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शब्दमाला
शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ.. 'जम्बूक' पुं १२८९ शियाळ ( जम्बूद्वीपपप्रज्ञप्ति ) स्त्री २४५ ५मुं उपांगसूत्र जम्बूस्वामिन् पुं ३३ चरम केवली जम्बूस्वामी जम्भ पुं १७५ इन्द्रनो शत्रु जम्भ पुं ५८३ दाढ जम्भ पुं न. ११४९ लींबु
जरत् पुं १४४९ जुनुं, पुरातन
जरत्तर पुं ३४० (शि. २१) अति घरडो जरद्रव पुं १२५८ घरडो बळद
जन्त पुं १२८२ पाडो
जरा स्त्री ३४० वृद्धावस्था जराभीरु पुं २२७ कामदेव जरायु पुं ५४० गर्भाशय, गर्भस्थान जरायुज (ब.व.) पुं १३५६ मनुष्य, गाय वगेरे ( जरासन्ध ) पुं ६९९ मगध देशनो राजा (प्रतिवासुदेव)
जय पुं ११७२ पीळा मग जय पुं १७४ (शे. ३१) इन्द्र जयत पुं २०० शंकर जयदत्त पुं १७५ शंकरनो पुत्र जयवाहिनी स्त्री १७५ इन्द्राणी
जरिन् पुं ३४० स्थविर, वृद्ध जर्ण पुं १०५ (शे. १२) चंद्र, चंद्रमा जर्त्तिल पुं ११७९ जंगली तल जल न. १०६९ पाणी
जयन्त पुं १७५ इन्द्रनो पुत्र
( जयन्त ) पुं ९४ ३जा अनुत्तर विमानना देवो जल न. ११५८ सुगंधी वाळो, खस
जयन्ती स्त्री १७६ इन्द्रनी पुत्री
(जलकपि) पुं १३५० पाणीनो वांदरो,
जयन्ती स्त्री २०५ (शे. ५८) पार्वती
जयन्ती स्त्री ७५० (शि. ६४) दंडमां नाखेल
होते. ध्वज
शिशुमार मच्छ जलकान्तार पुं १८८ वरुणदेव जलकान्तारपुं ११०७ (शे. १७३) वायु, पवन 'जलकुक्कुभ पुं १३३८ जल कुकडी
जलज न. ११६२ कमल जलजन्मन् न. ११६२ कमल
( जम्भद्विष्) पुं १७५ इन्द्र 'जम्भर' पुं ११४९ लींबु जम्भल पुं १९४९ लींबु 'जम्भीर' पुं ११४९ लींबु जय पुं १७५ इन्द्रनो पुत्र जय पुं ६९४ ११मा चक्रवर्ती जय पुं ८०३ विजय
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शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ जय्य पुं ७९३ जीती शकाय तेवो जरठ पुं १३८७ कठिन, कठोर स्पर्श जरढ पुं १३८७ (शि. १२६) कठोर स्पर्श जरण पुं ४२२ ( शे. १०३ ) जीरुं जरत् पुं ३३९ वृद्ध, स्थविर
जया स्त्री ४० १२मा भगवाननी माता जया स्त्री २०५ (शे. ४९) पार्वती जया स्त्री २०५ पार्वतीनी सखीओ