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. लोट
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लोपः ।
लोट् - VIII. iv. 16
(उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर) लोडादेश (आनि के नकार को णकारादेश होता है)। लोटः-III. iv.2
क्रिया का पौनपन्य गम्यमान हो तो धात से धात्वर्थ सम्बन्ध होने पर सब कालों में लोट प्रत्यय हो जाता है
और उस) लोट् के स्थान में हि और स्व आदेश नित्य होते हैं तथा त, ध्वम् भावी लोट् के स्थान में विकल्प से हि,स्व आदेश होते है)। लोट: -III. iv.85
लोट् लकार को (लङ्ग के समान कार्य हो जाते है। ...लोटौ - III. . 157
देखें-लिङ्लोटौ III. ii. 157 ...लोटौ-III. iii. 173
देखें-लिङ्लोटौ III. 1. 173 लोडर्थलक्षणे-III. 11.8
करो.करो.ऐसा प्रेरित करना- यह लोट का अर्थ यदि गम्यमान हो तो (भी धातु से भविष्यत् काल में विकल्प से लट् प्रत्यय होता है)। लोपः-1.1.59 (विद्यमान के अदर्शन की) लोप संज्ञा होती है। लोप-I.11.9 (उस इत्सझक वर्ण का) लोप = अदर्शन होता है। लोप-III. I. 12
(भृश आदि अच्च्यन्त प्रातिपदिकों से भूधात के अर्थ में क्यङ् प्रत्यय होता है और भूशादि में विद्यमान हलन्तों के हल का) लोप (भी) होता है। लोप -III. iv. 97
(परस्मैपदविषय में लेट-लकार-सम्बन्धी इकार का भी विकल्प से) लोप हो जाता है। लोप -V.. 133
(अपत्यार्थ में आये हुए ढक् प्रत्यय के परे रहते पितृष्वस शब्द का) लोप हो जाता है। लोप -v.iv.1 (सङ्ख्या आदि में है जिसके.ऐसे पाद और शत शब्द अन्तवाले प्रातिपदिकों से वीप्सा गम्यमान हो तो वुन
प्रत्यय होता है तथा प्रत्यय के साथ-साथ पाद और शत के अन्त का) लोप (भी) हो जाता है। लोपः-v.iv.51 (सम्पद्यते के कर्ता में वर्तमान अरुस, मनस, चक्षुस्, चेतस्, रहस् तथा रजस् शब्दों के अन्त्य का) लोप (भी कृ, भू तथा अस्ति के योग में) हो जाता है (तथा च्चि प्रत्यय भी होता है)। . लोप: - V. iv. 138
(उपमानवाचक हस्त्यादिवर्जित प्रातिपदिकों से उत्तर जो पाद शब्द,उसका समासान्त) लोप हो जाता है, (बहुव्रीहि समास में) लोप: - V. iv. 146
(बहुव्रीहि समास में ककुभ-शब्दान्त का समासान्त) लोप होता है, (अवस्था गम्यमान होने पर)। लोपः - VI.1.64 (वकार और यकार का वल् परे रहते) लोप होता है।' लोप: - VI. iv. 21
(रेफ से उत्तर छकार और वकार का) लोप हो जाता है; (क्वि तथा झलादि अनुनासिकादि प्रत्ययों के परे रहते)। लोप-VI. iv. 37
. (अनुदात्तोपदेश और जो अनुनासिकान्त उनके तथा वन् एवं तनोति आदि अङ्गों के अनुनासिक का) लोप होता है; (झलादि कित्, ङित् प्रत्ययों के परे रहते)। लोप - VI. iv. 45 (क्तिच् प्रत्यय परे रहते सन् अङ्गको आकारादेश हो जाता है तथा विकल्प से इसका) लोप भी होता है। लोपः -VI. iv. 48 (अकारान्त अङ्गका आर्धधातुक परे रहते) लोप हो जाता
लोप: - VI. iv.64
(इडादि आर्धधातुक तथा अजादि कित.डित् आर्धधातुक प्रत्ययों के परे रहते आकारान्त अङ्ग का) लोप होता है। लोप: - VI. iv.98 (गम, हन,जन,खन,घस्-इन अङ्गों की उपधा का) लोप हो जाता है; (अभिन्न अजादि कित, डित् प्रत्यय परे रहते)।