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अम:
अम:
VII. i. 40
अम् के स्थान में (मश् आदेश होता है, वेद-विषय में) ।
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... अम: - VII. iii. 95
देखें - तुरुस्तुo VII. iii. 95
... अमत्र... - IV. 1. 42
देखें
अमत्रेभ्यः IV. ii. 13
वृत्यमत्राo IV. 1. 42
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(सप्तमीसमर्थ) पात्रवाची प्रातिपदिकों से (भोजन के पश्चात् अवशिष्ट अर्थ में यथाविहित अण् प्रत्यय होता है) ।
अमद्राणाम् - VII. iii. 13
(दिशावाची शब्दों से उत्तर) मद्रशब्दवर्जित (जनपदवाची उत्तरपद) शब्द के (अचों में आदि अच् को तद्धित जित्, णित् तथा कित् प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती है)। अमनुष्यकर्तृके - III. I. 53
मनुष्यभिन्न कर्ता अर्थ में वर्तमान (हन् धातु से कर्म उपपद रहते टक् प्रत्यय होता है)।
.... अमनुष्यपूर्वा - II. Iv. 23
देखें – राजामनुष्यपूर्वा II. iv. 23 अमनुष्ये - IV. ii. 99
( रकु शब्द से) मनुष्य अभिधेय न हो तो (अण् और ष्फक् प्रत्यय होते हैं)।
. अमनुष्ये - IV. ii. 143
. मनुष्यभिन्न अभिधेय हो तो (पर्वत शब्द से विकल्प से छ प्रत्यय होता है, पक्ष में अण्) ।
अमनुष्ये - VI. iii. 121
(अन्त उत्तरपद रहते) मनुष्य अभिधेय न होने पर (उपसर्ग के अणु को बहुल करके दीर्घ होता है)। अमन्त्रे - III. 1. 35
(कास्तथा प्रत्ययान्त धातु से लिट् परे रहते आम् प्रत्यय होता है) यदि मन्त्रविषयक प्रयोग न हो तो ।
.....अमर्षयोः - III. III. 145
देखें - अनववसुपत्यमर्वयोः III. III. 145 अमहत्... - VI. 1. 89 देखें अमहन्नवम् VI. II. 89
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अमहन्नवम् - VI. 1. 89
(नगर शब्द उत्तरपद रहते) महत् तथा नव शब्द को छोड़कर (पूर्वपद को आधुदात्त होता है, यदि वह नगर उदीच्य प्रदेश का न हो तो ) ।
अमा - II. ii. 20
(अव्यय के साथ उपपद का जो समास, वह) अमन्त (अव्यय) के साथ (ही होवे, अन्य के साथ नहीं)। अमायोगे VI. in. 75
अर्ध
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(लुङ्, लङ्, लृङ् परे रहने पर वेद - विषय में माङ् का योग होने पर अटू, आद आगम बहुल करके होते हैं और) माङ् का योग न होने पर (नहीं भी होते) ।
अमावस्यत् - III. 1. 122.
अमा पूर्वक वस् धातु से काल अधिकरण में ण्यत् परे रहते विकल्प से वृद्धि का अभाव निपातन किया गया है।
अमावास्यायाः IV. iii. 30
(सप्तमीसमर्थ) अमावास्या प्रातिपदिक से (जात अर्थ में वुन् प्रत्यय विकल्प से होता है) ।
अमि - VI. 1. 103
(अक् प्रत्याहार से) अम् विभक्ति परे रहते (पूर्वरूप एकादेश होता है)।
अमिति - VII. ii. 34
अमिति शब्द (वेदविषय में ) इडागमयुक्त निपातन है।
...ferent:-V. iv. 150
देखें - मित्रामित्रयो: V. Iv. 150
अमित्रे - III. I. 131
(द्विष धातु से) अमित्र अर्थात् शत्रु कर्त्ता वाच्य हो तो (शतृ प्रत्यय होता है, वर्त्तमान काल में ) ।
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अमु - Viv. 12
(किम्, एकारान्त, तिङन्त तथा अव्ययों से विहित जो तरप् तमप् प्रत्यय - तदन्त से वेद - विषय में) अमुप्रत्यय (तथा आमु प्रत्यय होते है, द्रव्य का प्रकर्ष न कहना हो तो) । अमूर्ध... - VI. ill. 11
देखें- अपूर्वमस्तकात् VI. I. 11 अमूर्ध... - VI. iii. 83
देखें अप्र० VI. III. 83