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पारायणतुरायणचान्द्रायणम्
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पिति
पारायणतुरायणचान्द्रायणम् - V. 1.71
रमयामकः तथा विदामक्रन शब्द भी वेदविषय में विकल्प (द्वितीयासमर्थ) पारायण,तरायण तथा चान्द्रायण प्राति से निपातित होते है)। पदिकों से (बरतता है' अर्थ में यथाविहित ठन प्रत्यय ....पाश... -III.1.25 होता है)।
देखें-सत्यापपाश III. I. 25 पाराशर्य... - IV.ii. 110
पाशप्-V.iii.47 देखें-पाराशर्यशिलालिभ्याम् IV.ii. 110
(निन्दा' अर्थ में वर्तमान प्रातिपदिकों से) पाशप प्रत्यय पाराशर्य = पाराशर की कृति ।
होता है। पाराशर्यशिलालिघ्याम् - IV. iii. 110
पाशादिभ्यः - IV. ii. 48 (तृतीयासमर्थ) पाराशर्य, शिलालिन् प्रातिपदिकों से (षष्ठीसमर्थ) पाशादि प्रातिपदिकों से (समूह अर्थ में य ... (यथासङ्ख्य करके भिक्षुसूत्र तथा नटसूत्र का प्रोक्त विषय प्रत्यय होता है)। कहना हो तो णिनि प्रत्यय होता है)।
...पिच्छादिभ्यः -v.ii. 100 ...पारि..-III. I. 138
देखें-लोमादिपामादिov.ii. 100 देखें-लिम्पविन्द III. 1. 138
...पिटच्.. -v.ii. 33 पारे -II.1.17
देखें-इनपिटच्० V. 1. 33. (मध्य और) पार शब्द (षष्ठ्यन्त सुबन्त के साथ विकल्प पित् -III. iv.92 से अव्ययीभाव समास को प्राप्त होते हैं तथा समास के लोट सम्बन्धी उत्तमपुरुष को आट का आगम हो जाता सन्नियोग से इन शब्दों को) एकारान्तत्व भी निपातन से है और वह उत्तम पुरुष) पित् (भी) माना जाता है। हो जाता है।
पितरामातरा-VI. ifi. 32 पारेवडवा - VI. ii. 42
पितरामातरा - यह शब्द (भी वेदविषय में) निपातन 'पारेवडवा' इस समास किये हुये शब्द के (पूर्वपद को किया जाता है। . प्रकृतिस्वर होता है)।
पिता -I. 1.70 पारेवडवा = विपरीत दिशा में घोड़ी के समान।।
(मात् शब्द के साथ) पितृ शब्द विकल्प से शेष रह .. पादियौधेयाभ्याम् - V.II. 117
'जाता है,मातृ शब्द हट जाता है)। (शस्त्रों से जीविका कमाने वाले पुरुषों के समूहवाची
...पितामहाः - VI. ii. 35 . पार्खादि तथा यौधेयादिगणपठित प्रातिपदिकों से (स्वार्थ
देखें-पितृव्यमातुल० M..35 में यथासंख्य करके अण् तथा अञ् प्रत्यय होते हैं )।
पिति-VI.1.69 पायन - V.ii.75
___ (हस्वान्त धातु को) पित् (तथा कृत) प्रत्यय के परे रहते ततीयासमर्थ पार्श्व प्रातिपदिक से (चाहता है' अर्थ में।
(तुक् का आगम होता है)। कन् प्रत्यय होता है)। -
पिति -VI.i. 186 पाले -VI. 1. 78
भी,ही,भू, हु, मद,जन,धन,दरिद्रा तथा जागृ धातु के (गो, तन्ति, यव-इन शब्दों को) पाल शब्द परे रहते
अभ्यस्त को पित् लसार्वधातुक परे रहते प्रत्यय से पूर्व (आधुदात्त होता है)।
को उदात्त होता है। तन्ति = रस्सी,डोर।
पिति-VII. 1.87 पावयाक्रियात् - III. 1. 42
(अभ्यस्तसज्ज्ञक अङ्ग की लघु उपधा इक को अजादि) पावयाक्रियात् शब्द वेदविषय में विकल्प से निपातित ।
पित् (सार्वधातुक) प्रत्यय के परे रहते (गुण नहीं होता)। है,(साथ ही अभ्युत्सादयामकः,प्रजनयामकः,चिकयामकः,