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अणौ
अणौ - I. iii. 88
अण्यन्तावस्था में (अकर्मक तथा चेतन कर्ता वाले धातु से ण्यन्तावस्था में परस्मैपद होता है) ।
....3quit - IV. ii. 28
देखें - अणौ IV. ii. 28 ....अणी - TV 71 iii. देखें- यदणौ IV. lii. 71
... अण्डात् - V. ii. 111
देखें - काण्डाण्डात् V. ii. 111
अण्यदर्थे - VI. IV. 60
यत् के अर्थ से भिन्न अर्थ में वर्तमान (निष्ठा के परे रहते क्षि अङ्गको दीर्घ हो जाता है ) । .
अत्... - L. 1. 2
देखें
आदेश 1.1.2 अत् - III. iv. 106
[लिङादेश ( उत्तमपुरुष एकवचन ) 'इट्' के स्थान में] 'अत्' आदेश होता है।
अत् - V. iii. 12
(सप्तम्यन्त किम् प्रातिपदिक से) अत् प्रत्यय होता है। अत् - VII. 1. 31
(युष्मद् अस्मद् अङ्ग से उत्तर पञ्चमी विभक्ति के भ्यस के स्थान में) अत् आदेश होता है ।
अत् - VII. 1. 85
(पथिन्, मथिन् तथा ऋभुक्षिन् अङ्गों के इकार के स्थान में) अकारादेश होता है, (सर्वनामस्थान परे रहते ) । अत् - VII. 1. 86
(अभ्यस्त अङ्ग से उत्तर प्रत्यय के अवयव झकार के स्थान में) अत् आदेश हो जाता है।
अत् - VII. ii. 118
(इकारान्त उकारान्त अङ्ग से उत्तर ङि को औकारादेश होता है तथा विसञ्ज्ञक को ) अकारादेश (भी) होता है।
अत् - VII. iv. 66
(ऋवर्णान्त अभ्यास को अकारादेश होता है।
18
अत् - VII. iv. 95
(स्मृ, दृ, ञित्वरा, प्रथ, प्रद, स्तृञ्, स्पश इन अङ्गों के अभ्यास को चङ्परक णि परे रहते) अकारादेश होता है।
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अतः - II. iv. 83
अदन्त (अव्ययीभाव) से उत्तर (सुप् प्रत्यय का लुक नहीं होता, अपितु पञ्चमी से भिन्न सुप् प्रत्यय के स्थान में अम् आदेश होता है)।
.... अतः
देखें
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- IV. i. 4
अजाद्यतः IV. I. 4
अतः - IV. 1. 95
(षष्ठीसमर्थ) अकारान्त प्रातिपदिक से (अपत्य मात्र को कहने में इन् प्रत्यय होता है)।
अतः
• IV. 1. 175
(स्त्रीलिङ्ग अभिधेय हो तो तद्राजसंज्ञक) अकार प्रत्यय
का भी लुक हो जाता है)।
अत:
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- V. ii. 115
अकारान्त प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ में इनि और उन प्रत्यय होते हैं)।
अत: - VI. 1. 94
(अपदान्त) अकार से उत्तर (गुणसञ्ज्ञक अ, ए, ओ के परे रहते पूर्व पर के स्थान में पररूप एकादेश होता है, संहिता के विषय में)।
अत: - VI. 1. 98
(अव्यक्त के अनुकरण का) जो अत् शब्द, उससे उत्तर (इति शब्द परे रहते पूर्व पर के स्थान में पररूप एकादेश होता है, संहिता के विषय में)
अतः
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अत:
VI. i. 109
(अप्लुत) अकार से उत्तर (अप्लुत अंकार परे रहते रु के रेफ को उकार आदेश होता है, संहिता के विषय में)।
- VI. iii. 134
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अतः
(दो अच् वाले तिङन्त के) अकार को (ऋचा विषय में दीर्घ होता है, संहिता में) ।
अतः
VI. iv. 48
अकारान्त अङ्गका (आर्धधातुक परे रहते लोप हो जाता
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है)।
अतः - VI. iv. 105
"अकारान्त अङ्ग से उत्तर (हि का लुक् हो जाता है) ।
अतः
• VI. iv. 110
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(उकारप्रत्ययान्त कृ अङ्ग के) अकार के स्थान में (ठकारादेश हो जाता है कितु या डि सार्वधातुक परे रहते) ।