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यदणी
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यदणी-IV. iii. 71
...यन्त.. - VII. ii.5 (षष्ठी-सप्तमीसमर्थ व्याख्यातव्यनाम छन्दस प्रातिप- देखें -हम्यन्तक्षण VII. 1.5 दिक से भव और व्याख्यान अर्थों में) यत और अण यप् -V.i. 81 प्रत्यय होते हैं।
(द्विगुसज्जक मासशब्दान्त प्रातिपदिक से आस्था यदि -III. ii. 113
अभिधेय हो तो 'हो चुका' अर्थ में) यप् प्रत्यय होता है।
यप्-V.ii. 120 (स्मरणार्थक) यत् शब्द उपपद हो तो (अनद्यतन भूत
(आहत और प्रशंसा अर्थों में वर्तमान रूप प्रातिपदिक काल में धातु से लुट् प्रत्यय नहीं होता)।
से 'मत्वर्थ' में) यप् प्रत्यय होता है। यदि -III. iii. 168
यम् -I. iv. 32 (काल,समय, वेला और) यत् शब्द उपपद हो (तो धातु (करणभत कर्म के द्वारा) जिसको (अभिप्रेत किया जाये, से लिङ् प्रत्यय होता है)।
उस कारक की सम्प्रदान संज्ञा होती है)। यदि-III. iv. 23
यम् -I. iv. 36 (समानकर्तावाले धातुओं में से पूर्वकालिक धात्वर्थ में (क्रुध,दूह, ईर्घ्य तथा असूय-इन अर्थों वाली धातुओं वर्तमान धातु से) यद् शब्द के उपपद होने पर (क्त्वा, के प्रयोग में) जिसके (ऊपर कोप किया जाये,उस कारक णमुल प्रत्यय नहीं होते,यदि अन्य वाक्य की आकाङ्क्षा की सम्प्रदान संज्ञा होती है)। न रखनेवाला वाक्य अभिधेय हो)।
यम.. -I. iii. 28 ...यदि... - VIII. 1. 30 .
देखें-यमहनः I. iii. 28 देखें- यद्यदिO VIII. I. 30
यम... -VII. ii. 73 '...यदो: - III. iii. 147
देखें- यमरमनमाताम् VII. II. 73 देखें-जातुयदोः III. iii. 147
यमः -I.ii. 15 यद्धितुपरम् -VIII. 1.56
(गन्धन अर्थ में वर्तमान) यम धातु से परे (आत्मनेपद __ यत्परक, हिपरक तथा तुपरक (तिङ को वेद-विषय में विषय में सिच् प्रत्यय कित्वत् होता है)। अनुदात्त नहीं होता)।
यमः -I. iii. 56 यद्यदिहन्तकुविनेच्चेच्चण्कच्चिधत्रयुक्तम् - VIII. I.
___ (पाणिग्रहण अर्थ में वर्तमान उप पूर्वक) यम् धातु से 30
(आत्मनेपद होता है)। ... यत्, यदि,हन्त, कुवित्, नेत, चेत्, चण, कच्चित्, यत्र- यमः -I. iii. 75
इन निपातों से युक्त (तिडन्त को अनुदात्त नहीं होता)। (सम्, उत् एवं आङ् से उत्तर) यम् धातु से (आत्मनेपद यवृत्तात् - VIII. 1.66
होता है; क्रियाफल के कर्ता को मिलने पर, यदि ग्रन्थयद शब्द से घटित पद से अव्यवहित अथवा व्यवहित
विषयक प्रयोग न हो तो) उत्तर (तिडन्त को नित्य ही अनुदात्त नहीं होता)।
...यमः -III. 1. 100
देखें- गदमदचरयमः III. 1. 100 यन् -IVii.41
यमः -III. ii. 40 (षष्ठीसमर्थ ब्राह्मण,माणव तथा वाडव प्रातिपदिकों से) यम् धातु से (वाक् कर्म उपपद रहते व्रत गम्यमान होने यन् प्रत्यय होता है।
पर खच् प्रत्यय होता है)। यन् - IV.iv. 114
यमः -III. iii. 63 (सप्तमीसमर्थ सगर्भ,सयथ.सन्त-इन प्रातिपदिकों (सम्, उप,नि,वि उपसर्ग पूर्वक तथा विना उपसर्ग भी) से वेदविषयक भवार्थ में) यन् प्रत्यय होता है।
यम् धातु से (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से अप् प्रत्यय होता है) पक्ष में घञ्।