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अनुपसर्गे
अनुवाकयोः ।
अनुपसर्ग-III.1. 100
उपसर्गरहित (गद,मद,चर और यम् धातुओं से भी यत् प्रत्यय होता है)। अनुपसर्ग-III.1.142 उपसर्गरहित दु और नी धातुओं से 'ण' प्रत्यय होता
अनुपसर्ग-III. 1.3
उपसर्गरहित (आकारान्त धातु से कर्म उपपद रहते क प्रत्यय होता है)। अनुपसर्गे-III. 1.24 .
उपसर्गरहित (श्रि, णी तथा भू धातुओं से कर्तभिन्न । कारक संज्ञा तथा भाव में घञ्प्रत्यय होता है)। अनुपसर्ग-III. HI.61 ... उपसर्गरहित (व्यषु तथा जप धातुओं से कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अप प्रत्यय होता है)। अनुपसर्ग-III. 1.67
उपसर्गरहित (मद् धातु से कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा । भाव में अप् प्रत्यय होता है)। अनुपसर्जनात् - IV.1.14
त्यहॉ से आगे देवयशिशौचि.'IVi81 तक कहे जाने वाले प्रत्यय) अनुपसर्जन = प्रधान प्रातिपदिक से (हुआ करेंगे)। अनुपाख्ये-VI. III. 79 . (अप्रधान) अनमेय के उत्तरपद रहते (भी सह को स आदेश होता है)। अनुपात्यये-III. III. 38
(परिपूर्वक इण घात से) क्रम या परिपाटी गम्यमान होने पर (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घब् प्रत्यय होता
अनुप्रयोगः - III. 1.4 (पूर्व के लोट् विधायक सूत्रों के द्वारा जिस धातु से लोट् का विधान किया हो,उसके पश्चात् उसी धातु का) बाद में प्रयोग होता है। अनुप्रयोगः -III. iv. 46 (कषादि धातुओं में यथाविधि) अनुप्रयोग होता है अर्थात् जिस धातु से णमुल का विधान करेंगे, उसका ही पश्चात् प्रयोग होता है। अनुप्रयोगस्य-1.11.63 (जिस धातु से आम् प्रत्यय किया गया है, उससे आम् प्रत्यय के समान ही) पश्चात् प्रयोग की गई (कृ धातु) से (आत्मनेपद हो जाता है)। अनुप्रवचनादिभ्यः -V.1.110
(प्रयोजन समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ) अनुप्रवचनादि प्रातिपदिकों से (षष्ठ्यर्थ में छ'प्रत्यय होता है)। अनुबाहाणात् -IV. 1.67 (द्वितीयासमर्थ) अनुबाह्मण प्रातिपदिक से (अधीते' और 'वेद' अर्थों में इनि प्रत्यय होता है)। अनुभवति -V. 1. 10 (द्वितीयासमर्थ परोवर, परम्पर तथा पुत्रपौत्र प्रातिपदिकों से) अनुभव करता है' अर्थ में (ख प्रत्यय होता है)। अनुम: - VI.1.167
नुमरहित (अन्तोदात्त शतप्रत्ययान्त) शब्द से परे (नदी- . सज्ञक प्रत्यय तथा अजादि सर्वनामस्थानभिन्न विभक्ति
को उदात्त होता है।
...अनुपूर्वम् - IV. iv. 28
देखें-प्रत्यनुपूर्वम् IV. iv. 28 ...अनुपूर्वात् - IV. II. 61
देखें- पर्यनुपूर्वात् IV. 1. 61 अनुप्रतिगृण -1.15.41
अनु एवं प्रतिपूर्वक गणाति धातु के प्रयोग में (पर्व का जो कर्ता,ऐसे कारक की भी सम्पदान संज्ञा होती है)। अनुप्रयुज्यते -III. 1. 40
(आम्प्रत्यय के पश्चात लिट्-परक कब का भी) बाद में प्रयोग होता है।
...अनुयाजो-VII. lil. 62
देखें-प्रयाजानुयाजौ VII. iii. 62 अनुयोगे - VIII. 1. 94
(निग्रह करने के पश्चात्) अनुयोग= जिस पक्ष से वह निगृहीत हुआ है, उसी मत का शब्दों द्वारा प्रकाश करना अर्थ में वर्तमान (जो वाक्य,उसकी टि को भी विकल्प से प्लुत उदात्त होता है)। ...अनुराधा ...-IV. 1.34
देखें-अविष्ठाफल्गुन्यनु० IV.III. 34 ...अनुरुष.. -III. ii. 142
देखें- सम्पचानुरुधा III. ii. 142 ....अनुवाकयो:-V. 1.60 देखें-अध्यायानुवाकयो: V. 1.60 •