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अध्ययनेषु
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...अध्ययनेषु - V.1.57
अधुवे -III. iv. 54 देखें-संज्ञासंघसूत्रा० V.1.57
__ अधूव (स्वाङ्गवाची द्वितीयान्त शब्द) उपपद रहते (धातु अध्यर्थे -VIII. iii. 51
से णमुल् प्रत्यय होता है)। अधि के अर्थ में वर्तमान (परि शब्द के परे रहते पञ्चमी अधूव= वह अङ्ग, जिसके नष्ट हो जाने पर.भी प्राणी के विसर्जनीय को सकारादेश होता है,वेद विषय में)। नहीं मरता। अध्यर्द्धपूर्व...-V.i. 28
...अध्य..-III. ii.48 देखें - अध्यद्धपूर्वद्विगो० V. 1. 28
देखें-अन्तात्यन्ता III. 1.48 अध्यद्धपूर्वद्विगो: - V.1.28
...अध्वन्.. - VI. ii. 187 अध्यर्द्ध शब्द पूर्व हो जिसके, उससे तथा द्विगुसज्ञक देखें - स्फिगपूत० VI. ii. 187 प्रातिपदिक से ('तदर्हति' पर्यन्त कथित अर्थों में आये अध्वनः ... - V.ii. 16 हये प्रत्यय का लक होता है.सज्ञा विषय को छोड़कर)। द्वितीयासमर्थ) अध्वन प्रातिपदिक से (पर्याप्त जा ...अध्यापक....-II.1.64
है' अर्थ में यत् तथा ख प्रत्यय होते हैं)। देखें-पोटायुवतिस्तोक० II. 1.64
अध्वनः... -V. iv.85 अध्याय... -III. iii. 122
(उपसर्ग से उत्तर) अध्वन् शब्दान्त प्रातिपदिक से (समादेखें-अध्यायन्याय III. iii. 122
सान्त अच् प्रत्यय होता है)। . अध्याय..-V. 1.60 देखें - अध्यायानुवाकयो: V. 1.60
...अध्वनो: - II. iii.5 अध्यायन्यायोधावसंहारा: -III. iii. 122
। देखें- कालाध्वनोः II. iii.5 अधिपूर्वक इङ् धातु से अध्यायः,नि पूर्वक इण धातु से ...अध्वर... - IV. iii. 72 न्यायः, उत् पूर्वक यु धातु से उद्यावः तथा सम् पूर्वक ह देखें-द्वयबाह्मण IV. iii.72 धात से संहार:-ये घजन्त शब्द (भी पुंल्लिग में करण ...अध्वर... - VII. iv. 39 तथा अधिकरण कारक संज्ञा में निपातन किये जाते हैं)। देखें-कव्यध्वर० VII. iv. 39 . अध्यायानुवाकयो: - V. 1.60
...अध्वर्यु... - IV. iii. 122 अध्याय और अनुवाक अभिधेय होने पर (मत्वर्थ में देखें-पत्राध्वर्युपरिषदः IV. iii. 122 विहित छ प्रत्यय का लुक् होता है)।
अध्वर्यु... -VI. ii. 10 अध्यायिनि-IV. iv.71
देखें - अध्वर्युकषाययो: VI. ii. 10 (जिस देश व काल में अध्ययन नहीं करना चाहिए,ऐसे ___ अध्वर्युकषाययो: - VI. ii. 10 सप्तमीसमर्थ देशकालवाची प्रातिपदिकों से) अध्ययन अध्वर्य तथा कषाय शब्द उत्तरपद रहते (जातिवाची करने वाला अभिधेय हो तो (ठक् प्रत्यय होता है)। तत्पुरुष समास में पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता है)। अध्यायेषु - IV. iii. 69
अध्वर्युक्रतुः - II. iv. 4 (षष्ठी तथा सप्तमीसमर्थ व्याख्यातव्यनाम ऋषिवाची प्रातिपदिकों से 'तत्र भवः' तथा 'तस्य व्याख्यान' अर्थों में)
__ वेद में जिस क्रतु का विधान है, ऐसे (अनपुंसकलिंग)
शब्दों का (द्वन्द्व एकवद् होता है)। अध्याय गम्यमान होने पर (ही ठञ् प्रत्यय होता है)। ...अध्युत्तरपदात् - V. iv.7
...अध्वानौ-VI. iv. 169 देखें- अषडक्षाशितं. V. iv.7
देखें- आत्माध्वानौ VI. iv. 169 ...अध्यै...-III. iv.9
अन् -v.iii.5 देखें-सेसेनसे III. iv.9
(दिक्शब्देभ्यः सप्तमी.'v.iii. 27 सूत्र तक कहे जाने ...अध्यैन्... -III. iv.9
वाले प्रत्ययों के परे रहते एतत् के स्थान में) अन् आदेश देखें-सेसेनसे III. iv.9
होता है। ...