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पाणिघताडयौ
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पादपूरणे
या होते है।।
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पाणिघताडयौ - III. II. 55
पात्रात् -V.1.67 पाणिघ, ताडप शब्दों में पाणि तथा ताड कर्म उपपद (द्वितीयासमर्थ) पात्र प्रातिपदिक से (समर्थ है' अर्थ में रहते हन् धातु से क प्रत्यय तथा हन् धातु के टि अर्थात् घन् और यत् प्रत्यय होते हैं)।
अन् भाग का लोप एवं ह को घ निपातन किया जाता है, पात्रेसम्मितादयः -II.1.47 शिल्पी कर्ता वाच्य हो तो)।
पात्रेसम्मित आदि शब्द (भी क्षेप गम्यमान होने पर ...पाणिन्धमाः -III. ii. 37
समुदाय रूप से तत्पुरुषसमासान्त निपातन किये जाते हैं। देखें-उग्रम्पश्येरम्मद III. 1. 37
पात्रेसम्मित- अधिकतर भोजन के समय उपस्थित। पाणी-I. iv.76
पाथस्... -IV. iv. 111 (हस्ते और पाणौ शब्द (उपयमन - विवाह-विषय में देखें-पाथोनदीभ्याम् IV. iv. 111 हों तो नित्य ही उनकी कृञ् के योग में गति और निपात .. पाथस् = जल, वायु, आहार। संज्ञा होती है)।
पाथोनदीभ्याम् - IV. iv. 111 पाण्डुकम्बलात् - IV. 1. 10
(सप्तमीसमर्थ) पाथस् और नदी प्रातिपदिकों से (वेद(तृतीयासमर्थ) पाण्डुकम्बल प्रातिपदिक से (ढका हुआ
विषय में ड्यण् प्रत्यय होता है)। जो रथ' अर्थ में इनि प्रत्यय होता है।
पाद.. - VI. II. 197
देखें-पाहन VI. 1. 197 पाण्युपतापयो: - VII. I. 11
....पाद...-V.1.34 (भुज तथा न्युब्ज शब्द क्रमशः) हाथ और उपताप अर्थ देखें-पणपादमाष० V.1.34 में निपातन किये जाते है)।
पाद... -V.iv.1 उपताप = गर्मी, आंच,पीड़ा।
देखें-पादशतस्य Viv.1 पाते -VI. II. 70
पाद... -V.iv.25 (श्येन तथा तिल शब्द को) पात शब्द के उत्तरपट रहते देखें-पादायोभ्याम् V. v. 25 (तथा य प्रत्यय के परे रहते मुम् आगम होता है। पादः-IV.1.8 पातौ - VIII. III. 52
पादन्त प्रातिपदिक से (स्त्रीलिङ्ग में विकल्प से डीप पा धातु के प्रयोग परे हों तो (भी पञ्चमी के विसर्जनीय
प्रत्यय होता है)। को बहुल करके सकार आदेश होता है. वेद-विषय में)। पादः -VI. iv. 130 ...पात्र... - VIII. 11.46
(भसज्ञक) पादशब्दान्त अङ्गको (पत् आदेश हो जाता देखें-कृकमि० VIII. iii. 46
...पादपात् -IV. iii. 118 ...पात्रम् -V. 1.7
देखें-शुद्राप्रमरवटर V.III. 118 देखें- पथ्यंगov.i1.7
पादपूरणम् -VI.1. 130 पात्रात् -V.i. 45
(स' के सु का लोप हो जाता है, अच् परे रहते; यदि (षष्ठीसमर्थ) पात्र प्रातिपदिक से (ष्ठन् प्रत्यय होता है,
लोप होने पर) पाद की पूर्ति हो रही हो तो। 'खेत' अर्थ अभिधेय होने पर)।
पादपूरणे - VIII. 1.7 ...पात्रात् -V.1.52
(प्र,सम्, उप तथा उत् उपसगों को पाद की पूर्ति करनी देखें - आढकाचितपात्रात् V. 1. 52
हो तो (द्वित्व हो जाता है)।