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________________ शुचि प्राचीन चरित्रकोश शुनःशेप ११. (सो. मगध, भविष्य ) एक राजा, जो भागवत इसके पुत्र का नाम लांगल (राहुल, अथवा पुष्कल) एवं विष्णु के अनुसार विप्र राजा का, वायु के अनुसार था ( भा. ९.१२.१४; वायु. ९९. २८८)। महाबाहु राजा का, ब्रह्मांड के अनुसार रिपुंजय राजा का, शुद्धोदन--गौतम बुद्ध का पिता (अनि. १६) एवं मत्स्य के अनुसार विभु राजा का पुत्र था । इसके एक इसे 'शुद्धोद' नामांतर भी प्राप्त था । पुत्र का नाम क्षेम (क्षेम्य) था (भा. ९.२२.४७-४८; शनःपूच्छ--शुनःशेप ऋषि का भाई (ऐ. बा. विष्णु. ४.२३.५-७) ७.१५.७; सां. श्री. ५.२०.१)। १२. एक वणिक्ल का मुख्य, जो वन में दमयन्ती से । शनःशेप आजागर्ति--एक सुविख्यात ऋषि, जो सहजवश मिला था। विश्वामित्र ऋषि का भतीजा एवं आगे चल कर उसका १३. एक भार्गव देव, जो भृगु ऋषि के पुत्रों में से प्रमुख शिष्य था। विश्वामित्र का शिष्य होने के पश्चात्, एक था। यह देवरात नाम से प्रसिद्ध हुआ। शुनःशेष शब्द का १४. भौत्य मन्वंतर के सप्तषियों में से एक । शब्दशः अर्थ 'कुत्ते की पूँछ ' होता है। १५. कश्यप एवं ताम्रा की एक कन्या । ___ भृगुकुल में उत्पन्न ऋचीक अजीगर्त नामक ऋषि का १६. एक अग्नि (म. व.२११.२४)। यह मँझला पुत्र था, एवं इसके अन्य दो भाइयों के १७. एक अप्सरा, जो वेद शिरस् ऋषि की पत्नी थी | नाम शुनःपुच्छ, एवं शुनोलांगूल थे । इसे 'आजीगर्ति, (वेदशिरस् २. देखिये। एवं ' सौयवसि' पैतृक नाम प्राप्त थे। ऋग्वेद के कई शुचिका-एक अप्सरा, जो कश्यप एवं मुनि की सूनों का प्रणयन इसके द्वारा हुआ है (ऋ. १.२४. कन्या थी। अर्जुन के जन्मोत्सव में यह उपस्थित थी| ३०; ९.३) (म. आ. ११४.५१)। ___ हरिश्चन्द्राख्यान-इसके जीवन से संबंधित विस्तृत. शुचिद्रव--पूरुवंशीय कविरथ राजा का नामांतर। कथा ब्राह्मण ग्रंथों में प्राप्त हैं (ऐ. ब्रा. ७.१३-१८; शुचिविद्य--(सो. पुरूरवस्.) एक राजा, जो मत्स्य के | सा. श्री. १५.२०-२१; १६.११.२)। हरिश्चन्द्र राजा अनुसार पुरूरवस् राजा का पुत्र था (मत्स्य. २४.३४)। को पुत्र न होने के कारण, उसने वरुण के पास मनौती. शुचिवृक्ष गोपालायन-एक आचार्य, जो वृद्धाम्न मानी थी कि, अगर उसे पुत्र होगा, तो वह उसे वरुण आभिप्रतारिण नामक राजा का पुरोहित था (ऐ. ब्रा. ३. को बलिस्वरूप में प्रदान करेगा। आगे चल कर, हरिश्चन्द्र ४८.९; मै. सं. ३.१०.४)। को रोहित नामक पुत्र उ पन्न हुआ, किन्तु वह मनौती पूरी करने में देर लगाने लगा । अपने पिता के द्वारा कबूल शुचिश्रवस्--एक प्रजापति, जो ब्रह्मा के मानसपुत्रों की गयी यह मनौती की कथा ज्ञात होते ही, रोहित वन में से एक था ( वायु. ६५.५३)। २. स्वायंभुव मन्वंतर के अजित देवों में से एक । में भाग गया। शचिष्मत--कर्दम प्रजापति का पुत्र, जो उसे समुद्र 'पश्चात् हरिश्चन्द्र को उरदरोग ने ग्रस्त किया। तत्र से प्राप्त हुआ था। शिव ने इसे समुद्र का आधिपत्य एवं रोहित ने वरुण को बलि देने के लिए अपने स्थान पर पश्चिम दिशा का अधिराज्य प्रदान किया था ( स्कंद. २. । अजीगत पुत्र शुनःशेप को नियुक्त किया, एवं इसके ४.१-१२)। पिता को विपुल द्रव्य दे कर, बलिप्राणी के नाते इसे शुचिस्मिता--कुबेरसभा की एक अप्सरा (म. स. खरीद लिया। १०.१०)। पश्चात् इसे बलिस्तंभ में बाँध भी दिया गया। इतने में शुद्ध-(सो. आयु.) एक राजा, जो अनेनस् राजा का विश्वामित्र ऋषि ने इसे देवताओं की प्रार्थना करने के लिए पुत्र, एवं शुचि राजा का पिता था (भा. ९.१७.११)। कहा । शुनःशेप के द्वारा की गयी ये प्रार्थनाएँ ऋग्वेद के २. भौत्य मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक। इसी के द्वारा रचित सूक्त में प्राप्त हैं। शुद्धोद-(सू. इ.. भविष्य.) एक राजा, जो वायु, पश्चात विश्वामित्र ने इसे बलिस्तंभ से मुक्त किया एवं विष्णु, एवं भागवत के अनुसार शाक्य राजा का पुत्र | 'देवरात' नाम से इसे अपना पुत्र एवं प्रमुख शिष्य था । भविष्य एवं मत्स्य में इमे शुद्धोदन कहा गया है। मान कर, इसे 'जल' एवं 'गाधिकुल का उत्तराधिकारी ९७८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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