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शूल = नोकदार हथियार शिव का त्रिशूल। उख = पतीली, देगची। १-III.1.74
आदेश होता है,(श्रु धातु के स्थान में और श्नु प्रत्यय भी, कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहने पर)। श... - III. ii. 173
देखें - शृवन्योः III. . 173 श...-VII. iv. 12
देखें-शदनाम् VII. iv. 12 शङ्खलम् - V.ii. 79
प्रथमासमर्थ शङखल प्रातिपदिक से (षष्ठ्य र्थ में कन् प्रत्यय होता है. यदि वह प्रथमासमर्थ बन्धन बन रहा हो, तथा जो षष्ठी से निर्दिष्ट हो वह करभ = ऊंट का छोटा बच्चा हो ता)। शृङ्गम् -VI. ii. 115
(अवस्था गम्यमान होने पर तथा सज्ञा और उपमा विषय में बहुव्रीहि समास में उत्तरपद श्रृङ्गशब्द को (आधुदात्त होता है)। ...शृङ्गात् - IV.i.55
देखें - नासिकोदरौष्ठ IV. 1.55 ...शृङ्गिण... -v.ii. 114
देखें-ज्योत्स्नातमित्राov.ii. 114 ...शृणु... - VI. iv. 102
देखें-श्रुशृणु० VI. iv. 102 ...शृणोति... - VII. iv.81
देखें - सुवतिशृणोति० VII. iv. 81 शृतम् -VI.i. 27 (पाक अभिधेय होने पर) शृतम् शब्द का निपातन किया
निपातन किया जाता है। शृदृप्राम् - VII. iv. 12 .
श, द तथा पृ अङ्गों को (लिट् परे रहते विकल्प से हस्व होता है)। ...शृभ्यः - III. ii. 154
देखें- लषपत III. ii. 154 शे-I.i. 13 (सुपां सुलुक 06-1-39 से सुपों के स्थान में विहित) शे आदेश (की प्रगृह्य सज्ञा होती है)।
शे-VI. iii. 54 (ऋचा-सम्बन्धी पाद शब्द को) श परे रहते (पद आदेश होता है)। ....शे... - VII. I. 39
देखें - सुलुक० VII. I. 39. . शे-VII. 1.59
श प्रत्यय परे रहते (मुचादि धातुओं को नुम् आगम होता है)। शे: -VI.i.68
शि का (बहुल करके वेदविषय में लोप होता है)। ...शेक...-VIII. iii.97
आस न होते. -III. I. 15
शीङ् धातु से (अधिकरण सुबन्त उपपद रहते अच् प्रत्यय होता है)। शेते: - III. iii. 39
(वि तथा उप पूर्वक) शीङ् धातु से (पर्याय गम्यमान होने पर कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घन प्रत्यय होता है)। शेवल... - V. 1.4 देखें - शेवलसुपरि० V. ii. 84 शेवलसुपरिविशालवरुणार्यमादीनाम् - V. ii. 84 (मनुष्यनामवाची) शेवल, सुपरि, विशाल, वरुण तथा अर्यमा शब्द आदि में है जिनके, ऐसे शब्दों के (तीसरे अच् के बाद की प्रकृति का लोप हो जाता है, तथा अजादि प्रत्ययों के परे रहते)। शेषः -I. iv. 71
(नदीसज्ञा से) अवशिष्ट (हस्व इकारान्त,उकारान्त शब्द घिसंज्ञक होते हैं, सखि शब्द को छोड़कर)। शेषः - II. ii. 23
उपर्युक्त से अन्य शेष है;शेष की (बहव्रीहि संज्ञा होती है; यह अधिकार है)। शेषः - III. iv. 114
ति, शित् से शेष बचे, (धातु से विहित जो प्रत्यय. उनकी आर्धधातुक संज्ञा होती है)।