________________
अभिधानचिन्तामणिनाममाला . ३००
शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शब्द/लिंग / श्लोक / अर्थ विशालाक्ष पुं २०० (शे. ४४) शंकर | विश्वभू पुं २३६ त्रीजा बुद्ध विशालाक्षी स्त्री २०५ (शे. ५६) पार्वती | विश्वभेषज न. ४२० सूंठ विशिख पुं.७७८ बाण
विश्वम्भर पुं २१५ विष्णु, कृष्ण विशिखा स्त्री ९८१ शेरी
विश्वम्भरा स्त्री ९३५ पृथ्वी विशुद्ध न. १४३६ निर्मळ, उज्ज्वल |विश्वरूप पुं. २१५ विष्णु, कृष्ण विशेष पुं १५१५ भिन्न भिन्न स्वरूप, भेद | विश्वरेतस् पुं.२१२ ब्रह्मा विशेषक पुं न. ६५३ केसर चंदनादिनुं | विश्वविधात पुं. ५ (प.) ब्रह्मा
तिलक, चांदलो, टीखें | विश्वसू पुं५ (प.) ब्रह्मा विशोक पुं १३२५ (शे. १९३) कुकडो | विश्वसृज् पुं ५ (प.) ब्रह्मा विश्रम्भ पुं १५१८ विश्वास
(विश्वसृज) पुं २१२ ब्रह्मा विश्राणन न. ३८७ दान, त्याग विश्वसेनराज्पुं३७ श्री शांतिनाथ भ.ना पिता विश्रुत पुं १४९३ प्रसिद्ध, प्रख्यात . | विश्वस्ता स्त्री ५३० विधवा स्त्री विश्व न. १३६५ लोक, जगत विश्वस्त्रष्ट पुं ५ (प.) ब्रह्मा विश्व न. १४३३ समस्त, घj विश्वा स्त्री न. ४२० सूंठ विश्वकद्रु पुं १२८१ शिकारी कूतरो विश्वा स्त्री ९३५ पृथ्वी (विश्वकर) पुं ५(प.). ब्रह्मा विश्वामित्र पुं ८५० विश्वामित्र ऋषि (विश्वकर्तृ) पुं ५ (प.) ब्रह्मा (विश्वावसु) पुं १८३ हाहा वगेरे गन्धर्व देव विश्वकर्मन् पुं १८२ विश्वकर्मा, विश्वास पुं १५१८ खात्री, श्रद्धा
देवोनो शिल्पी विश्वदेव पुं ८९ (शे. ७) गणदेवता (विश्वकारक) पुं ५ (प.) ब्रह्मा विष् न. ६३४ (शि. ५०) विष्टा, मळ विश्वकृत् पुं १८२ विश्वकर्मा, विष पुं ११९५ झेर
देवोनो शिल्पी विष न. १०७० (शे. १६५) पाणी विश्वकृत् पुं ५ (प.) ब्रह्मा विषण्णता स्त्री ३१२ मननी पीडा, खेद (विश्वजनक) पुं ५ (प.) ब्रह्मा विषदर्शनमृत्युक पुं १३४० जीवंजीव विश्वद्यञ्च् (वि.) ४४४ सर्व तरफ जनार, पक्षी, जे झेर जोतां ज मरी जाय छे ते
सर्व व्यापक, सर्वने पूजनार | विषधर पुं१३०३ सर्प, नाग विश्वभुज पुं २१९ (शे. ७४) विष्णु, कृष्ण | विषभिषज् पुं.४७४ वषवैद्य, गारुडी