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अनुनासिकः
अनुपसर्गात्
अनुनासिक: -VI.i. 122
अनुपदसर्वान्नायानयम् - V.ii.9 (आङ को अच परे रहते संहिता के विषय में बहुल (द्वितीयासमर्थ) अनुपद, सर्वान्न तथा अयानय प्रातिकरके) अनुनासिक आदेश होता है (तथा उस अनुनासिक पदिकों से (यथासङ्ख्य करके 'सम्बद्ध', 'खाता है तथा को प्रकृतिभाव भी होता है)।
'ले जाने योग्य' अर्थों में ख प्रत्यय होता है)। अनुनासिक: -VIII. iii.2
अनुपदी - V. 1. 90 . (यहां से आगे जिसको रु विधान करेंगे, उससे पूर्व के
(अन्वेष्टा=पीछे जाने वाला अर्थ में) अनुपदी शब्द का वर्ण को विकल्प से) अनुनासिक आदेश होता है, ऐसा
निपातन किया जाता है । अधिकार इस रुत्व विधान के प्रकरण में समझना चाहिए।
अनुपदेशे-I.iv.69 अनुनासिक: - VIII. iv. 44
अनुपदेश = जो स्वयं सोचा जाये,उस विषय में (अदस् (पदान्त यर प्रत्याहार को अनुनासिक परे रहते विकल्प
शब्द क्रियायोग में गति और निपात संज्ञक होता है)। से) अनुनासिक आदेश होता है ।
अनुपराभ्याम् -I. iii. 79 अनुनासिक: - VIII. iv. 56
_अनु और परा उपसर्ग से उत्तर (कन धातु से परस्मैपद (अवसान में वर्तमान प्रगृह्य-सञक से भिन्न अण् को होता है)। विकल्प से) अनुनासिक आदेश होता है ।
अनुपसर्गम् -VI. 1. 154 अनुनासिकस्य - VI. iv. 15
(ततीयान्त से परे) उपसर्गरहित (मिश्र शब्द उत्तरपद को अनुनासिकान्त अङ्गकी (उपधा को दीर्घ होता है,क्विप भी अन्तोदात्त होता है. असन्धि गम्यमान होने पर)। तथा झलादि कित, ङित् प्रत्यय परे रहते) ।
अनुपसर्गम् - VIII. I. 44 अनुनासिकस्य-VI. iv. 41
(क्रिया के प्रश्न में वर्तमान किम शब्द से युक्त) उपसर्ग
से रहित (तथा प्रतिषेधरहित तिङन्त को अनुदात्त नहीं .. (विट् तथा वन् प्रत्यय परे रहते) अनुनासिकान्त अङ्गको ।
होता)। (आकारादेश होता है)। अनुनासिकात् - VIII. iii. 4
अनुपसर्गस्य -III. iii.75
उपसर्गरहित (हृञ् धातु) से (भाव में अप् प्रत्यय तथा (रु से पूर्व) अनुनासिक से अन्य वर्ण से (परे अनुस्वार
सम्प्रसारण हो जाता है)। आगम होता है, संहिता में)।
अनुपसर्गात् -I. iii. 43 अनुनासिकान्तस्य - VII. iv. 85
उपसर्गरहित (क्रम् धातु) से विकल्प से आत्मनेपद होता अनुनासिकान्त अङ्ग के (अकारान्त अभ्यास को नुक . है)। आगम होता है, यङ् तथा यङ्लुक् परे रहते)। अनुपसर्गात् -I. iti. 76 अनुनासिके - VI. iv. 19
उपसर्गरहित (ज्ञा धातु) से (आत्मनेपद होता है, यदि (च्छ और व् के स्थान में यथासङ्ख्य करके श और क्रिया का फल कर्ता को मिलना हो तो)। ऊ आदेश होता है), अनुनासिकादि (तथा क्विप् और अनुपसर्गात् -III.i.71 झलादि कित्, डित) प्रत्ययों के परे रहते।
उपसर्गरहित (यस धातु) से (विकल्प से श्यन् प्रत्यय अनुनासिके - VIII. iv. 44
होता है,कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहते)। (पदान्त यर प्रत्याहार को) अनुनासिक परे रहते (विकल्प
अनुपसर्गात् -- III. 1. 138
उपसर्गरहित (लिम्प,विन्द,धारि,पारि,वेदि,उदेजि,चेति, . से अनुनासिक आदेश होता है)।
साति और साहि) धातु से (भी श प्रत्यय होता है)। अनुपद... -V.ii.9
अनुपसर्गात् - VIII. ii. 55 ' देखें- अनुपदसर्वान्ना० V.ii.9
उपसर्ग से उत्तर न होने पर (फुल्ल, क्षीब, कृश तथा । ...अनुपदम् - IV. iv.37
उल्लाघ शब्द निपातन किये जाते हैं)। देखें-माथोत्तरपदपदव्य० IV. iv. 37