समुदाय। था (. ८.३.१२, ४.२)। ऋग्वेद में अन्यत्र सुवास्तु इस समुदाय में निम्नलिखित ऋषि समाविष्ट थे:-पाटिक, नदी के तट पर रहनेवाले श्याच नामक एक राजा का बादरिस्तंब, क्रोधनायन, क्षेमि।
निर्देश प्राप्त है, जो संभवतः यही होगा (श्याव २. श्यामबाला--सौराष्ट्र में रहनेवाले भद्रश्रवस् नामक | देखिये)। वैश्य की कन्या । लक्ष्मीव्रत का माहात्म्य कथन करने के श्यावयान-देवतरम् नामक आचार्य का पैतृक नाम लिए इसकी कथा पद्म में दी गयी है ( पद्म, ब्र. ११)। (जै. उ. बा. ३.४०.२)। श्यामवय -वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
इयावाश्व आत्रेय--अत्रिकुलोत्पन्न एक ऋपि, जिसे श्यामसुजयन्त लोहित्य- एक आचाय, जो कृष्ण- ऋग्वेद के कई सूक्तों के प्रणयन का श्रेय दिया गया है धृति सात्यकि नामक आचार्य का शिष्य था । इसके शिष्य (रु. ५.५२-६१, ८१-८२, ८.३५-३८; ९.३२)। का नाम कृष्णदत्त लौहित्य था ( जै. उ.बा. ३.४२.१)। इसे श्यामावत् नामांतर भी प्राप्त था (मल्ल्य. १४०,
२. एक आचार्य, जो जयंत पारशर्य नामक आचार्य १०७-१०८; श्यामावत् देखिये )। इसके पिता का नाम का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम पल्लिगुप्त लोहित्य था अचनानस् आत्रेय था (पं ब्रा. ८.५.९)। ऋग्वेद में (जै. उ.बा. ३.४२.१)।
| अनेक स्थानों पर इसका निर्देश प्राप्त है (ऋ. ६.५२.. श्यामा--मेरु की कन्या, जो हिरण्मय ऋषि की पत्नी ६१; ८.३५-३८; ८१-८२, ९.३२)। स्थीति दाय थी (भा. ५.२.२३)।
ऋषि की कन्या इसकी पत्नी थी (रथवीति दार्य __श्यामायन--विश्वामित्र ऋषि के ब्रह्मवादी पुत्रों में से देखिये )। एक (म. अनु. ४.५५)।
श्यावाश्चि--तरन्त एवं पुरुमहिळ गजाओं के अंधीगु २. अंगिरस् कुल का एक गोत्रकार ।
नामक पुरोहित का पैतृक नाम (तरन्त देखिये )। श्यामायनि--एक आचार्य, जो व्यास की कृष्णयजुः श्यावास्य-दयामावत् नामक अत्रिकुलोत्पन्न गोत्रकार शिष्यपरंपरा में से वैशंपायन ऋपि का 'उदिच्च' शिष्य का नामान्तर। ' था (वैशंपायन १. एवं व्यास देखिये )।
श्येन-इंद्रसभा में उपस्थित एक पि । २. अंगिरसकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
२. पक्षियों की एक जाति, जो ताम्रा की कन्या श्येनी श्यामावत्--अत्रिकुलोत्पन्न एक मंत्रकार, जो दत्त की संतान मानी जाती है (म. आ. ६०.५४-.)। आत्रेय के वंश में उत्पन्न हुआ था (वायु. ५९.१०४)। श्येन आग्नेय-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. इसे निम्नलिखित नामान्तर भी प्राप्त थे:- शावास्य | १८८)। अथवा शावाश्व (मत्स्य. १४५.१०७-१०८); शाबाश्व | श्येनगामिन-खर राक्षस के बारह अमात्यों में से (ब्रह्मांड. २.३२.११३-११४)।
एक (वा. रा. अर, २३.३१)। श्यामोदर--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
श्येनचित्र--एक राजा, जिसने जीवन में कभी माँस श्याव-एक राजा, जो वधिमती का पुत्र था (ऋ. भक्षण नहीं किया था। शारद एवं कौमुद्र माह में जिन १०.६५.१२)। किन्तु सायण इसे स्वतंत्र व्यक्ति न मान | राजाओं ने मांस भक्षण वयं किया था, ऐसे पण्यायोग कर, हिरण्यहस्त राजा की उपाधि मानते है। राजाओं की एक नामावलि महाभारत में प्राप्त है, जहाँ
यह अश्विनों की कृपापात्र व्यक्तियों में से एक था, इसका निर्देश किया गया है (म. अनु. ११५.४२)। जिन्होंने इसे रुशती नामक स्त्री प्रदान की थी (ऋ. १. श्येनजित्--(सू, इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, ११७.८)।
जो दल राजा का पुत्र या। इसके चाचा शल ने वामदेव २. सुवास्तु नदी के तट पर रहनेवाला एक उदार ऋषि के अच थोडे समय के लिए मांग लिए, एवं दाता (इ. ८.१९.३७) । ऋग्वेद में अन्यत्र श्यावक | पश्चात् उन्हें वापस देने से इन्कार कर दिया। इतना नामक एक राजा का निर्देश आता है, जो संभवतः यही ही नहीं, बल्कि बामदेव का वध करने के लिए एक होगा (ऋ. ५.६१.९।।
विषयुक्त बाण का उपयोग करना चाहा।