________________
पर्यनुपूर्वात्
पर्यनुपूर्वात् - IV. 1. 61
परि, अनुपूर्वक (अव्ययीभावसंज्ञक ग्रामशब्दान्त सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक) से (भव' अर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है) ।
पर्यभिभ्याम् - VIII. 9
परि तथा अभि शब्दों से (भी तसिल् प्रत्यय होता है)। पर्यवस्थातरि - Vii. 89
(वेद-विषय में परिपन्थिन्, परिपरिन् शब्दों का निपातन किया जाता है) पर्यवस्थाता मार्ग का अवरोधक वाच्य हो तो ।
=
पर्याप्तिवचनेषु III. iv. 77
(सामर्थ्य अर्थवाले) परिपूर्णतावाची शब्दों के उपपद रहते (धातु से तुमन् प्रत्यय होता है)।
पर्याय... - III. III. 111
देखें - पर्यायार्हणोंत्पत्तिषु III. III. 111 पर्यायार्हणोत्पत्तिषु - III. 111
=
=
पर्याय बारी, अर्ह सामर्थ्य, ऋण और उत्पत्ति अर्थों में (धातु से स्त्रीलिङ्ग भाव में विकल्प से ण्युच् प्रत्यय होता है)।
quia-III. iii. 39
(वि और उप पूर्वक शीङ् धातु से ) पर्याय = बारी गम्यमान होने पर (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)।
पर्यायेण - VII. iii. 31
(न से उत्तर यथायथ तथा यथापुर अङ्गों के पूर्वपद एवं उत्तरपद के अचों में आदि अच् को) पर्याय = बारी-बारी (वृद्धि होती है; जित् णित् तथा कित् तद्धित परे रहते) ।
पर्वत... - IV. 1. 103
..
356
देखें- द्रोणपर्वत०] IV. 1. 103
पर्वतात् IV. II. 142
पर्वत शब्द से (भी शैषिक छ प्रत्यय होता है)। पर्वत - IV. 1. 91
(प्रथमासमर्थ) पर्वतवाची प्रातिपदिकों से वह इनका अभिजन' इस अर्थ में छ प्रत्यय होता है, आयुधजीवियों को कहने के लिए)।
-
पर्वत
पर्वत अभिधेय हो तो (बहुव्रीहि समास में त्रिककुत्
शब्द निपातन किया जाता है) ।
-
V. iv. 147
... पर्वादि... - V. iii. 117
देखें - पर्वादियौधेo Vill. 117
... पलद... - IV. ii. 141
देखें - कन्थापलद० IV. ii. 141 पलद छत के उपयोग में। ...पलादि... - IV. 1. 109
देखें - प्रस्थोत्तरपदपलद्यादि० IV. II. 109
पललू... - VI. ii. 128
देखें पललसूप VI. II. 128
पलल = एक प्रकार की स्थलीय वनस्पति ।
पशौ
-
पललसूपशाकम् VI. II. 128
(मिश्रवाची तत्पुरुष समास में) पलल, सूप, शाक इन उत्तरपद शब्दों को (आद्युदात्त होता है)। पलाशादिभ्यः - IV. iii. 138
(षष्ठीसमर्थ) पलाशादि प्रातिपदिकों से (विकल्प से विकार, अवयव अर्थों में अञ् प्रत्यय होता है, पक्ष में औत्सर्गिक अण् होता है)।
.....पलित... - II. 1. 66
देखें - खलतिपलितवलिन० II. 1. 66
... पलित... - III. 11. 56
देखें - आयसुभग० III. 1. 56
... पशाम् - VII. iv. 86
देखें - जपजभ० VII. iv. 86
.. पशु... - II. iv. 12
देखें - वृक्षमृगतृणo II iv. 12
पशुषु - III. iii. 69
(सम्, उत् पूर्वक अज् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में, समुदाय से) पशुविषय प्रतीत हो (तो अप् प्रत्यय होता है।
पशौ
III. ii. 25
पशु कर्ता अभिधेय होने पर (दृति और नाथ कर्म उपपद रहते हृ धातु से इन् प्रत्यय होता है) ।