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शब्दमाला . १२७
शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ | शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ छुछुन्दरी स्त्री १३०१ छुछुन्दरी
जगद्दीप पुं ९८ (शे. १०) सूर्य छुरिका स्त्री ७८४ (शि. ६८) छरी जगद्रोणि पुं २०० (शे. ४८) शंकर छुरी स्त्री ७८४ छरी
जगद्वहा स्त्री ९३८ (शे. १५७) पृथ्वी छेक पुं ३४३ अत्यन्त होशियार जगनाथ पुं २१८ विष्णु छेक (ब.व.) पुं १३४३ घरे पाळेला पशु, पक्षी | जगर पुं ७६६ बख्तर, कवच छेकाल पुं ३४३ (शे. ९२) अत्यन्त . जगल पुं ९०४ मदिरानो कादव, - होशियार
मधनो नीचलो भाग छेकिल पुं ३४३ (शे. ९२) अत्यन्त जग्धि पुं ४२३ भोजन, खावू
होशियार | जघन न. ६०८ स्त्रीनी केडनो आगलो भाग छेद पुं ३७२ कापवू
जघनेफला स्त्री ११३३ काळा उंबरानुं वृक्ष, छेदित पुं १४९० छेदायेलु, कापेलुं
घुलरडो
| जघन्य न. १४५९ छेलं, पाछलुं ज पुं ६ (प.) जनक-कारण वाचक शब्दथी | जघन्यज पुं ५५२ नानो भाई
लगाडातो शब्द दा.त. जलज जघन्यज पुं ८९४ शूद्र जकुट पुं न. १४२४ (शि. १२७) युगल, जङ्गम न. १४५४ जंगम, हालतुं चालतुं
बेनुं जोड़ें जङ्गमान्यत् न. १४५४ स्थावर, स्थिर जक्षण न. ४२३ खावं, भोजन .. जङ्गल पुं. न. ६२२ मांस जगच्चक्षुष् पुं ९८ सूर्य
जङ्गल पुं न. ९५३ पाणी वगरनो देश जगत् न. १३६५ लोक, दुनिया जङ्घा स्त्री ६१४ जांघ जगत् न. १४५४ हालतुं चालतुं, जंगम जङ्घाकर पुं ४९४ (शि. ३८) खेपीयो जगती स्त्री ९३७ पृथ्वी
जङ्घाकरिक पुं ४९४ खेपीयो जगती स्त्री १३६५. लोक, दुनिया जङ्घात्राण न. ७६८ जांघनुं बख्तर जगत्कर्तृ पुं २१२ ब्रह्मा ..
जङ्घाल पुं ४९४ वेगवाळो जगत्प्रभु पु २४ अरिहंत, तीर्थंकर जटा स्त्री ८१६ मस्तक उपरना मोटा वाळ जगत्प्राण पुं ११०७ पवन, वायु जटा स्त्री ११२० झाडर्नु मूळ जगत्साक्षिन् पुं ९८ सूर्य
जटाजूट पुं २०० शंकरनी जटा जगत्स्रष्टऋ पुं. २०० (शे. ४८) शंकर | जटाधर पुं २०० (शे. ४७) शंकर