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पितुः
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पुक्
पितुः - IV. iii. 79
पिषः - III. iv. 38 (पञ्चमीसमर्थ) पितृ प्रातिपदिक से (आगत' अर्थ में यत् (स्नेहवाची करण उपपद हो तो) पिष् धातु से (णमुल् प्रत्यय होता है तथा चकार से ठञ् प्रत्यय होता है)। प्रत्यय होता है)। ..पितुर्थ्याम् - VIII. iii. 85
...पिषाम् -II. iii. 56 देखें - मातुःपितुर्ध्याम् VIII. Iii. 85
देखें-जासिनिग्रहण II. iii. 56 ...पितृ... - IV. 1. 30
पिष्टात् - IV. iii. 143 देखें-वाय्यतुफिशुक्स: IV. 1. 30
(षष्ठीसमर्थ) पिष्ट प्रातिपदिक से (भी विकार अर्थ में ...पितृभ्याम् -VIII. Iii. 84
मयट् प्रत्यय होता है)। देखें-मातृपितृभ्याम् VIII. iii. 84
...पिस... - III. ii. 175 पितृव्य..-IV. 1. 35 .
देखें-स्थेशभास III..ii. 175 देखें-पितृव्यमातुल० IV. ii. 35
पी-VI.i. 28 पितृव्यमातुलमातामहपितामहाः -IV. ii. 35
(ओप्यायी धातु को निष्ठा के परे रहते विकल्प से) पी पितव्य. मातुल, मातामह और पितामह शब्द निपातन आदेश होता है। किये जाते है।
...पीड.. - III. iv. 49 पितृष्वसुः - IV. 1. 132
देखें-उपपीडरुधकर्षः III. iv. 49 पितृष्वस शब्द से (अपत्य अर्थ में छण् प्रत्यय होता ...पीडाम् -VIL. iv.3
देखें- प्राजभास0 VII. iv. 3 ...पितौ-III. 1. 4
...पीयूक्षाभ्यः -VIII. iv.5 देखें - सुप्पितौ III. 1.4
देखें-प्रनिरन्त:o VIII. iv.5 ...पिपयों:-VII. iv.77
पीलायाः -IV.i. 118 :- देखें - अतिपिपयो: VII. iv.77
षष्ठीसमर्थ पीला प्रातिपदिक से (अपत्य अर्थ में ...पिपासा... -VII. iv. 34.
विकल्प से अण् प्रत्यय होता है)। देखें-अशनायोदन्यः VII. iv. 34
पील्वादि... -V.ii. 24 पिब... -VII. Ili.78
देखें - पील्वादिकर्णादिभ्यः V. 1. 24 • देखें-पिबजिन VII. iii. 78
पील्वादिकर्णादिभ्यः -V.ii. 24. पिबजिघ्रधमतिष्ठमनयच्छपश्य धौशीयसीदा:-VII.
(षष्ठीसमर्थ) पील्वादि तथा कर्णादि प्रातिपदिकों से iii. 78
(यथासङ्ख्य करके 'पाक' तथा 'मूल' अर्थ अभिधेय हो (पा.घा,ध्मा,ष्ठा,म्ना,दाण, दृशिर,ऋ,स,शद्ल,षद्ल तो कणप तथा जाहच प्रत्यय होते है)। -इन अङ्गों को शित् प्रत्यय परे रहते यथासङ्ख्य करके) पिब,जिघ्र,धम,तिष्ठ,मन,यच्छ,पश्य,ऋच्छ,धौ,
पु... -VII. iv.80 शीय,सीद आदेश होते हैं।
देखें-पुयण्ज्य परे VII. iv. 80 पिबते: - VII. iv. 4
...पु... - VIII. iv.2 पा पाने अङ्ग की (उपधा का चङ्परक णि परे रहते ।
ही देखें - अट्कुप्वा VIII. iv.2 लोप होता है. तथा अभ्यास को ईकारादेश होता है)। पुक्-VII. lil..36 पिषः - III. iv. 35
(ऋ, ह्री, व्ली, री, क्नूयी, क्ष्मायी अङ्ग को तथा (शुष्क,चूर्ण तथा रूक्ष कर्म उपपद रहते) पिष धात से आकारान्त अङ्ग को णिच् परे रहते) पुक् आगम होता • (णमुल् प्रत्यय होता है)।