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शोन
प्राचीन चरित्रकोश
शौनक
२. एक व्यक्ति, जिसकी कथा पद्म में 'सोमवारवत' शौण--अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। का माहात्म्य कथन करने के लिए दी गई है।
शौनक--एक शाखाप्रवर्तक आचार्य, जो विष्णु, शोण सात्रासह-एक पांचाल राजा, जो कोक राजा | वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की अथर्वन् शिष्यका पिता था। इसके के द्वारा किये अश्वमेध यज्ञ में तुवंश परंपरा में से पथ्य नामक आचार्य का शिष्य था (व्यास लोग भी उपस्थित थे (श. ब्रा. १३.५.४.१६-१८)। | एवं पाणिनि देखिये)। इसे भृगुकुल का मंत्रकार भी
शोणाश्व-(सो. विदु.) एक राजा, जो राजाधिदेव | कहा गया है। राजा का पुत्र था (मत्स्य. ४४.७८)।
। २. एक पैतृकनाम, जो निम्नलिखित आचायों के लिए शोणित--(सो. क्रोष्ट.) एक यादवराजा, जो वायु के प्रयुक्त किया गया है:-१. अतिधन्वन् (छां. उ. १. अनुसार शूर राजा का पुत्र (ब्रह्मांड. ३.७१.१३८)। ९.३); २. इंद्रोत देवा पि ( श. ब्रा. १३.५ ३.५.१);
शोणिताक्ष--रावणपक्ष का एक राक्षस (वा. रा. | ३. स्वैदायन (श. ब्रा. ११.४.१.२); ४. दृति ऐंद्रोत सुं.६.२६)।
| (वं. बा. २)। शोणितोद--कुवेरसभा का एक यक्ष (म. स. १०. ३. एक आचार्य, जो रौहिणायन नामक आचार्य का १७)।
| गुरु था (बृ. उ. २.५.२०, ४.५.२६ माध्य.)। शोभन--मुचुकुंद राजा का दामात, जिसकी कथा 'रमा- शौनक कापेय-एक राजा, जो अभिप्रतारिन् एकादशी' का माहात्म्य कथन करने के लिए बतायी गयी | काक्षसे नि राजा का समकालीन था। इसके पुरोहित का है ( पद्म. उ.६०)।
नाम शौनक ही था (छा. उ. १.९.३; जै. उ. ब्रा. ३. शोभना--स्कंद की अनुचरी मातृका (म. श.४५)।। १.२१)। शौकतव,शौकत,शोकवत-अत्रिकुलोत्पन्न गोत्रकार। शौनक गृत्समद--(सो. काश्य.) एक सविख्यात
शौग--एक ऋषि, जो अंगिरस्कुलोत्पन्न शुंग ऋषि | आचार्य, जो ' ऋग्वेद-अनुक्रमणी,' ' आरण्यक, ' का पुत्र था। आगे चल कर विश्वामित्रकुलोत्पन्न शैशिर | 'ऋक्प्रातिशाख्य ' आदि ग्रंथों का कर्ता माना जाता है । ऋषि ने इसे अपना पुत्र मान लिया। इसी कारण यह | महाभारत में इसे 'योगशास्त्रज्ञ' एवं 'सांख्यशास्त्रद्विगोत्रीय (द्वयामुष्यायण) बन गया।
निपुण' कहा गया है। २. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
आश्वलायन नामक सुविख्यात आचार्य का गुरु भी • शौगायनि--मद्रगार नामक आचार्य का पैतृक नाम, यही था, एवं कात्यायन, पतंजलि, व्यास, आदि आचार्य जो उसे शौंग का बंशज होने से प्राप्त हुआ होगा ( व. बा. | इसके ही परंपरा में उत्पन्न हुए थे। इसका अपना नाम
गृत्समद था, एवं शौनक इसका पैतृक नाम था, जो इसे 'शॉगीपुत्र--एक आचार्य, जो सांकृतिपुत्र नामक शुनक राजा का पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था। आचार्य का शिष्य, एवं आर्तभागीपुत्र नामक आचार्य का जन्मवृत्त--पड्ग रुशिष्य के द्वारा विरचित 'कात्यायन गुरु था (श. बा. १४.९.४.३०)।
सर्वानुक्रमणी' के भाष्य में इसका जन्मवृत्त सविस्तृत रूप में शौच--आतेय नामक आचार्य का पैतृक नाम दिया गया है । शुनहोत्र भारद्वाज ऋषि के पुत्र शौनहोत्र (ते. आ. २.१२)।
गृत्समद के द्वारा एक यज्ञ किया गया, उस समय स्वयं शौचद्रथ-सुनीथ नामक आचार्य का पैतृक नाम इन्द्र उपस्थित था । इस यज्ञ के समय असुरों के आक्रमण (ऋ. ५.७९.२ )। शुचद्रथ का पुत्र होने के कारण, उसे से शौनहोत्र ने इन्द्र का रक्षण किया। इस कारण इन्द्र ने यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा।
प्रसन्न हो कर, शौनहोत्र को आशीर्वाद दिया 'अगले जन्म शौचय सार्वसेनि--एक आचार्य, जिसने पंचरात्र में, तुम भृगुकुल में 'शौनक भार्गव' नाम से पुनः यज्ञ कर के अनेकानेक पशु प्राप्त किये थे (ते. सं. ७.१. जन्म लोंगे'। १०२)।
पौराणिक साहित्य में--इन ग्रंथों में, इसे गृत्समदपुत्र शौचिवृक्ष-एक आचार्य (ला. श्री. ६.९.१४)। शुनक का पुत्र कहा गया है, एवं इसे 'क्षत्रोपेत द्विज,'
शौचेय प्राचीनयोग्य-एक आचार्य, जो शुचि एवं ! 'मंत्रकृत् , ' 'मध्यमाध्वर्यु,' एवं 'कुलपति' कहा गया प्राचीनयोग का वंशज था (श. बा. ११.५.३.१; ८)। है (वायु ९३.२४)। प्रा. च. १२४]
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