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शब्दमाला ..३२३ . शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शीन न. १४९४ थीजेलं घी वगेरे शुक्ल पुं १३९२ सफेद (शीर्णाशिघ्र) पुं १८४ यमराज शुक्ल पुं १४७ (शे. २२) शुक्ल पक्ष शीणाहि पुं १८४ यमराज
शुक्लपातु पुं १०३७ खडी, धोळी धातु शीर्ष न. ५६७ मस्तक
शुक्लापान पुं १३२० मोर शीर्षक न. ७६८ माथानी पाघडी, टोप, राजा स्त्री न. १९२४ नवी कुंपळोनो माथान बस्तर
अग्रभाग शीर्षक न. ६४० (शे. १३०) अगरु, अगर | शुच् स्त्री २९९ शोक, दुःख शीर्षच्छेद पुं ३७३ वध करवा योग्य |शुचि पुं ९७ सूर्य शीर्षण्य पुं ५७० निर्मळ केश... शुचि पुं ९९ किरण. शीर्षण्य न. ७६८ माथानी पाघडी, टोप | | शुचि पुं १५४ अषाढ महिनो शील न. पुं ८४४ शुद्ध आचार शुधि पुं १०९९ अग्नि शील न. पुं १३७७ स्वभाव
शुचि पुं १३९२. सफेद शीलक न. ५७४ (शे. १२०) काननो मूल | शुचि. न. १४३६. उज्ज्वल, निर्मल . भाग
शुचि पुं ११०७ (शे. १७२) वायु, पवन शुक पुं १३३५ पोपट ..
(शुण्ठि) स्त्री ४२० सूंठ शुकपुच्छ पुं १०५८ गन्धक
शुण्ठी स्त्री ४२० सूंठ शुक्त न. ४१५ राब, कांजी
शुण्ड स्त्री पुं ९०३ मदिरा शुक्ति स्त्री १२०४. मोतीनी छीप शुण्ड स्त्री २०६ मदिरा पीवानुं स्थान, शुक्तिज न. १०६८ मोती .
. दारुचें पीएं शुक्र पुं ११९ शुक्र ग्रह . . शुण्ड स्त्री १२२४ ढूंढ शुक्र पुं न. १५४ जेठ महिनो शुण्डल पुं १२१८ (शे. १७७) हाथी शुक्र न. ६२९ वीर्य ..
.शुतुद्रि स्त्री १०८४ सतलज नदी शुक्र पुं १०९८ अग्नि
शुद्धकर्मन् न. ८११ सारुं आचरण " शक्र न. १०४४ (शे. १६३) सोनुं । | शुद्धमति पुं ५३ गइ उत्स.ना २१मा शुक्रकर पुं ६२८ मज्जा
तीर्थकर शुक्रज पुं ९३ सातमा वैमानिक देव . |शुद्धान्त पुं न. ७२७ अन्तःपुर शुक्रशिष्य पुं. २३८ असुर, दानव शुद्धोदनसुत पुं २३७ शाक्यसिंह, गौतम