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अर्थस्य
अर्थस्य -I. ii. 56
अर्द्धहस्वम् - I. ii. 32 (प्रधानार्थवचन तथा प्रत्ययार्थवचन अशिष्य होते है). (उस स्वरित गुणवाले अच् के आदि की) आधी मात्रा अर्थ के (अन्य अर्थात् लोक के अधीन होने से)। (उदात्त और शेष अनुदात्त होती है)। ...अर्थाभाव... -II.i.6
अर्थात् - IV. iii.4 देखें-विभक्तिसमीपसमृद्धि II. 1.6
अर्ध प्रातिपदिक से (शैषिक यत् प्रत्यय होता है)। अर्थे -VI. ii. 44
...अर्थात् - V... 47 अर्थ शब्द उत्तरपद रहते (चतुर्थ्यन्त पूर्वपद को प्रकृति- देखें - पूरणार्धात् v. i. 47
अर्थात् - V. iv. 100 स्वर हो जाता है)।
अर्ध शब्द से उत्तर (भी जो नौ शब्द.तदन्त तत्पुरुष से अर्थे - VI. iii. 99
समासान्त टच् प्रत्यय होता है)। अर्थ शब्द उत्तरपद हो तो (अषष्ठीस्थित तथा अतृतीया
...अर्थात् -VII. iii. 12 स्थित अन्य शब्द को विकल्प करके दुक् आगम होता है)। देखें - ससर्वार्धात् VII. iii. 12 अर्थेन - II. 1. 29
अर्थात् - VII. iii. 26 (तृतीयान्त सुबन्त तृतीयान्तार्थकृत गुणवाची शब्द के अर्ध शब्द से उत्तर (परिमाणवाची उत्तरपद के अचों में साथ तथा) अर्थ शब्द के साथ (समास को प्राप्त होता है, आदि अच् को वृद्धि होती है,पूर्वपद को तो विकल्प से और वह तत्पुरुष समास होता है)।
होती है; जित,णित् तथा कित् तद्धित परे रहते)। ...अर्दयतिभ्यः - III. 1.51
...अर्पिते-VI.i. 203 देखें-ऊनयतिध्वनयति III. 1. 51
देखें - जुष्टार्पिते I. . 203 अः - VII. ii. 24
अमें - VI. ii. 90 . (सम्,नि तथा वि उपसर्ग से उत्तर) अ धातु को (निष्ठा -
___ अर्म शब्द उत्तरपद रहते (भी महत् तथा नव से भिन्न परे रहते इट् आगम नहीं होता)।
. दो अचों वाले तथा तीन अचों वाले अवर्णान्त पूर्वपद को ...अर्घ... -I.i. 32
आधुदात्त होता है)। देखें-प्रथमचरमतयाल्पाकतिपयनेमाः I.1.32 अर्य:-III. 1. 103
अर्य शब्द का (स्वामी और वैश्य अर्थ में निपातन होता अर्धम् -II. ii.2 • (नपुंसकलिंग में वर्तमान) अर्ध शब्द (एकाधिकरणवाची
...अर्यमादीनाम् - v. iii. 84 एकदेशी सुबन्त के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होता
देखें-शेवलसुपरिov.iii.84 है और वह तत्पुरुष समास होता है)।
...अर्यम्णाम् -VI.iv. 12 ...अर्धमास... - V. ii. 57
देखें - इन्हन्यूषार्यम्णाम् VI. iv. 12 देखें- शतादिमासा० V.ii. 57
अर्वणः - VI. iv. 127 अर्धर्चा: - II. iv. 31
अर्वन् अङ्गको (तृ आदेश होता है.यदि अर्वन शब्द से अर्धर्च आदि गणपठित शब्द (पुंल्लिग और नपुंसक- परे सुन हो तथा वह अर्वन् शब्द नञ् से उत्तर भी न हो)। लिङ्ग दोनों में होते है)।
अर्शआदिभ्यः -V.ii. 127 अर्धस्य - VIII. ii. 107
अर्शस आदि गणपठित प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ में अच (दूर से बुलाने के विषय से भिन्न विषय में अप्रगृह्य
प्रत्यय होता है)। सज्ञक एच के पूर्व के) अर्ध भाग को (प्लुत करने के अर्हः -III. 1. 12 प्रसंग में आकारादेश होता है तथा उत्तरवाले भाग को पूजार्थक अर्ह धातु से (कर्म उपपद रहते अच प्रत्यय इकार, उकार आदेश होता है)।
होता है)।