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शुनःशेप
प्राचीन चरित्रकोश
शुभ्र
था।
बनाया । विश्वामित्र का पुत्र बनने के कारण, इसका भृगु- शुनक स्वयं युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में एक ऋषि के नाते गोत्र बदल कर, यह विश्वामित्रगोत्रीय बन गया। उपस्थित था (म. स. ४.१५)।
ब्राह्मण ग्रंथों में प्राप्त इस कथा का संबंध, ऋग्वेद में ३. एक राजा, जो चंद्रहन्तृ असुर के अंश से उत्पन्न प्राप्त इसके सूक्तों से दिखाने का सफल प्रयत्न वेदार्थ- हुआ था (म. आ. ६१.३५)।इसे अपने पूर्वज हरिणाश्व दीपिका में किया गया है। ऋग्वेद के अन्य एक सूक्त में राजा से एक खड्ग की प्राप्ति हुई थी, जो इसने आगे भी इसके पाशमुक्त बन जाने का निर्देश प्राप्त है (ऋ. ५. चल कर उशीनर राजा को प्रदान किया था (म. शां. २.७ सायणभाष्य )।
१६०.७७)। चंद्रतीर्थ नामक तीर्थस्थान में इसे मुक्ति पौराणिक साहित्य में--इस साहित्य में वैदिक साहित्य | प्रात हुइ था में निर्दिष्ट इसकी उपर्युक्त कथा अनेक बार सविस्तृत रूप ४. (प्रद्योत. भविष्य.) एक राजा, जो प्रद्योत राजवंश में दी गयी है (म. अनु. ३; शां. २९४; दे. भा. ७. का संस्थापक माना जाता है। यह प्रारंभ में रिपुंजय राजा १४-१७; भा. ९.७,१६; वा. रा. बा.६१-६२, ह. वं. का अमात्य था, जिसका इसने वध कर अपने प्रद्योत १.२७, विष्णु. ४.७; ब्रह्म. १०) . नामक पुत्र को राजगद्दी पर बिठाया (रिपुंजय ४. देखिये)। शुनःशेष कथा का अन्यायार्थ--कई अभ्यासकों के
५. एक आचार्य, जो भागवत के अनुसार व्यास की अनुसार, वैदिक साहित्य में वर्णित शनःशेप की कथा
अथर्वन् शिष्यपरंपरा में से पथ्य नामक आचार्य का शिष्य रूपकात्मक है, जहाँ दीर्घरात्रि के पश्चात् अस्तमान होनेवाले सूर्य की ओर संकेत किया हुआ प्रतीत होता है।
शतस्कर्ण बाकिह--एक राजा, जो शिबि अथवा इसके द्वारा विरचित ऋग्वेद के सुक्त में, इसे उपस् के द्वारा
बष्किह राजा का पुत्र था। इसके नाम से 'शुनस्कर्णस्तोम' वरुण के पाशों से मुक्त किये जाने का निर्देश प्राप्त है,
नामक एक याग प्रसिद्ध है (पं. ब्रा. १७.१२.६) इसने
सर्वस्वार नामक एक यज्ञ किया था, जिस कारण निरोगी जो इस तर्क को पुष्टि देता है (ऋ. १.२४)।
अवस्था में इसे मृत्यु प्राप्त हुई (बौ. श्री. २१.१७)। शुनःसख-इंद्र का एक तापसवेशवारी रूपांतर । वृषादर्भि राजा ने एक कृत्या का निर्माण कर, सप्तर्षियों का
शुनहोत्र भारद्वाज--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.६. वध करना चाहा। उस समय शुनः पख रूपधारी इंद्र ने |
३३-३४)। उस कृ.या का वध किया, एवं इस प्रकार सप्तर्षियों का
शुनालांगूल--एक ऋषि, जो अजीगत ऋषि का संरक्षण किया (म. अनु. १४२.४)।
| कनिष्ठपुत्र, एवं शनःशेष ऋषि का छोटा भाई था (ऐ. वा.
७.१५; सां. श्री. १५.२०.१)। शुनक-(सू. निमि.) एक राजा, जो भागवत के
शुभ--धर्म एवं श्रद्धा के पुत्रों में से एक । अनुसार अनु राजा का, एवं विष्णु तथा वायु के अनुसार |
२. रैवत मन्वन्तर का एक देवगण । सुनय राजा का पुत्र था (भा. ९.१३.२६) । इसके पुत्र
३. जालंधर दैय का सेनापति (पद्म. उ.४ )। का नाम वीतव्य था।
शुभा-बृहस्पति की दो पत्नियों में से एक। २.(मो. काश्य.) एक राजा, जो भागवत एवं वायु
२. अंगिरस् ऋषि की शिवा नामक पत्नी का नामांतर के अनुसार गृत्समद राजा का पुत्र, एवं शौनक राजा का |
(म. व. २०८.१)। पिता था (भा. ९.१७.३)।
शुभांगद--द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित एक क्षत्रिय महाभारत में इसे एक महर्षि कहा गया है, एवं इसके
| (म. आ. १७७.२०)। पिता एवं माता का नाम क्रमशः रुरु, एवं प्रमहरा कहा | भांगी--कुरु राजा की पत्नी, जिसके पुत्र का नाम गया है (म. आ.८)। पुराणो में रुरु राजा का नाम
विदूरथ था। गलती से छोड़ दिया गया है, जिस कारण इसे गृत्समद
शुभानन--एक नाग, जो कश्यप एवं कद्र के पुत्रों में राजा का पुत्र कहा कया है।
से एक था। आगे चल कर यह महर्पि बन गया, एवं इसके वंश | २. पितरों में से एक । के लोग अपने को क्षत्रियब्राह्मण कहने लगे। मुविख्यात | शुभ्र--वसुदेव एवं पौरवी के पुत्रों में एक । शौनक ऋषि इसका ही पुत्र था (म. अनु. ३०.६५)।। २. रैवत मन्वन्तर के अवतार का पिता ।
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