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..प्रतीच
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प्रत्ययविधिः
...प्रतीचः - IV. ii. 100
प्रत्यपिभ्याम् -III. I. 118 देखें-धुप्रागपागुo IV. ii. 100
प्रति और अपि पूर्वक (ग्रह' धातु से क्यप् प्रत्यय होता प्रतीयमाने -1. iii.77
(समीपोच्चरित पद के द्वारा कर्वभिप्राय क्रियाफल के) प्रत्यभिवादे - VIII. 1.83 प्रतीति होने पर (धातु से आत्मनेपद होता है)।
(अशूद्र-विषयक) प्रत्यभिवाद = अभिवादन करने के ...प्रतूर्त... - VIII. ii. 61
पश्चात् जिसका अभिवादन किया गया है. उसके द्वारा देखें-नसत्तनिषता० VIII. ii. 61
जो आशीर्वचन कहा जाता है, उस अर्थ में (वाक्य के प्रते: -v.iv.82
पद की टि को प्लुत होता है और वह प्लत उदात्त होता प्रति शब्द से उत्तर (उरस्-शब्दान्त प्रातिपदिक से समा- है)। सान्त अच् प्रत्यय होता है, यदि वह उरस शब्द सप्तमी प्रत्यय.. -VII. ii. 98 विभक्ति के अर्थवाला हो तो)। .
देखें - प्रत्ययोत्तरपदयो: VII. ii. 98 प्रते: -VI.i. 25
प्रत्ययः -I. ii. 49 प्रति से उत्तर (भी श्यैङ् धातु को सम्प्रसारण हो जाता (एक = असहाय अल् वाला) प्रत्यय (अपृक्त-सजक है, निष्ठा के परे रहते)।
होता है)। प्रते: - VI. 1. 137
प्रत्ययः -III.1.1 (उप तथा) प्रति उपसर्ग से उत्तर (कृ विक्षेपे' धातु के यहाँ से लेकर पञ्चमाध्याय की समाप्ति (V. iv. 160)
परे रहते हिंसा के विषय में ककार से पूर्व सुट् आगम तक प्रत्यय संज्ञा का अधिकार होगा। - होता है, संहिता के विषय में)।
...प्रत्यययो: -VIII. ii. 58 प्रते: - VI. 1. 193
- देखें-भोगप्रत्यययो: VIII. ii. 58 प्रति उपसर्ग से उत्तर (तत्पुरुष समास में अश्वादिगण
..प्रत्यययो: - VIII. Iii. 59 पठित शब्दों को अन्तोदात्त होता है)।
देखें-आदेशप्रत्यययो: VIII. iii. 59 प्रम...-.11 112
प्रत्ययलक्षणम् -I.i. 61 देखें - प्रत्मपूर्व० V. ill. 112
(प्रत्यय के लोप हो जाने पर) प्रत्ययलक्षण अर्थात् प्रत्यय प्रलपूर्वविश्वेमात् - V. 1. 112
को निमित्त मानकर जो कार्य पाता था, वह (उसके लोप . प्रल, पूर्व,विश्व, इम-इन प्रातिपदिकों से (इवार्थ में
हो जाने पर भी हो जावे)। थाल् प्रत्यय होता है, वेदविषय में)।
प्रत्ययलोपे-I.i.61
प्रत्यय के लोप हो जाने पर (उस प्रत्यय को निमित्त प्रल = पुराना, पहला।
मानकर कार्य हो जाता है)। प्रत्यप्रथ..-IV.i. 171
प्रत्ययवत् -VI. iii. 67 देखें- साल्वावयवप्रत्यप्रथा IV. 1. 171
(खिदन्त उत्तरपद रहते इजन्त एकाच को अम् आगम प्रत्यनुपूर्वम् - IV. iv. 28
' होता है और वह अम्) प्रत्यय के समान (भी माना जाता (द्वितीयासमर्थ) प्रति, अनुपूर्वक (जो ईप,लोम और कूल है। प्रातिपदिक-उनसे 'वर्तते हैं' अर्थ में ठक् प्रत्यय होता
प्रत्ययविधिः -1. iv. 13
(जिस धातु या प्रातिपदिक से) प्रत्यय का विधान किया प्रत्यन्ववपूर्वात् – v. iii. 75
जाये, उस प्रत्यय के परे रहते उस धातु या प्रातिपदिक प्रति, अनु तथा अव पूर्ववाले (सामन् और लोमन् प्राति- का आदि वर्ण है आदि जिस समुदाय का, उस की अंग पदिक से समासान्त अच प्रत्यय होता है)।
संज्ञा होती है)।