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पश्च
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पाणिय
पाककर्णपर्णपुल,मूल,वाल से वीलिङ्ग में
पश्च-V.iii.33
पश्च (तथा पश्चा शब्द भी वेद-विषय में)निपातन किये जाते हैं; (अस्ताति के अर्थ में)। पश्चा -v. iii. 33
(पश्च तथा) पश्चा शब्द (भी वेदविषय में) निपातन किये जाते हैं, (अस्ताति के अर्थ में)। ...पश्चात्... -II. 1.6
देखें-विभक्तिसमीपसमृद्धि II.1.6 ...पश्चात्... - IV. iii. 98 .
देखें-दक्षिणापश्चात् IV..ii. 98 पश्चात् -v.ii. 32
पश्चात् शब्द का निपातन किया जाता है, (अस्ताति के अर्थ में)। ...पश्य.. - VII. iii. 78
देखें-पिबजिन VII. 1.78 ...पश्य... - VIII. I. 39
देखें-तुपश्यपश्यताहै: VIII.1.39 ....पश्यत... - VIII. 1.39
देखें -तुपश्यपश्यताहै: VIII. 1.39 . पश्यति-IV. iv. 46
(द्वितीयासमर्थ ललाट तथा कुक्कुटी प्रातिपदिकों से संज्ञा गम्यमान होने पर) 'देखता है'.- अर्थ में (ठक् प्रत्यय होता है)। पश्याङ्कः - VII. 1. 28
(न देखना' अर्थ में वर्तमान) ज्ञात अर्थ वाले धातुओं के योग में (भी युष्मद्, अस्मद् शब्दों को पूर्वसूत्रों द्वारा प्राप्त वाम,नौ आदि आदेश नहीं होते)। ...परवड़यो: - V. iii. 51
देखें-मानपश्वङ्गयो: V. iii. 51 पा... -I. iii. 89
देखें-पादम्याङ्यमाझ्यस I. iii. 89 ...पा..-III. iv.77
देखें-गातिस्थाधुपा० II. iv.77 पा.. - III. 1. 137 देखें - पात्रामा० III. I. 137
...पा... -III. iii.95
देखें-स्थागापापच: III. iii. 95 ...पा.. - VI. iv.66
देखें-घुमास्था. VI. iv.66 पा.. - VII. iii. 78
देखें-पाघ्रामा० VII. iii. 78 पाक... -VI. 1.64
देखें-पाककर्णपर्ण IV.i.64 पाक... - V. ii. 24
देखें - पाकमूले V. ii. 24 पाककर्णपर्णपुष्पफलमूलवालोत्तरपदात् - IV. 1.64
पाक,कर्ण,पर्ण,पुष्प, फल,मल.वाल-ये शब्द यदि उत्तरपद में हों तो (जातिवाची) प्रातिपदिक से (स्त्रीलिङ्ग में ङीष् प्रत्यय होता है)। पाकमूले - Vii. 24
(षष्ठीसमर्थ पील्वादि तथा कर्णादि प्रातिपदिकों से यथासङ्ख्य करके) 'पाक' तथा 'मूल' अर्थ अभिधेय हो तो (कुणप् तथा जाहच प्रत्यय होते है)। पाके-V.iv.69
पकाना' विषय हो तो (शूल प्रातिपदिक से कृञ् के योग में डाच प्रत्यय होता है)। पाके - VI.i. 27
पाक अभिधेय होने पर (शतम शब्द का निपातन किया जाता है)। पानाध्यादृशः - III. 1. 137
पा.घा. ध्मा, धेट, दृशिर - इन धातुओं से (श प्रत्यय होता है)। पानाध्यास्थाम्नादाण्दृश्यर्तिसर्तिशदसदाम् - VII. il.
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पा,घ्रा,ध्मा,ष्ठा,म्ना,दाण,दृशिर,ऋ,स,शद्लू,षद्लइन अङ्गों को शित् प्रत्यय परे रहते यथासंख्य करके पिब, जिघ्र, धम, तिष्ठ,मन, यच्छ, पश्य,ऋच्छ, धौ शीय,सीद आदेश होते है)। पाणिघ -III. ii. 55 देखें-पाणिघताडयौ III. ii. 55