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________________ अभिधानचिन्तामणिनाममाला . २७२ - शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ स्य पुं १०८७ प्रवाह रसजात न. १०५३ (शि. ९२) रसांजन, ख्लक पुं ६७० उन, वस्त्र, कांबल . हिंगळोक ख पुं १४०० शब्द, ध्वनि । रसज्ञा स्त्री ५८५ जीभ. खण पुं ३४८ शब्द करनार रसज्येष्ठ पुं १३८८ मधुर रस खण न. १०४९ कांसु रसतेजस् न. ६२१ लोही रवण पुं १२५४ ऊंट रसना स्त्री ५८५ जीभ रवि पुं ९५ सूर्य 'रसना' स्त्री ६६४ मेखला (रविसारथि )पुं१०२ सूर्यनो सारथि, अरुण | रसनारद पुं १३१७ (शे. १२७) पक्षी रशना स्त्री ६६४ स्त्रीनी केडनो कंदोरो, रसनालिह पुं १२८० कूतरो मेखला रसनेत्रिका स्त्री १०६० मणसील धातु 'रशना' स्त्री ५८५ जीभ रसभव न. ६२१ लोही रश्मि पुं ९९ किरण . ( रसमय) पुं १०७५ सात समुद्र पैकी रश्मि स्त्री १२५२ दोरी, लगाम बीजो समुद्र रश्मिकलाप पुं ६५९ चोपन सेरनो हार | रसमातृका स्त्री ५८५ (शे. १२३) जीभ रस पुं ३२७ विभाव, अनुभाव अने रसवती स्त्री ९९८ रसोडुं व्यभिचारी भावोथी व्यक्त थतो रस | रसशोधन पुं ९४४ टंकणखार स्स पुं ४०४ मग वगेरेनुं ओसामण | रसा स्त्री ९३७ पृथ्वी रस पुं६१९ शरीरनी सात धातु पैकी पहेली धातु | रसा स्त्री ५८५ (शे. १२३) जीभ स्स पुं ६२० खाधेला अन्न वगेरेनुं रसा स्त्री १३६३ (शि. १२२) पाताल, शरीरमां थतुं परिणाम . नागलोक रस पुं १०५० पारो 'रसा' स्त्री ११५२ शरु रस पुं ११९५ विष, झेर रसाग्र न. १०५३ (शि. ९२) पित्तलमाथी स्स पुं १३८९ खारो, मीठो वगेरे छ रस बनतुं एक अंजन स्स पुं १०६३ (शि. ९४) हीराबोळ रसातल न. १३६३ पाताल, नागलोक रसक पुं ४१३ उकाळेलुं रस रसादान न. ३९४ सूकाई जर्बु रसगर्भ न. १०५३ हिंगळोक, रसांजन | रसापायिन् पुं १२८० (शे. १८१) कूतरो स्सज पुं (ब.व.) १३५६ मदिराना कीडा | रसायन न. ४०९ छास
SR No.016120
Book TitleShabdamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherShantijin Aradhak Mandal
Publication Year2000
Total Pages474
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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