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________________ अधिकारः ___ 25. अध्ययने अधिकार - I. iii. 11 ...अधीनवचने - V.iv.54 (स्वरित चिह्न वाले सूत्र से) अधिकार ज्ञात होता है। देखें-तदधीनवचने v.iv.54 अधिकार्थवचने- II. I. 32 ...अधीष्ट..- III. iii. 161 अधिकार्थवचन गम्यमान होने पर अर्थात् स्तुति देखें-विधिनिमन्त्रणाoH.M.161 अथवा निन्दा में अध्यारोपित अर्थ के कथन में (कर्ता और अधीष्ट- V.i.79 करणवाची तृतीयान्त सुबन्त पद कृत्यप्रत्ययान्त समर्थ (द्वितीयासमर्थ कालवाची प्रातिपदिकों से) 'सत्कारसुबन्तों के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होता है और पूर्वक व्यापार' अर्थ में (तथा 'खरीदा हुआ', 'हो चुका', वह समास तत्पुरुष संज्ञक होता है)। और 'होने वाला-इन अर्थों में यथाविहित ठञ् प्रत्यय अधिकृत्य - IV. iii. 87 (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से उसको) अधिकृत करके होता है)। (बनाया गया अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है. यदि अधीष्टे - III. iii. 166 बनाया जाना ग्रन्थविषयक हो तो)। सत्कार गम्यमान हो तो (भी स्म शब्द उपपद रहते धातु अधिके-I.iv.89 . से लोट् प्रत्यय होता है)। (उप शब्द) अधिक (तथा हीन) अर्थ धोतित होने पर अधुना - v. iii. 17 (कर्मप्रवचनीय तथा निपातसंज्ञक होता है)। - अधुना शब्द का निपातन किया जाता है । ...अधिके -VI. iii. 78 अघष्ट ... - V. 1. 20 देखें-ग्रन्थान्ताधिके VI. 1.78 देखें- अष्टाकार्ययो: V.ii. 20 ...अधिपति... -II. iii.39 अष्टाकार्ययोः - v.ii. 20 देखें- स्वामीश्वराधिपति II. iii. 39 (शालीन तथा कौपीन शब्द यथासङ्ख्य करके ) अधिपरी - I. iv. 92 अधि और परि शब्द (कर्मप्रवचनीय और निपातसंज्ञक अघृष्ट जो धृष्ट नहीं है तथा अकार्य =जो करने योग्य : होते है,यदि वे अन्य अर्थ के द्योतक न हों तो)। . नहीं है,वाच्य हों तो (निपातन किये जाते है)। ...अधिभ्याम् - V.ii. 34 .. अधे: - III. 33 देखें - उपाधिभ्याम् V.ii.34 अधि उपसर्ग से उत्तर (कब धातु से आत्मनेपद होता अधिशीस्थासाम् - I. iv. 46 है, पर का अभिभव' अर्थ में)। __ अधिपूर्वक शीङ्,स्था और आस् का (आधार जो कारक, अधे: -VI. 1. 188 उसकी कर्म संज्ञा होती है)। अधि उपसर्ग से उत्तर (उपरिस्थवाची उत्तरपद को अन्तोअधीगर्थ... - II. iii. 52 दात्त होता है)। देखें- अधीगर्थदयेशाम् II. iii. 52 अध्यक्षे-VI. ii.67 अधीगर्थदयेशाम् - II. iii. 52 . अध्यक्ष शब्द के उत्तरपद रहते (पूर्वपद को विकल्प से अधिपूर्वक इक धातु के अर्थवाली धातुओं के तथा दय ला धातुआ क तथा दय आधुदात्त होता है)। और ईश धातुओं के (कर्म कारक में शेष विवक्षित होने अध्ययनतः-II. iv.5 पर षष्ठी विभक्ति होती है)। अध्ययन के निमित्त से (जिनकी अविप्रकृष्ट अर्थात अधीते -IV.ii. 58 प्रत्यासन्न आख्या है,उनका द्वन्द्व एकवद होता है)। (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से) अध्ययन करता है' अध्ययने - IV.iv.63 अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है, इसी प्रकार द्वितीया अध्ययन में (वृत्तकर्मसमानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ समर्थ प्रातिपदिक से 'जानता है' के अर्थ में यथाविहित प्रातिपदिक से षष्ठयर्थ में ठक प्रत्यय होता है)। प्रत्यय होता है)। अध्ययने -VII. ii. 26 . अधीते-v.ii.84 अध्ययन को कहने में निष्ठा के विषय में ण्यन्त वृति (वेद को) पढ़ता है' अर्थ में (श्रोत्रियन् शब्द का निपातन • किया जाता है)। धातु से इडभावयुक्त वृत्त शब्द निपातन किया जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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