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रात् - VIII. 11. 24 (संयोग अन्त वाले) रेफ से उत्तर (सकार का लोप होता
रात्र.. - II. iv. 29
देखें- रात्रानाहाः II. iv. 29 ...रात्रावयवाः -II. I. 44 . देखें- अहोरात्रावयवाः II. I. 44 ...रात्रावयवषु-VI. ii. 33
देखें-वर्ण्यमानाहोरात्रा6 VI. ii. 33 रात्रानाहा: -II. iv.29
रात्र,अह्न, अह-इन कृतसमासान्त शब्दों को (पुल्लिङ्ग होता है)।रात्र, अह्न, अह ये कृतसमासान्त निर्दिष्ट है। रात्रि... -v.i.86
देखें- राज्यहः संवत्सरात् V.i.86 ...रात्रि.. -VI. iii. 84
देखें-ज्योतिर्जनपद० VI. iii. 84 ...रात्रिन्दिव... - V. iv. 77.
देखें-अचतुर० V.iv.77 ...रात्रे-II. iv.28 'देखें- अहोरात्रे II. iv. 28 रात्रे: - IV.i. 31
रात्रि शब्द से (भी स्त्रीलिङ्गविवक्षित होने पर संज्ञा तथा छन्द-विषय में, जस् विषय से अन्यत्र डीप् प्रत्यय होता
- इन अर्थों में विकल्प से ख प्रत्यय होता है)। राधः -VI. iv. 123
(हिंसा अर्थ में वर्तमान) राध अङ्ग के (अवर्ण के स्थान में एकारादेश तथा अभ्यासलोप होता है; कित.डित लिट परे रहते तथा सेट् थल परे रहते)। राधि... -I.iv. 39
देखें - राधीक्ष्योः I. iv. 39 राधीक्ष्योः -I. iv. 39
राध तथा ईक्ष धातु के (प्रयोग में जिस के विषय में विविध प्रश्न हों,उस कारक की सम्प्रदान संज्ञा होती है)। रायः - VII. ii. 85
रै अङ्ग को (हलादि विभक्ति परे रहते आकारादेश हो जाता है)। राष्ट्र... - IV. 1. 92
देखें - राष्ट्रावारपारात् IV. 1. 92 राष्ट्रावारपारात् - IV. 1. 92
राष्ट्र तथा अवारपार शब्दों से (शैषिक जातादि अर्थों में यथासङ्ख्य करके घ और ख प्रत्यय होते हैं)।
अवारपार = समुद्र। रि-VII. iv. 51 रेफादि प्रत्यय के परे रहते (भी तास् और अस् के सकार का लोप होता है)। रि-VIII. iii. 14
(पद के रेफ का) रेफ परे रहते (लोप होता है।। ...रिको-VII. iv.91
देखें-रुनिको VII. iv.91 रिक्तगुरु-VI.1.42
'रिक्तगुरु' इस समास किये हुये शब्द के (पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। रिक्त - VI. 1. 202
रिक्त शब्द में (विकल्प से आधदात्तत्व होता है)। रिङ्- VII. iv. 28
(ऋकारान्त अङ्ग को श, यक् तथा यकारादि सार्वधातक-भिन्न लिङ्ग परे रहते) रिङ् आदेश होता है।
रात्रे: - V. iv. 87
(अंहर,सर्व,एकदेश वाचक शब्द,सङ्ख्यात तथा पुण्य शब्दों से उत्तर तथा सङ्ख्या और अव्ययों से उत्तर भी) जो रात्रि शब्द, तदन्त (तत्पुरुष) से (समासान्त अच् प्रत्यय होता है)। रात्रे: -VI. iii. 71
(कदन्त उत्तरपद रहते) रात्रि शब्द को (विकल्प करके मुम् आगम होता है)। रात्र्यह संवत्सरात् -V..86
(द्वितीयासमर्थ) रात्रि-शब्दान्त,अहन-शब्दान्त तथा संव- त्सर-शब्दान्त (द्विगुसज्ञक प्रातिपदिकों से भी 'सत्कारपू. र्वक व्यापार, खरीदा हुआ','हो चुका' तथा 'होने वाला'