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________________ शैव्या प्राचीन चरित्रकोश शोण शैव्या-शाल्वदेश के गुमत्सेन राजा की पत्नी, जो | हुआ था (बृ. उ. ४.१.५ माध्यः ४.१.२ काण्व.)। कई सावित्रीपति सत्यवत् ( सत्यवान् ) राजा की माता थी अभ्यासकों के अनुसार 'शैलन' इसीका ही पाठभेद है (म. व. २८२.२)। (शैलन देखिये)। २. पूरुवंशीय प्रतीपराजा की पत्नी सुनंदा का नामान्तर । शैलूष--एक व्यक्तिनाम, जिसका निर्देश यजुर्वेद में (म. आ. ९०.४६)। | दिये गये बलिप्राणियों की तालिका में प्राप्त है ( वा. सं. ३. इक्ष्वाकुवंशीय सगर राजा की पत्नी सुमति का ३०.६; तै. ब्रा. ३.४.२.१)। शैलूप का शब्दशः अर्थ नामान्तर, जो असमंजस् राजा की माता थी। | 'अभिनेता' अथवा 'नर्तक' है । सायण के अनुसार, इस ४. कृष्णपत्नी मित्रविंदा का नामान्तर (म. मौ. शब्द का अर्थ 'अपनी पत्नी की वेश्यावृत्ति पर उपजीविका ८.७१)। चलानेवाला' किया गया है। ५. हरिश्चंद्रपत्नी तारामती का नामान्तर । २. विभीपणपत्नी सरमा का पिता, जो अल्पभ पर्वत ६. ज्यामघ राजा की पत्नी चैत्रा का नामान्तर, जो पर निवास करता था। विदर्भ राजा की माता थी। शैलूषि--कुल्मलबर्हिष नामक वैदिक सुक्तद्रष्टा का ७. शतधन्वन् नामक विष्णुभक्त राजा की पत्नी पैतृक नाम (ऋ. १०.१२६)। ( शतधन्वन् ३. देखिये)। शैवलय--शैलालेय नामक वसिष्ठकुलोत्पन्न गोत्रकार शैरालय--शैलालय नामक वसिष्ठकुलोत्पन्न गोत्रकार | का नामान्तर। का नामान्तर । शैशिर--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । शैरीषि--सुवेदस् नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृकनाम। शैशिरिन्--एक आचार्य, जो वायु के अनुसार शैलन--एक आचार्यसमूह (जै. उ. ब्रा. १.२.३, व्यास की यजुः शिष्यारंपरा में से याज्ञवल्क्य का वाजस- . २.४.६ ) । इस समुदाय में निम्नलिखित आचार्य प्रमुख | नेय शिष्य था। थे:---१. पाणं (जै. उ. बा. २.४.८); २. सुचित्त | शैशिरायण गार्य--एक ऋपि, जिसे गोपाली नामक (जै. उ. बा. १.१४.४ )। स्त्री से कालयवन नामक असुर पुत्र उत्पन्न हुआ था (कालशैलालय-वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पाठ- यवन देखिये )। यह त्रिगर्तराजा का पुरोहित था. जिसने 'शैरालय; 'शैवलेय'। इसके पुरुषत्व की परीक्षा लेने के लिए अपनी पत्नी वृक२. एक राजा, जो भगदत्त राजा का पितामह था। | देवी के साथ संभोग करने की आज्ञा दी थी (ह. बं. कुरुक्षेत्र के तपोवन में तपस्या कर के, यह इंद्रलोक चला | १.३५.१२)। गया (म. आश्व. २६.१०)। शशिरय--एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के शैलालि-एक सांस्कारिक आचार्य, जो 'शैलालि | अनुसार व्यास की ऋशिष्यपरंपरा में से देव मित्र शाकल्य ब्राह्मण' नामक ब्राह्मण ग्रंथ का रचयिता माना जाता है। का शिष्य था। यह शाकल्यशाखा का प्रमुख आचार्य था, यद्यपि यह ब्राह्मण ग्रंथ आज अप्राप्य है, फिर भी उस | एवं इसीके द्वारा प्रणीत शैशिरीय-संहिता शाकल शाखा ग्रंथ के उद्धरण सूत्रग्रंथों में पाये जाते हैं (आ.श्री. ६.४. | की प्रमाणभूत संहिता मानी जाती है (शाकल एवं शाकल्य ७; अनुपद. ४.५)। शिलालिन् का वंशज होने के कारण, | देखिये )। शाकल्य का शिष्य होने के कारण इसके द्वारा इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा। प्रणीत संहिता 'शाकल संहिता' नाम से प्रसिद्ध है। शतपथ ब्राह्मण में इसका निर्देश प्राप्त है, जहाँ आहुति | शौनक के द्वारा विरचित 'अनुवाकानुक्रमणी' भी इसीदेने का क्रम किस प्रकार होना चाहिये इस संबंध में इसके | के संहिता को आधार मान कर लिखी जा चुकी है मत उद्धृत किये गये है (श. ब्रा. १३.५.३.३)। (अनुवाकानुक्रमणी ७:३०)। व्याडिकृत 'विकृतिवल्ली' पाणिनि के अष्टाध्यायी में इसे 'नटसूत्रकार' कहा गया है में भी अष्टविकृतियों के कथन के लिए शैशिरीय-संहिता एवं इसके सांप्रदाय का निर्देश 'नटवर्ग' नाम से किया गया | को आधार माना गया है। है (पा. सू. ४.३.११०)। शैशिरोदहि--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। . शैलिन अथवा शैलिनि--जित्वन नामक आचार्य | शोकपाणि--ऋग्वेदी श्रुतर्षि । का पैतृक नाम, जो उसे शिलिन का वंशज होने से प्राप्त । शोण-अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। ९८४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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