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अलिटि
...अह.. -III. iii. 111
. अलकृ... - III. ii. 136 देखें-पर्यायाहोत्पत्तिषु० III. iii. 111
देखें - अलङ्घनिराकृञ् III. ii. 136 ...अह... - VI. ii. 155
अलड्कृनिराकृप्रजनोत्पचोत्पतोन्मदरुव्यपत्रपवृतवथुदेखें-संपाहि. VI. ii. 155
सहचरः-III. ii. 136 अर्हः -III. 1. 133
अलंपूर्वक कृत्र, निर् आङ् पूर्वक कृत्र, प्रपूर्वक जन, अर्ह धातु से (प्रशंसा गम्यमान हो तो वर्तमान काल में उत्पूर्वक पच,उत्पूर्वक पत, उत्पूर्वक मद,रुचि,अपपूर्वक शतृ प्रत्यय होता है)।
त्रप, वृतु, वृधु सह, चर - इन धातुओं से (वर्तमान काल अर्हति - IV. iv. 137
में तच्छीलादि कर्ता हो तो इष्णुच प्रत्यय होता है)। (द्वितीयासमर्थ सोम प्रातिपदिक से) 'अर्हति' अर्थात् अलङ्कल्वोः -III. iv. 18 'समर्थ है' - इस अर्थ में (य प्रत्यय होता है)। (प्रतिषेधवाची) अलं तथा खलु शब्द उपपद रहते अर्हति - V.i. 62
(प्राचीन आचार्यों के मत में क्त्वा प्रत्यय होता है)। (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिकों से) 'समर्थ है' - इस अर्थ
__ अलङ्गामी –v.ii. 15 में (यथाविहित प्रत्यय होते है)।
(द्वितीयासमर्थ अनुगु प्रातिपदिक से) पर्याप्त जाता है'. .
अर्थ में (ख प्रत्यय होता है)। अहम् - V.i. 116
अलम् -I. iv. 63 (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिकों से) योग्यताविशिष्ट क्रिया
(भूषण अर्थ में वर्तमान) अलम् शब्द (क्रियायोग में गति वाच्य हो तो (वति प्रत्यय होता है)।
और निपातसंज्ञक होता है)। अर्हात् - V.i. 19
...अलम्... - II. iii. 16 (यहाँ से आगे) अर्ह = 'तदर्हति' पर्यन्त कहे हुए अर्थों
देखें- नमःस्वस्तिस्वाहा. II. iii. 16 में (सामान्यतया ठक् प्रत्यय अधिकृत होता है; गोपुच्छ,
अलम् -III. iii. 154 संख्या तथा परिमाणवाची शब्दों को छोड़कर)।
अलम् अथवा तत्समानार्थक शब्द के (प्रयोग के बिना अh -III. iii. 169
ही यदि उसका अर्थ प्रतीत हो रहा हो तो पर्याप्तिविशिष्ट योग्य कर्ता वाच्य हो तो (धातु से कृत्यसंज्ञक, तृच् तथा सम्भावना) अर्थ में (धात से लिङ् लकार होता है)। चकार से लिङ्प्रत्यय होते है)।
अलम्... - III. iv. 18 . अलः -I.i.51
देखें- अलकुल्वोः III. iv. 18 . (षष्ठीनिर्दिष्ट को कहा आदेश अन्त्य) अल् के स्थान में ...अलमर्थाः -VI. ii. 155 (होता है)।
देखें-संपाधहVI. ii. 155 अल: -I.i.64 -
अलमर्थेषु -III. iv. 66 (अन्त्य) अल् से (पूर्व जो अल्,उसकी उपधा संज्ञा होती ____ सामर्थ्य अर्थ वाले (परिपूर्णतावाची) शब्दों के उपपद
रहते (धातु से तुमुन् प्रत्यय होता है)। ....अलङ्कर्म... - V.iv.7
...अलम्पुरुष... - V. iv.7 देखें- अपडक्षाo V. iv.7
देखें- अषडक्षा० V. iv.7 अलङ्कारे - IV. iii. 65 .
अलर्षि - VII. iv. 65 (सप्तमीसमर्थ कर्ण तथा ललाट शब्दों से 'भव' अर्थ में) अलर्षि शब्द (वेदविषय में) निपातन किया जाता है। आभूषण अभिधेय हो तो (कन् प्रत्यय होता है)। अलिटि - VII. 1. 37 ...अलङ्कारेषु -IV. 1. 95
(मह धातु से उत्तर) लिट्-भिन्न (वलादि आर्धधातुक) देखें- श्वास्यलारेषु IV. 1. 95 .
परे रहते (इट को दीर्घ होता है)।