________________
391
बहुवचनस्य
बहुलम् - V. iv.56
बहुलम् -VI. iv. 128 (द्वितीया तथा सप्तमी-विभक्त्यन्त देव,मनुष्य,पुरुष,पुरु (मघवा शब्द को) बहुल करके (तृ आदेश होता है)। तथा मर्त्य शब्दों से) बहुल करके (त्रा प्रत्यय होता है)। बहुलम् - VII. i. 8 बहुलम् -VI.1.33
(वेदविषय में झादेश अत् को) बहुल करके (रुट का (वेदविषयम में खेज् धातु को) बहुल करके (सम्प्रसारण आगम होता है)। हो जाता है)।
बहुलम् -VII. 1. 10 बहुलम् -VI.1.68
(वेदविषय में अकारान्त अङ्ग से उत्तर) बहुल करके (शि का) बहुल करके (लोप हो जाता है,वेदविषय में)। (भिस् को ऐस् आदेश होता है)। बहुलम् -VI.1. 122
बहुलम् - VII. 1. 103 (आङ् को अच् परे रहते संहिता के विषय में) बहुल (वेदविषय में ऋकारान्त धातु अङ्ग को) बहुल करके करके (अनुनासिक आदेश होता है तथा उस अनुनासिक (उकारादेश होता है)। को प्रकृतिभाव भी हो जाता है)।
बहुलम् - VII. II.97 बहुलम् - VI. 1. 129
(अस् तथा सिच से उत्तर हलादि अपृक्त सार्वधातुक (स्यः शब्द के सु का हल परे रहते) बहुल करके (लोप को) बहुल करके (ईट आगम होता है, वेदविषय में)। हो जाता है,संहिता के विषय में)।
बहुलम् - VII. N.78 बहुलम् -VI.1. 172
(वेद-विषय में अभ्यास को) बहुल करके (श्लु होने पर (वेदबिषय में झ्यन्त शब्द से उत्तर) बहुल करके (नाम् इकारादेश होता है)। विभक्ति को उदात्त होता है)।
बहुलम् - VIII. iii. 52 बहुलम् - VI. 1. 199
. (पा धातु के प्रयोग परे हों तो भी पञ्चमी के विसर्जनीय (वेदविषय में उत्तरपद के = सक्थ शब्द के आदि को) को) बहुल करके (सकार आदेश होता है, वेद-विषय में)। बहुल करके (अन्तोदात्त होता है)।
...बहुलात् - IV. iii. 34 बहुलम् -- VI. iil. 13
- देखें- अविष्ठफल्गुन्य० V. iii. 34 (तत्पुरुष समास में कृदन्त शब्द उत्तरपद रहते) बहुल . बहुवचनम् -I. II. 58 करकें (सप्तमी का अलुक् होता है)।
(जाति को कहने में एकत्व को विकल्प करके) बहुत्व बहुलम् -VI. 11.62
हो जाता है। (ङ्यन्त तथा आबन्त शब्दों को संज्ञा तथा छन्द-विषय
बहुवचनम् -I. iv. 21 में उत्तरपद परे रहते) बहुल करके (हस्व होता है)। (बहुतों को कहने की विवक्षा में) बहुवचन का प्रत्यय
होता है। बहुलम् -VI. iii. 121 (षजन्त उत्तरपद रहते अमनुष्य अभिधेय होने पर उप
बहुवचनविषयात् - IV. 1. 124 सर्ग के अण् को) बहुल करके (दीर्घ) होता है।
(जनपद तथा जनपद अवधिवाची अवृद्ध तथा वृद्ध भी)
बहुवचन-विषयक प्रातिपदिकों से (शैषिक वुज प्रत्यय होबहुलम् - VI. iv. 75
ता है)। . (लुङ,लङ्लु ङ् परे रहने पर वेदविषय में माङ्का योग
बहुवचनस्य -I. ii. 63 होने पर अट्, आट् आगम) बहुल करके होते है (और माङ् का योग न होने पर भी नहीं होते)।
(तिष्य तथा पुनर्वसु शब्दों के नक्षत्रविषयक द्वन्द्व-समास में) बहुवचन के स्थान में नित्य ही द्विवचन हो जाता है)।
AN