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यत्खौ
यखौ - V. ii. 16
(द्वितीयासमर्थ अध्वन् प्रातिपदिक से 'पर्याप्त जाता है' अर्थ में) यत् और ख प्रत्यय होते हैं।
यत्तदेतेभ्यः - V. ii. 39
(प्रथमासमर्थ परिमाण समानाधिकरणवाची) यत्, तत् तथा एतद् प्रातिपदिकों से (षष्ठ्यर्थ में वतुप् प्रत्यय होता है) ।
... यल... - I. iii. 47
देखें - भासनोपसम्भाषाo I. III. 47
यत्र - VI. 1. 155
जिस अनुदात्त के परे रहते (उदात्त का लोप होता है, उस अनुदात्त को भी आदि उदात्त हो जाता है)।
...कायुक्तम् - VIII. 1. 30
देखें पचादि० VIII. 1. 30
... यत्रयोः - III. II. 148 देखें - यच्चायो III. III. 148
यत्समया
II. i. 14
जिसका समीपवाची (अनु सुबन्त हो, उस लक्षणवाची सुबन्त के साथ विकल्प करके 'अनु' समास को प्राप्त होता है और वह अव्ययीभाव समास होता है)।
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... यथा....
- II. 1. 6
देखें - विभक्तिसमीपसमृद्धि II. I.
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यथा - II. 1. 7
'यथा' यह अव्ययपद (असादृश्य अर्थ में समर्थ सुबन्त के साथ समास को प्राप्त होता है और वह समास अव्ययीभाव सञ्ज्ञक होता है)।
यथा...
III. iv. 28
देखें - यथातथयो: III. iv. 28
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यथाकथाच... - V. 1. 97
देखें- यथाकथाचहस्ताभ्याम् V. 1. 97
यदाकदाचहस्ताभ्याम् - V. 1. 97
(तृतीयासमर्थ) यथाकथाच तथा हस्त प्रातिपदिकों से (यथासङ्ख्य करके ण और यत् प्रत्यय होते है, 'दिया जाता है' और 'कार्य' अर्थों में)।
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- VII. iii. 31
428
यथातथ...
देखें - यथातथयथापुरयो: VII. iii. 31
यथातथयथापुरयो: - VII. iii. 31
(न से उत्तर) यथातथ तथा यथापुर अगों के (पूर्वपद एवं उत्तरपद के शब्दों में आदि अच् को पर्याय से वृद्धि होती है; ञित् णित् तथा कित् तद्धित परे रहते ) । यथातथयोः III. iv. 28
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यथोपदिष्टम्
यथा और तथा शब्द उपपद रहते (निन्दा से प्रत्युत्तर गम्यमान हो तो कृञ् धातु से णमुल् प्रत्यय होता है, यदि कृञ का अप्रयोग सिद्ध हो)।
... यथापुरयो - VII. III. 31 देखें- यथातथयथापुरयो: VII. I. 31
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... यथाभ्याम् - VIII. 1. 36 देखें - यावद्यथाभ्याम् VIII. 1. 36
यथामुख... - V. ii. 6 देखें1- यथामुखसम्मुखस्य V. 11. 6 यथामुखसम्मुखस्य - V. 1. 6
षष्ठीसमर्थ यथामुख तथा सम्मुख प्रातिपदिकों से (दर्शन' शीशा अर्थ में ख प्रत्यय होता है)।
यथायथम् - VIII. 1. 14
(यथास्वम् अर्थ में) यथायथ शब्द निपातन है तथा इसे कर्मधारयवत् कार्य भी होता है) ।
यथाविधि - III. Iv. 4
(पूर्व के लोट्- विधायक सूत्र में) जिस धातु से लोट् का विधान किया गया हो, पश्चात् उसी धातु का (अनुप्रयोग होता है।
यथाविधि - III. Iv. 46
(कषादि धातुओं में ) यथाविधि (अनुप्रयोग होता है) अर्थात् जिस धातु से णमुल् का विधान करेंगे, उसका ही पश्चात् प्रयोग होगा ।
यथासङ्ख्यम् - L. III. 10
(सम सङ्ख्या वाले शब्दों के स्थान में पीछे आने वाले शब्द) यथाक्रम होते है।
यथास्वे - VIII. 1. 14
यथास्वम् अर्थ में (यथायथम् शब्द निपातन है तथा इसे कर्मधारयवत् कार्य भी होता है) ।
यथोपदिष्टम् - VI. iii. 108
(पृषोदर इत्यादि शब्दरूप) शिष्टों के द्वारा जिस प्रकार उच्चरित हैं, वैसे ही साधु माने जाते है।