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________________ शेष . प्राचीन चरित्रकोश दा सन) श्लोक लगध के द्वारा विरचित 'ऋग्वेदीय वेदांगज्योतिष' से शैव्य--अमित्रतपन शुष्मिण नामक राजा की उपाधि • लिये गये हैं, एवं १३ इसके अपने थे। इसके ग्रंथ पर (ऐ. बा. ८.२३.१०)। शिबि जाति में उत्पन्न, इस अर्थ सोमक की टीका उपलब्ध है (लगध देखिये)। से संभवतः यह आधि उसे प्राप्त हुई होगी। २. एक प्रमुख नाग, जो नागराज अनंत का अवतार । २. सत्यकाम नामक आचार्य का पैतृक नाम (प्र.उ. माना जाता है। यह भगवान् नारायण का अंशावतार माना जाता है, एवं उसके लिए शय्यारूप हो कर उसे ३. एक राजा, जो संजय राजा का पिता था (म. द्रो. धारण करता है। परि. १.८.२७४ पाठ)। भागवत में इसे कश्यप एवं कद का पुत्र कहा गया है, ४. शिबि देश का एक राजा, जो युधिष्ठिर का श्वशुर एवं इसका निवासस्थान पाताल लोक बताया गया है। | था। इसका सही नाम गोवासन था। महाभारत में इसे इसके सहस्र शीर्ष थे, एवं यह गले में शुभ्रवर्णीय रत्नमाला उशीनर राजा का पात्र कहा गया है। यह एवं काशिराज परिधान करता था (भा. १०.३.४९)। यह हाथ में युधिष्ठिर के सब से बड़े हितचिंतक थे। उपप्लव्य नगरी में हल एवं कोयती धारण करता था। गंगा ने इसकी संपन्न हुए अभिमन्यु के विवाह के समय, यह अपनी एक उपासना की थी, जिसे इसने ज्योतिषशास्त्र एवं खगोल | अक्षौहिणी सेना के साथ उपस्थित हुआ था। शास्त्र का ज्ञान प्रदान किया था (विष्णु. २.५.१३-२७)। भारतीय युद्ध में यह पाण्डव-पक्ष के प्रमुख धनधरों में अन्य नागों की तरह इसे भी कामरूपधरत्व की विद्या से एक था। इसके रथ के अश्व नीलकमल के समान अवगत थी। इसी कारण इसके अनेकविध अवतार रंगवाले एवं सुवर्णमय आभूषणों से युक्त थे । धृष्टद्यम्न के (कला) उत्पन्न हुए थे। इसकी एक कला क्षीरसागर में द्वारा निर्माण किये गये क्रौंचव्यूह की रक्षा का भार इस पर थी, जिस पर विष्णु शयन करते है । बालकृष्ण को वसुदेव | सौंपा गया था, जो इसने तीस हजार रथियों को साथ ले जब गोकुल ले जा रहे थे, उस समय अपनी फणा फैला | कर उत्कृष्ट प्रकार से सम्हाला था (म. भी. ४६.३९:५४)। 'कर इसने उसकी रक्षा की थी। ५. एक यादव राजा, जो युधिष्ठिर की सभा में उपस्थित .. अपने सर पर यह समस्त पृथ्वी को धारण करता है. था (म. स. ४.५३)। यह अर्जुन का शिष्य था. जिससे जो सिद्धि इसे ब्रह्मा के आशीर्वाद के कारण प्राप्त हुई थी | इसने धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की थी। (म. आ. ३२.५-१९)। ६. एक क्षत्रिय राजा, जिसे कृष्ण ने पराजित किया था शेषसेवाक-रौपसेवकि नामक कश्यपकुलोत्पन्न | (म. व. १३.२७)। गोत्रकार का नामान्तर । ७. एक कौरवपक्षीय राजा, जो भीष्म के द्वारा निर्माण '. शैखावत्य--एक ऋषि, जो शास्त्र एवं आरण्यक आदि किये गये 'सर्वतोभद्र' नामक व्यूह के प्रवेशद्वार पर खड़ा ग्रंथों का महान् आचार्य था । भीष्म एवं शाल्व के द्वारा हुआ था (म. भी. ९५.२७)। अपमानित हुई अंबा इसके आश्रम में आ कर रही थी, ८. शिबि देश के वृषादर्भि राजा का पैतृक नाम, जो उसे एवं वहीं उसने भीष्मवध के लिए कठोर तपस्या की थी | शिबि राजा का पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था (म. (म. उ. १७३.११-१८)। | अनु. ९३.२०-२९; वृषादर्भि देखिये)। २. एक राजा, जो भारतीय युद्ध में पाण्डव पक्ष में | ९. शिबि नरेश सुरथ राजा का नामान्तर (म.व.२५०. शामिल था। इसे शैब्य चित्ररथ नामान्तर भी प्राप्त था।| ४; सुरथ शैब्य देखिये)। इसके रथ के अश्व नीलोत्पल वर्ण के थे, एवं वे सुवर्णालंकार १०. (सो. पूरू.) एक पूरुवंशीय राजा, जो मत्स्य तथा अनेक प्रकार की मालाओं से विभूषित किये गये थे। के अनुसार शिबि राजा का पुत्र था। शैत्यायन--एक वैयाकरण, जिसके द्वारा विरचित | ११. सुवीर देश का एक राजा, जो भारतीय-युद्ध में संधिनियमों का निर्देश तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में प्राप्त है | पाण्डवपक्ष में शामिल था (भा. १०.७८)। जरासंध (ते. प्रा. ५.४०)। के द्वारा गोमंत पर आक्रमण किये जाने पर, उस नगरी के शैनेय--सुविख्यात यादवराजा सात्यकि युयुधान का पश्चिम द्वार की रक्षा का कार्य इस पर सौंपा गया था (भा. पैतृक नाम । शिनि राजा का पुत्र होने के कारण, उसे यह | १०.५२.११)। इसकी कन्या का नाम रत्ना था, पैतृकनाम प्राप्त हुआ था (म. मी. ४.३२ सात्यकि देखिये) | जिसका विवाह अक्रूर से हुआ था (मत्स्य. ४५.२८)। ९८३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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