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शुक्र उशनस्
यह शुरू से ही असुरों का पक्षपाती था। वामन अवतार के समय, चलि वामन को त्रिपादभूमि देने के लिए सिद्ध हुआ। असमय, इस क्रिया में रुकावट पैदा करने के हेतु यह झारी के मुख में जा बैठा। उस समय बलि ने दर्भाय ने शारी का मुख्य साफ करना चाहा, जिस कारण इसकी एक फूट गई। इसी कारण इसे 'एकाक्ष' कहते ( नारद. २.११ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
चियाय एवं अंगिरसपुत्र जीव, अंगिरस् ऋषि के शिष्य थे किन्तु विद्यादान के समय अंगिरस् ऋषि काफी पक्षपात करने लगा, जिस कारण इसने उसका शिष्यत्व छोड़ दिया, एवं यह शिवाराधना करने लगा । पश्चात् शिव से इसे मृत संजीवनी विद्या प्राप्त हुई, जिसके आधार पर देवासुर संग्राम में इसने असुरों को अनेक वार विजय प्राप्त करायी। पश्चात् इसकी यह संजीवनी विद्या बृहस्पतिपुत्र कच ने इससे प्राप्त की ( कच एवं देवयानी देखिये) । कच से वह विद्या उसके पिता देवगुरु बृहस्पति ने, एवं बृहस्पति से समस्त देव - पक्षों ने प्राप्त की। इस प्रकार असुरों का अजेयत्व विनष्ट
हुआ।
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लिंग पुराण में इसे अघोर ऋषि का पुत्र कहा गया है, एवं इसके द्वारा हिरण्याक्ष को ‘निग्रहविधि बताये जाने निर्देश भी यहाँ प्राप्त है (२.५० ) । स्वशाख— इसने १००० अध्यायोंवाले 'बार्हस्पत्य-शास्त्र' 'यशास्त्र वा निर्माण किया था, जो आगे चल कर अन्य आचाओं के द्वारा संक्षिप्त किया गया (म.शां. ९१-९२) ।
परिवार - इसकी पितृकन्या गो, एवं इंद्रकन्या जयंती नामक दो गनियाँ थी।
(1 ) जयंती की संतान--जयंती से इसे देवयानी उत्पन्न हुई थी, जिसका विवाह ययाति राजा हुआ था ( ययाति देखिये) ।
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(२) गोकीनो से इसे निम्नलिखित चार पुत्र उत्पन्न हुए थे:- १ त्वष्टृ; २. वरुत्रिन्; ३. शण्ड; ४. मर्क ये चार ही पुत्र एवं उनके संतान असुरों के पक्षपाती होने के कारण विनष्ट हुए, एवं इस प्रकार भार्गव शुक शाखानि हुई।
शुक्र जावाल – एक आचार्य (जै. उ. बा. ३.७.७)। यह 'जबाला' का वंशज होने के कारण, इसे ‘जाबाल’
नाम प्राप्त हुआ था।
प्रा. च. १२३ ]
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शुक्र पांचाल -- पांचाल देश का क्षत्रिय, जो भारतीय युद्ध में पांडवों के पक्ष में शामिल था। कर्ण ने इसका वध किया था (म.प. ४०,४६-४८ ) । इसके अथ, धनुष, कवच एवं ध्वज सफेद थे ( म. द्रो. २२.४९ ) । पाठभेद ( मांडारकर संहिता) - कृ ।
शुक्ल (स्वा. उत्तान ) एक राजा, जो हविर्धान एवं हविधांनी का पुत्र था (मा. ४.२४०८)। २. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । ३. उत्तम मन्वन्तर के सप्तर्पियों में से एक : ४. पांचाल देशीय शक्र नामक योद्धा का नामांतर (शुक्र पांचाल देखिये) ।
शुंग एक राजवंश, जिसका आद्य संस्थापक पुष्यमित्र थामबंध का अंतीम राजा बृहदव का पुष्यमित्र सेनापति था, जिसने वृहदश्व वा वध कर अपने स्वतंत्र राजवंश की स्थापना की। इस वंश में उत्पन्न निम्नलिखित दस राजाओं ने ११२ वर्षों तक राज्य किया:पुष्यमित्र, वसुज्येष्ठ, वसुमित्र, अंतक, पुलिंदक, वज्रमित्र, समाभाग, देवभूमि ( मत्स्य. २७२.२६ - ३२ ) ।
शुवन्ति - अधिनों का एक आश्रित (ऋ. १. ११२.७) ।
विष्णु के अनुसार अंक राजा का पुत्र था | पाठभेद शुचि -- (सो. क्रोटु. ) एक राजा, जो भागवत एवं ( मत्यपुराण ) - 'शशि' ।
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२. (स्वा. उत्तान . ) एक ऋषि, जो भरद्वाज एवं अंगिरस कुल में उत्पन्न हुआ था। वसिष्ठ ऋषि के शाप के कारण इसे मनुष्य योनि में कम प्राप्त हुआ, एवं यह विजिताश्व राजा का पुत्र बन गया ( भा. ४.२४.४ ) ।
३. (सु. निमि.) एक राजा, जो भागवत एवं विष्णु के अनुसार शतम्न जनक राजा का पुत्र था। पाठभेद ( वायुपुराण ) - ' मुनि ' ( भा. ९.१३.२२ ) ।
४. विश्वामित्र ऋषि के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक (म. अनु. ४.५४ ) ।
५. उत्तम मनु के पुत्रों में से एक ।
५. भीमनु के पुत्रों में से एक।
७. भीत्य मन्वन्तर का इंद्र (मा. ८८१३२.१४) । ८. विकुंट देवों में से एक ( ब्रह्मांड. २.३६.५७ ) । ९. सुधामन् देवों में से एक।
१०. (सो. पुरूरवस् . ) एक राजा, जो अनेनस् राजा का पौत्र, एवं शुद्ध राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम त्रिककुद् था |
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