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अमूर्खप्रभृत्युदर्केषु
अयज्ञे
अमूर्खप्रभृत्युदर्केषु - VI. ii. 83
अम्बे-VI.i. 114 (वेद-विषय में समान शब्द को स आदेश हो जाता है), (अम्बिके शब्द से पूर्व) अम्बे, (अम्बाले - ये दो) पद मूर्धन,प्रभृति और उदर्क शब्द उत्तरपद न हों तो। (यजुर्वेद में पठित होने पर अकार परे रहते प्रकृतिभाव से अमूर्धमस्तकात् - VI. iii. 11
रहते हैं)। मूर्धन् तथा मस्तकवर्जित (हलन्त एवं अदन्त स्वाङ्ग ...अम्भस्... -VI. iii. 3 वाची) शब्दों से उत्तर (कामभिन्न शब्द उत्तरपद रहते देखें - ओजसहोम्भस्० VI. iii.3 . सप्तमी का अलुक् होता है)।
...अम्भसा - IV. iv.27 ...अमो: -VII..23
देखें - ओजसहोम्भसा IV. iv. 27 देखें- स्वमो: VII. I. 23
अम्शसो:-VI.1.90 अमौ... -III. iv.91
(ओकारान्त से) अम तथा शस विभक्ति के (अच) परे देखें-वामौ III. iv.91
रहते (पूर्व पर के स्थान में आकार एकादेश होता है,संहिता अम्नस् -VIII. 1.70
के विषय में)। देखें- अम्नरुधर VIII. ii. 70 ..
अम्शसो: - VI. iv. 80 अग्नरुधरवर् -VIII. ii. 70
अम् तथा शस विभक्ति के परे रहते (स्त्री शब्द को अम्नस, ऊधस, अवस्- इन पदों को (वेदविषय में रु विकल्प से इयङ आदेश होता है)। एवं रेफ,दोनों ही होते है)।
अय्... -VI.i. 75
. अम्परे -VIII. iii.6
देखें - अयवायाव: VI.i.75 अम् प्रत्याहार परे है जिससे,ऐसे (खय) के परे रहते (पुम्
अय् -VI. iv.55 को रु होता है, संहिता में)।
(आम, अन्त, आलु,आय्य,इलु, इष्णु - इनके परे रहते अम्ब.. - VIII. iii.97
णि को) अय् आदेश होता है। देखें- अम्बाम्ब० VIII. 11.97
अय् - VII. ii. 111 अम्बाम्बगोभूमिसव्यापद्वित्रिकुशेकुशक्वइगुमञ्जिपुझिपरमेबहिर्दिव्यग्निभ्यः -VIII. iii.97
__(इदम् शब्द के इद् रूप को पुल्लिंग में) अय् आदेश अम्ब, आम्ब, गो, भूमि, सव्य, अप, द्वि, त्रि, कु, शेकु,
होता है,(सु विभक्ति परे रहते)। शकु, अङ्ग,मञ्जि, पुखि,परमे,बर्हिस.दिवि.अग्नि- ...अय..-III. I. 37 इन शब्दों से उत्तर (स्था के सकार को मूर्धन्य आदेश होता देखें- दयायासः III. I. 37:
अयङ्- VII. iv. 22 अम्बार्थ... - VII. ill. 107
(यकारादि कित्, ङित् प्रत्यय परे रहते शीङ् अङ्ग को) देखें - अम्बार्थनघो: VII. ill. 107
अयङ् आदेश होता है। अम्बार्थनद्यो: - VII. iii. 107
अयच् - V. ii. 43 अम्बा = माँ के अर्थ वाले तथा नदीसञक अङ्गों को।
(प्रथमासमर्थ द्वि तथा त्रि प्रातिपदिकों से षष्ठ्यर्थ में (सम्बुद्धि परे रहते ह्रस्व हो जाता है)।
विहित तयप् प्रत्यय के स्थान में विकल्प से) अयच् आदेअम्बाले -VI.i. 114
श होता है। (अम्बिके शब्द से पूर्व अम्बे). अम्बाले - (ये दो) पद अयज्ञपात्रेषु -I. iii.64 (यजुर्वेद में पठित होने पर अकार परे रहते प्रकृतिभाव से यज्ञपात्र से भिन्न विषय में (प्र,उप पूर्वक 'युजिर योगे' रहते है)।
धातु से आत्मनेपद होता है)। अम्बिकेपूर्वे - VI.i. 114
अयज्ञे-III. iii. 32 अम्बिके शब्द से पूर्व (अम्बे, अम्बाले - ये दो पद (प्र पर्वक 'स्तब आच्छादने' धातु से) यज्ञविषय से यजुर्वेद में पठित होने पर अकार परे रहते प्रकृतिभाव से अन्यत्र (कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय रहते है)।
होता है)।
समाजपुजिप
शा, आम्ब,
गोAIL.il.