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शौनकादिया.
शेष: - VII. iv.60 (अभ्यास का आदि हल) शेष रहता है। शेवस्य - VI. iii. 43
(नदीसज्जक) पूर्वसूत्र से शेष शब्दों को (विकल्प करके ह्रस्व होता है;घ,रूप,कल्प, चेलट, बुव, गोत्र,मत तथा हत शब्दों के परे रहते)। शेषात् -1. iii.78
जिन धातओं से जिस विशेषण द्वारा आत्मनेपद का विधान किया; उनसे) अवशिष्ट धातुओं से (कर्तृवाच्य में परस्मैपद होता है)। शेषात् - V. iv. 154
जिस बहुव्रीहि से समासान्त प्रत्यय का विधान नहीं किया है; वह शेष,उससे विकल्प करके समासान्त कप् प्रत्यय होता है)। शेष-I. iv. 107 (मध्यम, उत्तम पुरुष जिन विषयों में कहे गये हैं,उनसे) अन्य विषय में (प्रथम पुरुष होता है)। शेवे-II. iii. 50.
शेष = स्वस्वामिभावादि सम्बन्धों में (षष्ठी विभक्ति होती है)।
कर्मादियों से तथा प्रातिपदिकार्थ से भिन्न स्वस्वामिभावादि सम्बन्ध शेष है। शेषे - III. iii. 13
(धात से) क्रियार्थ क्रिया उपपद रहने पर या न होने पर (भी भविष्यकालार्थक लट प्रत्यय होता है)। . शेषे -III. iii. 151
(यदि का प्रयोग न हो और) यच्च, यत्र से भिन्न शब्द उपपद हो (तो चित्रीकरण गम्यमान होने पर धातु से लृट् प्रत्यय होता है)। शेषे-IV.ii.91
(तस्यापत्यम' से चातुरर्थिक-पर्यन्त जो अर्थ कहे जा चुके हैं) उनसे शेष अर्थ में (उनमें आगे के कहे हुए प्रत्यय हुआ करेंगे)। शेषे -VII. ii. 90
शेष विभक्ति के परे रहने पर (युष्मद, अस्मद् अङ्ग का लोप होता है)।
शेवे - VIII. 1.41
(आहो शब्द से युक्त तिङन्त को पूजा-विषय से) शेष विषयों में (विकल्प करके अनुदात्त नहीं होता)। शेषे - VIII. 1. 50 (अविद्यमानपर्व आहो उताहो शब्दों से युक्त तिङन्त को) अनन्तर से शेष विषय में विकल्प करके अनुदात्त नहीं होता)। शेपे-VIII. iv. 18 (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर.जो उपदेश में ककार तथा खकार आदि वाला नहीं हैं एवं षकारान्त भी नहीं है,ऐसे) शेष धातु के परे रहते (नि के नकार को विकल्प से णकारादेश होता है)। शोक... - VI. iii. 50
देखें - शोकष्यजोगेषु VI. iii. 50 . शोकयोः - III. ii.5 .
देखें - तुन्दशोकयोः III. ii. 5 शोकष्यब्रोगेषु- VI. iii. 50
शोक, ष्यञ् तथा रोग के परे रहते (हृदय शब्द को हत् आदेश विकल्प करके होता है)। शोणात् - IV.i. 43.
(अनुपसर्जन) शोण प्रातिपदिक से (प्राचीन आचार्यों के मत में स्त्रीलिङ्ग में ङीष प्रत्यय होता है)। शौ-VI. iv. 12 (इन्प्रत्ययान्त,हन, पूषन, अर्यमन्-इन अङ्गों की उपधा को) शि विभक्ति के परे रहते (ही दीर्घ होता है)। ...शौचिवृक्ष.. - IV.i. 81
देखें - दैवयज्ञिशौचिवृक्षि० IV.i. 81 शौण्डैः - II.i. 39
(सप्तम्यन्त सुबन्त) शौण्ड इत्यादि (समर्थ सुबन्तों) के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होता है और वह तत्पुरुष होता है)। शौनकादिभ्यः - IV. iii. 106
(तृतीयासमर्थ) शौनकादि प्रातिपदिकों से (प्रोक्तविषय में छन्द अभिधेय होने पर णिनि प्रत्यय होता है)।