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अभिधानचिन्तामणिनाममाला . २९८ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ विभ्रम स्त्री १५१२ शोभा, कान्ति विरागाह पुं ४९० वैराग्यने योग्य विभ्रमादिवियुक्तता स्त्री ६९ भ्रान्ति वगेरे | विराटज पुं १०६६ विराट देशमा उत्पन्न दोष रहित प्रभुनी वाणीनो २६मो गुण
थयेल हीरो विमनस् पुं ४३५ दुष्ट चित्तवाळो विराव पुं १४०० शब्द, ध्वनि विमर्शन न. ३२२ विचारणा
विरिञ्च { २११ ब्रह्मा विमल पुं २७ १३मा तीर्थकर भगवान विरिञ्चन पुं२१३ ब्रह्मा विमल पुं ५१ गई चोवीशीग विरिञ्चि पुं.२११ ब्रह्मा
पांचमा तीर्थंकर भगवान | विरुद्धशंसन न. २७२ गाळ, विमलन. १४३६ उज्ज्वल, स्वभावथी निर्मल ।
न.बोलवालायक बोलवू ते विमलाद्रि पुं. १०३० शत्रुजय गिरिराज | विरुद्धोक्ति स्त्री २७६ परस्पर विरुद्ध बोलवू ते विमातृज पुं ५४६ ओरमान भाई (विरूढ) पुं ११८३ फणगा, नवा अंकुर विमान पुं न. ८९ देवोनुं विमान विरूढक पुं ११८३. फणगा, नवा अंकुर (विमानयान) पुं ८९ देव
विरूपाक्ष पुं १९७ शंकर (विमानिक) पुं ८९ देव
विरोक पुं १०० किरण विमुद्र न. ११२९ बिडायेलु (पुष्प) | विरोचन पुं ९७ सूर्य वियत् न. १६३ आकाश
विरोचन पुं १०९७ अग्नि वियद्भूति न. १४६ (शे. २१) अंधकार | | विरोध पुं ७३० वैर, विरोध वियात पुं ४३२ धीट्ठो, अविनीत, निर्लज्ज | विलक्ष पुं ४३३ विस्मय पामेल वियाम पुं६०० (शे. १२५) वांभ, बंने हाथ | विलक्षण न. १४९७ विचाररहित प्रयोजन
लांबा करे तेटली लंबाई - विनानी स्थिति वियोग पुं १५११ छूटा थर्बु, विरह | विलग्न न. ६०७ शरीरनो वचलो भाग, विरजस् स्त्री २०५ (शे. ५९) पार्वती
___ कंदोरो बांधवानी जग्या विरति स्त्री १५२२ निवृत्ति, अटकवू | विलङ्का स्त्री २०५ (शे. ५८) पार्वती विरल न. १४४७ छूटुं छवायुं, ओछु | विलम्बित न. २९३ मन्दगति वाळु नृत्य विरलजानुक पुं ४५६ वच्चे अंतरवाळा | विलम्भ पुं १५१९ अतिशय दान
ढींचणवाळो विलाप पुं २७५ शोक करवो, विरह पुं १५११ वियोग, विच्छेद
रुदनपूर्वक बोलवू ते