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अतः
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अतसुच
अतः - VI. iv. 120
अत:- VII. iv.85 (लिट् परे रहते अङ्ग के असहाय हलों के बीच में वर्त- (अनुनासिकान्त अङ्ग के) अकारान्त (अभ्यास) को (नुक मान) जो अकार, उसको (एकारादेश तथा अभ्यास का आगम होता है,यङ् तथा यङ्लुक परे रहते)। लोप हो जाता है; कित, ङित् लिट् परे रहते)। . अत: -VII. iv. 88.. अतः - VII. 1.9
(चर तथा फल धातुओं के अभ्यास से परे) अकार के
स्थान में (उकारादेश होता है,यङ् तथा यङ्लुक परे रहते)। अकारान्त अङ्ग से उत्तर (भिस् के स्थान में ऐस् आदेश
अत:- VIII. iii. 46 होता है)।
अकार से उत्तर (समास में जो अनुत्तरपदस्थ अनव्यय अत: - VII. I. 24
का विसर्जनीय,उसको नित्य ही सकारादेश होता है; कृ, अकारान्त (नपुंसक लिङ्ग वाले) अङ्ग से उत्तर (सु और
कमि, कंस, कुम्भ, पात्र, कुशा तथा कर्णी शब्दों के परे अम् के स्थान में अम् आदेश होता है)।
रहते)। अतः -VII. 1.2
अतदर्थे- VI. ii. 156 (अकार के समीप वाले रेफान्त तथा लकारान्त अङ्ग के) (गणप्रतिषेध अर्थ में जो नज, उससे उत्तर) अतदर्थ = अकार के स्थान में (ही वृद्धि होती है,परस्मैपदपरक सिच् 'उसके लिये यह' इस अर्थ में विहित जो न हों,ऐसे (जो परे हो तो)।
य तथा यत् तद्धित प्रत्यय, तदन्त उत्तरपद को भी अन्त अतः -VII. 1.7
उदात्त होता है)। (हलादि अङ्ग के लघु) अकार को (परस्मैपदपरक इडादि अतदर्थे -VI. iii. 52 सिच् परे रहते विकल्प से वृद्धि नहीं होती)।
अतदर्थ = उसके लिये यह' इस अर्थ में विहित जो न अतः -VII. ii. 80
हो,ऐसे (यत् प्रत्यय) के परे रहते (पाद शब्द को पद् आदेश अकारान्त अङ्ग से उत्तर (सार्वधातक या के स्थान में इय होता है)। , · आदेश होता है)। .
अतद्धितलुकि-V. iv.92 अतः -VII. ii. 116
(गो शब्द अन्त वाले तत्पुरुष समास से समासान्त टच . (अङ्गकी उपधा के) अकार के स्थान में विद्धि हो प्रत्यय होता है,यदि वह तत्पुरुष ) तद्धितलुक्-विषयक न " जित् या णित् प्रत्यय परे रहते)।
हो, अर्थात् तद्धितप्रत्यय का लुक न हुआ हो तो । अतः -VII. iii. 27 ।
अतद्धिते-I.ii. 8 - (अर्ध शब्द से परे परिमाणवाची शब्द के अचों में आदि)
(उपदेश में) तद्धितवर्जित प्रत्यय (के आदि) में वर्तमान अकार को (वृद्धि नहीं होती, पूर्वपद को तो विकल्प से । (लकार,शकार और कवर्ग की इत्सजा होती है)। होती है जित्, णित् तथा कित् तद्धित परे रहते)।
अतद्धिते-VI. iv. 133 अत: -VII. iii. 44
(भसज्जक श्वन, युवन, मघवन् अङ्गों को) तद्धितभिन्न (प्रत्यय में स्थित ककार से पूर्व के) अकार के स्थान में प्रत्ययों के परे रहते (सम्प्रसारण होता है)। (इकारादेश होता है,आप परे रहते,यदि वह आप सुप से अतरुणेषु-I. ii. 73 उत्तर न हो तो)।
तरुणों से रहित (ग्रामीण पशुओं के समूह) में (स्त्री शब्द अत:- VII. iii. 101
शेष रह जाता है, पुमान् शब्द हट जाते हैं)। अकारान्त अङ्ग को (दीर्घ होता है, यज्ञादि सार्वधातुक .. अतसर्थप्रत्ययेन - II. iii. 30 प्रत्यय के परे रहते)।
अतसुच के अर्थ में विहित प्रत्ययों से बने शब्दों के अत: -VII. iv. 70
योग में (षष्ठी विभक्ति होती है)। (अभ्यास के आदि) अकार को लिट् परे रहते दीर्घ होता
अतसुच् - V. iii. 28
(दिशा. देश तथा काल अर्थों में वर्तमान सप्तम्यन्त, अतः - VII. iv.79
पञ्चम्यन्त तथा प्रथमान्त दिशावाची दक्षिण तथा उत्तर (सन परे रहते) अकारान्त (अभ्यास) को (इत्व होता है)। प्रातिपदिकों से स्वार्थ में) अतसुच प्रत्यय होता है। .