________________
अभिधानचिन्तामणिनाममाला . १४
शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ | शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ अन्योन्य न १४९९ परस्पर
अपथ न. ९८४ उन्मार्ग . अन्योन्योक्ति स्त्री २७५ परस्पर न्यायपूर्वक | अपथिन् पुं.९८४ उन्मार्ग
वात करवी ते 'अपदांतर' न. १४५१ संलग्न अन्वक्ष न. १४५७ पाछळ
अपदिश न. १६७ दिशाना खूणा अन्वच् पुं १४५७ पाछळ
अपध्वस्त पुं ४४० धिक्कारायेल अन्वय पुं ५०३ कुळ, वंश
( अपभ्रंश) पुं २८५ भाषा विशेष अन्ववाय पुं ५०३ कुळ, वंश . अपयान न. ८०२ पलायन थर्बु । अन्विष्ट न. १४९१ शोधेखें।
अपररात्र पुं १४५ रात्रिनो अंतिम भाग अन्वेषित न. १४९२ शोधेलु
अपरा स्त्री १६७ पश्चिम दिशा . अन्वेष्टक पुं ४९१ पाछळ जनार अपरा स्त्री न. १२२८ हाथीनो पाछळनी भाग अप् (ब.व.) स्त्री १०६९ पाणी अपराजित पुं २०० (शे. ४२) शंकर अपकृष्ट न. १४४२ अधम
अपराजित पुं २१९ (शे. ६७) विष्णु अपक्रम पुं ८०३ पलायन थर्बु, भागी जQ | (,अपराजित) पुं ९४ टी. चोथा अनुत्तर अपक्रिया स्त्री १५१५ अपकार
विमाननुं नाम अपघन पुं ५६६ शरीरना अवयव अपराजिता स्त्री ११५६ गरणी अपचय पुं १५२४ हानि, अपहरण
(वनस्पति-विशेष) अपचायित पुं ४४७ (शि. ३२) पूजायेलो | अपराद्धेषु पुं ७५२ निशान चूकेलो अपचित पुं ४४७ पूजायेलो
अपराध पुं ७४४ अपराध, गुनो अपचिति स्त्री ४४७ पूजा
अपर्णा स्त्री २०३ पार्वती | अपटान्तर न. १४५१ संलग्न
अपरेतरा स्त्री १६७ (शे. ३०) पूर्व दिशा अपटी स्त्री ६८० पडदो, कनात 'अपरेधुस्' अ १५४२ बीजा दिवसे अपटु पुं ४५९ रोगी
अपलाप पुं २७६ छुपाववानुं वचन अपतर्पण न. ४७३ लांघण
अपलासिका स्त्री ३९३ तरस अपत्य न ५४२ संतति
अपवरक पुं ९९५ शयनगृह अपत्यपथ पुं ६०९ स्त्री- चिह्न अपवर्ग पुं ७५ मोक्ष अपनपा स्त्री ३११ बीजाथी थती शरम | अपवन न ११११ बगीचो अपत्रपिष्णु पुं ३९० लज्जाळु | अपवर्जन न ३८७ दान