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अभिधानचिन्तामणिनाममाला . १६२ | शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ - शब्द/लिंग / श्लोक / अर्थ द्रोणवाप पुं ९६९ द्रोण (एक जात, माप) | द्वापर पुं न १३७५ संदेह, संशय
प्रमाण धान्य वावी शकाय तेवू खेतर | द्वार स्त्री १००४ बार| द्रोणी स्त्री ८७७ लाकडा अने पाणीने वहन | द्वार न. १००४ द्वार, बार|
करनारुं भाजन विशेष | द्वारका स्त्री ९८० द्वारकानगरी द्रोणी स्त्री १०३४ बे पर्वतनां द्वारपालक पुं ७२१ द्वारपाळ
संबंधवाळी भूमि . | | द्वारयन्त्र न १००५ ताळु द्रोह पुं १५१५ अपकार . . द्वारवती स्त्री. ९८० द्वारकानगरी द्रोहचिन्तन न १३७२ द्रोह चिन्तववो ते द्वारवृत्त न ४२० (शे. १०२) काळां मरी द्रौणिक पुं ९६९ एक द्रोण अनाज वावी । द्वारस्थ पुं ७२१ द्वारपाळ शकाय तेवू खेतर अने तेटलुं अनाज रांधी | (द्वारावती) स्त्री. ९८० द्वारका नगरी शकाय तेवं वासण, कडायो
द्वि वि (द्वि व) १४२३ बे, बन्ने द्रौपदी स्त्री ७१० द्रौपदी
द्विक पुं १३२२ कागडो द्वन्द्व न ५३८ स्त्री-पुरुष- जोडलं. द्विककुद् पुं १२५४ ऊंट द्वन्द्व न ७९७ युद्ध
| द्विखण्डक पुं ६७५ (शे. १३७) रजाइ, टाढ द्वन्द्व न १४२४ युगल, बेनुं जोड़े ____ अने पवन रोकवा माटे ओढवानुं वस्त्र द्वन्द्वचर पुं १३३० चक्रवाक पक्षी, चकवो | द्विगुणाकृत न १६८ बेवार खेडेलु खेतर द्वय स्त्री न १४२३ युगल
द्विज पुं ५८३ दांत द्वयस त्रि ६०१ प्रमाणवाचक प्रत्यय द्विज पुं ८०७ ब्राह्मण, ४ वर्ण पैकी (द्वाःस्थ) पुं ७२१ द्वारपाळ
प्रथम वर्ण द्वाःस्थित पुं ७२१ द्वारपाल
द्विज पुं ८१२ ब्राह्मण द्वाःस्थितिदर्शकपुं७२१ (शे. १४१) द्वारपाळ | द्विज पुं १३१६ पक्षी द्वादशमूल पुं २१९ (शे. ६६) विष्णु, नारायण | द्विजपति पुं १०४ चन्द्र द्वादशाक्ष पुं २०९ कार्तिकेय, शंकरनो पुत्र | द्विजन्मन् पुं ८१२ ब्राह्मण द्वादशाक्ष पुं २३४ बुद्ध
द्विजब्रुव पुं ८५५ फक्त जातिथी द्वादशाङ्गी स्त्री २४५ द्वादशांगी, गणिपिटक
जीवनार ब्राह्मण द्वादशात्मन् पुं ९६ सूर्य
द्विजाति पुं ८१२ ब्राह्मण द्वादशार्चिष् पुं ११८ गुरु, बृहस्पति | द्विजिह पुं ३८० दुर्जन