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रिति
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रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः
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रिति -VI.i. 211
...रुच... - VII. iii. 66 रेफ इत् वाले शब्द के (उपोत्तम को उदात्त होता है)।
देखें-यजयाच०VII. iii.66
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रुनिको-VII. iv.91. ...रिष: - VII. ii. 48 . . देखें-इवसहO VII. ii.48
(ऋकार उपधा वाले अङ्ग के अभ्यास को) रुक, रिक रिषण्यति - VII. iv. 96
(तथा चकार से रीक् आगम होते हैं, यङ्लुक् में)। (दुरस्युः, द्रविणस्युः, वृषण्यति),रिषण्यति -ये क्यात्ययान्त शब्द (वेद-विषय में) निपातित किये जाते हैं। देखें- पादम्यायमाझ्यस० I. iii. 89
...रुचि... -III. ii. 136 ...री... - VII. iii. 36
देखें - अलंकृञ् III. ii. 136 देखें - अर्तिही VII. iii. 36
...रुचि... -VI. iii. 115 रीक् - VII. iv. 90
देखें-नहिवृति० VI. iii. 115. (ऋकार उपधा वाले अङ्ग के अभ्यास को भी यङ् तथा
....रुच्य.. -III. 1. 114 यङ्लुक् में) रीक् आगम होता है।
देखें - राजसूयसूर्य III. i. 114 रीङ्-VII. iv. 27
रुच्यर्थानाम् -I. iv. 33 (ऋकारान्त अङ्ग को कृत्-भिन्न एवं सार्वधातुक-भिन्न ।
रुचि अर्थ वाले धातुओं के (प्रयोग में प्रीयमाण कारक यकार तथा चि परे हो तो) रीङ आदेश होता है।
की सम्प्रदान संज्ञा होती है)। • रीश्वरात् -I. iv.56
...रूज... - III. iii. 16 'अधिरीश्वरे I. iv. 86 सूत्र से (पहले-पहले निपात देखें- पदरुज III. iii. 16 संज्ञा का अधिकार जाता है)।
रुजानाम् -II. iii. 54 ...रु..-VII. iii. 95
(धात्वर्थ को कहने वाले घजादिप्रत्ययान्त-कर्तृक) रुजादेखें- तुरुस्तु० VII. ii. 95
र्थक धातुओं के (कर्म में शेष विवक्षिन होने पर षष्ठी रु-VIII. iii.1
विभक्ति होती है,ज्वर धातु को छोड़कर)। (मत्वन्त तथा वस्वन्त पद को संहिता में सम्बुद्धि परे रुजि... -III. 1. 31 रहते वेद-विषय में) रु आदेश होता है।
देखें-रुजिवहो: III. ii. 31 रु..-III. iii. 50
रुजिवहो: - III. ii. 31 देखें - रुप्लुवोः III. iii. 50
(उत् पूर्वक) रुज् तथा वह धातुओं से (कूल कर्म उपपद रु-III. ii. 159
रहते खश् प्रत्यय होता है)। (दा, धेट, सि,शद,सद् - इन धातुओं से तच्छीलादि ,_ कर्ता हो. तो वर्तमानकाल में) रु प्रत्यय होता है।
(शी असे उत्तर झ के स्थान में हआ जो अत आदेश. रु -VIII. ii. 66 '
उसको) रुट आगम होता है। (सकारान्त पद को तथा सजुष पद को) रु आदेश होता
रुद... -I.1.8
देखें-रुदक्दिमुषग्रहिस्वपिप्रच्छ: I. ii. 8 रु-VIII. ii.74
रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः - I. ii. 8 (धात्ववयवभूत पदान्त सकार को सिप परे रहते विकल्प
'रुदिर अश्रुविमोचने', 'विद ज्ञाने', 'मुष स्तेये', 'ग्रह से) रु आदेश होता है।
उपादाने'.'जिष्वप शये'.'प्रच्छ ज्ञीप्सायाम्'-इन धातुरुक्...-VII. iv.91
ओं से परे (सन् और क्त्वा प्रत्यय कित्वत् होते हैं)। देखें-रुनिको VII. iv.91