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। अभिधानचिन्तामणिनाममाला . ३०६ . शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ . शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ (वृषवाहन) पुं ९ (प.) शंकर | वेणि स्त्री ५७० वेणी, सर्पाकारे गूंथेलो वृषस्यन्ती स्त्री ५२७ मैथुननी इच्छावाळी स्त्री | चोटलो वृषाकपि पुं २१५ विष्णु
वेणी स्त्री १०८७ प्रवाह वृषाकपि पुं १०९८ अग्नि
वेणी स्त्री १२७७ घेटी वृषाक्रान्ता स्त्री १२६७ सांढनो संयोग |(वेणी) स्त्री ५७० वेणी, सर्पाकारे गूंथेलो पामेली गाय
चोटलो वृषाक्ष पुं. २१९ (शे. ७१) विष्णु | वेणु पुं ११५३ वांस वृषाङ्क पुं १९५ शंकर .
वेणुक न. १२३० वांसनो परोणो वृषाङ्क पुं ७ (प.) शंकर . | वेणुतटीभव न. १०४४ (शे. १६४) सोनुं वृषासन पुं ९ (प.) शंकर
| वेणुध्म पुं ९२५ वांसळी वगाडनार वृषी स्त्री ८१६ तपस्वी वि.नुं दाभनुं आसन | वेतन पुं ३६२ पगार वृषोत्साह पुं २१९ (शे. ६८) विष्णु वेतन न. ८६५ आजीविका वृषोपगा स्त्री १२६६ गर्भाधान माटे सांढ | वेतस पुं स्त्री ११३७ नेतर
पासे जनारी गाय वेतस्वत् पुं ९५४ बहु नेतरवाळो प्रदेश वृष्टि स्त्री १६६ वरसाद
वेत्रधर पुं ७२१ (शि. ६२) द्वारपाळ वृष्टिजीवन पुं ९५५ वरसादना पाणी वडे | वेत्रासन न. ६८४ नेतरनी खुरशी
अनाज थाय तेवो देश | वेत्रिन् पुं ७२१ द्वारपाळ वृष्णि पुं १२७६ घेटो
| वेद पुं २४९ वेद वृष्णि पुं १०० (शि. ८) किरण वेद पुं २५३ १४ विद्या पैकी ७-८-९-१० (वृष्णिदशा) स्त्री २४५ बारमुं उपांग सूत्र | | प्रकारनी विद्या (चार वेद) वृष्य पुं ११७१ अडद
वेदगर्भ पुं २११ ब्रह्मा वृसी स्त्री ८१६ (शि. ७१) दाभनुं आसन | वेदगर्भ पुं ८१३ ब्राह्मण
(तपस्वि वि.y) | वेदना स्त्री १३७० दुःख, पीडा वृहद्गृह पुं ९५९ कारुष देश | वेदव्यास पुं ८४६ व्यास ऋषि वेग पुं ४९४ वेग
वेदहीन पुं ८५६ स्वाध्याय विनानो ब्राह्मण वेगवत् पुं १६५ वेगवाळो वरसाद । | वेदान्त पुं. २५० वेदनो सार उपनिषद् वेगसर पुं १२५३ खच्चर | (वेदि) स्त्री १००४ वेदिका, संस्कार करायेली भूमि