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शौनक
प्राचीन चरित्रकोश
श्याम
व्याडि ने अपने — विकृतवल्ली' नामक ग्रंथ के प्रारंभ में शौनक स्वेदायन--एक यज्ञशास्त्रनिपुण आचार्य शौनक को गुरु कह कर इसका वंदन किया है (व्याडि | (श. बा. ११.४.१.२-३; गो. वा. १.३.६ )। देखिये)। 'शुकृयजुर्वेद प्रातिशाख्य' में संधिनियमों के | शौनकायन जीवन्ति--भृगकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । संबंध में मतभेद व्यक्त करते समय, इसके मतों का शौनाकन्--एक आचार्य, जिसके यज्ञकुण्ड के परिमाण उद्धरण प्राप्त है ( शु. प्रा. ४. १२०)। शब्दों के अंत के संबंधित मतों का उल्लेख कौषीतकि ब्राह्मण में प्राप्त है में कौन से वर्ण आते है, इस संबंध में इसके उद्धरण | (को. बा. ८५.८)। 'अथर्ववेद प्रातिशाख्य ' में प्राप्त हैं (अ. प्रा. १.८)। शौनकीपुत्र--एक आचार्य, जो काश्यपी बालाक्या
शिक्षाकार शौनक-- शौनकीय शिक्षा में दिये गये | माटरीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का एक सूत्र का उद्धरण पाणिनि के अष्टाध्यायी में प्राप्त है | नाम पैगीपुत्र था (श. वा. १४.९.४.३१-३२)। (पा. स. ४.३.१०६ )। इसी शौनकीय शिक्षा में ऋग्वेद | शौनहोत्र--गृत्समद आंगिरस ऋषि का पैतृक नाम के शाखाप्रवर्तक शौनक को 'कल्पकार' कहा गया है, | (गृत्समद १. देखिये)। जिससे प्रतीत होता है कि, 'शाखा' का नामांतर 'कल्प' शौरिद्य-एक आचार्य, जो वायु के अनुसार व्यास था। गंगाधर भट्टाचार्य विरचित 'विकृति कौमुदी' नामक | की सामशिष्यपरंपरा में कथभि नामक आचार्य का ग्रंथ में इन दोनों की समानता सष्ट रूप से वर्णित है
शिष्य था। ( शाकलाः शौनकाः सर्वे कल्यं शाखा प्रचक्षते )।
शौरि-कृष्ण पिता वसुदेव का नामांतर (म. द्रो. तत्वज्ञानी शौनक-जनमेजय पारिक्षित राजा के पुत्र
| ११९.७)। शतानीक को इसने तत्त्वज्ञान की शिक्षा प्रदान की थी
शौल्कायनि अथवा शौक्वायनि-एक आचार्य, जो . (विष्णु. ४.२१.२)। महाभारत में इसका निर्देश . असित, देवल, मार्कडेय, गालव, भरद्वाज, वसिष्ठ, |
व्यास की अथर्वशिष्यपरंपरा में देवदर्श नामक
। आचार्य का शिष्य था। उद्दालक, व्यास आदि ऋषियों के साथ अत्यंत गौरवपूर्ण शब्दों में किया गया है (म. व. ८३. १०२-१०४)।
शौल्बायन अथवा शौल्ल्यायन-उदक नामक द्वैतवन में जिन ऋषियों ने धर्म का स्वागत किया था, |
आचार्य का पैतृक नाम (बृ. उ. ६.१.३)। - उनमें यह प्रमुख था (म. व. २८. २३)।
श्याकार--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । . शिष्यपरंपरा--शौनक का प्रमुख शिष्य आश्वलायन
श्यापर्ण-एक पुरोहितसमुदाय, जो विश्वंतर राजा का था। अपने गुरु को प्रसन्न करने के लिए आश्वलायन
पुरोहित था। एक बार विश्वतर ने सोमयज्ञ किया, जहाँ ने गृहय एवं श्रौतसूत्रों की रचना की। आश्वलायन का यह
उसने इन्हें टाल कर अन्य पुरोहितों को बुलाना चाहा। ग्रंथ देख कर शोनक इतना अधिक प्रसन्न हुआ कि,
उस समय इनमें से राम मार्गवेय नामक एक पुरोहित ने इसने अपने श्रीतशास्त्र विषयक ग्रंथ विनष्ट किया
सोम के संबंध में एक नयी उपपत्ति कथन कर, अपना ( विपाटितम् )। ऋग्वेद से संबंधित शोनक के दस ग्रंथों । पुरोहितपद पुनः प्राप्त किया (ऐ. ब्रा. ७.२७, राम का अध्ययन करने के बाद, आश्वल यन ने अपने गृहय
मार्गवेय देखिये)। एवं श्रौतसूत्रों की, एवं ऐतरेय आरण्यक के चतुर्थ श्यापर्ण सायकायन--एक यज्ञवेत्ता आचार्य, जिसके आरण्यक की रचना की।
द्वारा यज्ञवेदी पर पाँच पशुओं का वध करने का निर्देश शौनक के दस एवं आश्वलायन के तीन ग्रंथ आश्व- प्राप्त है (श. बा. १०.४.१.१०, ६.२.१.३९)। लायन के शिष्य कात्यायन को प्राप्त हुए। कात्यायन ने श्याम--(सो. क्रोष्टु.) एक यादव राजा, जो विष्णु स्वयं यजुर्वेदकल्पसूत्र, सामवेद उपग्रंथ आदि की रचना | एवं मत्स्य के अनुसार शूर राजा का पुत्र था (मत्स्य. की, जिन्हे उसने अपने शिष्य पतंजलि ( योगशास्त्रकार ) | ४६.३)। को प्रदान किये।
भागवत में इसे 'श्यामक' कहा गया है । इसकी पत्नी इस प्रकार शौनक की शिष्यपरंपरा निम्न प्रकार प्रतीत का नाम शूरभू अथवा शूरभूमि था, जिससे इसे हिरण्याक्ष होती है:- शौनक- आश्वलायन- कात्यायन- पतंजलि- एवं हरिकेश नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे (भा. ९.२४. व्यास ।
२१)।