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अलिटि
अवक्रयः
अलिटि-VIII. 1.62 लिभिन्न (इडादि) प्रत्यय परे रहते (रघ अङ्ग को नुम् आगम नहीं होता)। अलुक्-IV.i. 89
(प्राग्दीव्यतीय अजादि प्रत्यय की विवक्षा हो तो गोत्र में उत्पन्न प्रत्यय का) लुक नहीं होता। अलुक् -VI. iii. 1
'अलक' (तथा 'उत्तरपदे' पद) का अधिकार आगे के सूत्रों में जाता है। 'अलोपे-VI. iii. 93
(तिरस शब्द को तिरि आदेश होता है, यदि अच का) लोप न हुआ हो तो।। अलोम... - VI. ii. 117
देखें- अलोमोपसी VI. ii. 117 अलोमोषसी --VI. ii. 117 (सु से परे मन अन्तवाले तथा अस अन्त वाले उत्तरपद शब्दों को बहुव्रीहि समास में आधुदात्त होता है), लोम तथा उषस् शब्दों को छोड़कर।
...अल्प..-I.i. 32. । देखें-प्रथमचरमतयाल्पार्धकतिपयनेमाः I.i. 32 . ...अल्प.. -II iii. 33
- देखें - स्तोकाल्पकृच्छ्र. II. iii. 33 ...अल्पयोः - V. iii.64
देखें - युवाल्पयो: V. iii. 64 - अल्पशः - II. I. 36
। कुछ (पञ्चम्यन्त सुबन्त अपेत, अपोढ, मुक्त. पतित. - अपत्रस्त - इन समर्थ सुबन्तों के साथ विकल्प से समास
को प्राप्त होते हैं और वह तत्पुरुष समास होता है)। अल्याख्यायाम् - IV.i:51 (करणपूर्व अनुपसर्जन क्तान्त प्रातिपदिक से) थोड़े की आख्या गम्यमान हो तो (स्त्रीलिङ्ग में ङीष प्रत्यय होता है)। अल्पाख्यायाम् - V. iv. 136
थोड़े की आख्या होने पर (बहुव्रीहि समास में गन्ध शब्द को समासान्त इकारादेश होता है)। अल्पान्तरम् -II. ii. 34
अपेक्षाकृत कम अच् वाला शब्द रूप (द्वन्द्व समास में पूर्व प्रयुक्त होता है)।
....अल्पार्थात् - V. iv. 42
देखें - बह्वल्पार्थात् V. iv. 42 अल्पे-v.ii. 85 'थोड़ा' अर्थ में वर्तमान (प्रातिपदिक से तथा तिङन्त से यथाविहित प्रत्यय होते है)। अल्लोपः - VI. iv. 111
(श्नम् प्रत्यय तथा अस् धातु के) अकार का लोप होता है ; (कित, डित् सार्वधातुक परे रहते)। अल्लोप: -VI. iv. 134
(भसज्ञक अन् अन्तवाले अङ्ग के अन् के) अकार का लोप होता है। ...अव्... - VI. 1.75
देखें- अयवाया: VI. 1.75 ...अव.. -I. iii. 22
देखें-समवप्रविश्यः I. I. 22 ...अव... -II. iii. 57.
देखें - व्यवहपणोः II. ill. 57 अव... - III. iii. 26
देखें- अवोदोः III. iii. 26 अव... -III. iii. 45
देखें - अवन्योः III. iii. 45 अव... - V. iv.79
देखें-अवसमन्येभ्यः V. iv.79 ...अव... - V. iv. 81
देखें - अन्ववतप्तात् V. iv.81 ...अव.. -VI. iv. 20
देखें-ज्वरत्वर० VI. iv. 20 ...अक: - V. iii. 39
देखें-पुरधवः V. iii.39 ...अव: - VIII. ii. 70
देखें - अग्नरुधरव: VIII. ii. 70 ...अवक्रमुः...-VI. I. 112
देखें - अव्यादवद्यात VI. 1. 112 अवक्रयः - IV. iv. 50
(षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से) अवक्रय अर्थ में (ठक प्रत्यय होता है)।
अवक्रय =नियत मूल्य पर नियत काल के लिये किसी द्रव्य का लेना।