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अति
अति... -V.1.22
देखें-अतिशदन्तायाः V.1.22 अति -VI. 1. 105 (पदान्त एक प्रत्याहार से उत्तर) अकार परे रहते (पर्व पर के स्थान में पूर्वरूप एकादेश होता है. संहिता के विषय
...अतिभ्यः ...-I. iil.80
देखें-अभिप्रत्यतिभ्यः I. 11.80. .. . अतिव्यथने-V.iv..61
(सपत्र तथा निष्पत्र प्रातिपदिकों से) अतिपीडन' गम्यमान हो तो (कृज् के योग में डाच प्रत्यय होता है)। अतिशदन्तायाः -V.1.22 (संख्यावाची प्रातिपदिक से तदर्हति पर्यन्त कथित अर्थों में कन् प्रत्यय होता है, यदि वह संख्यावाची प्रातिपदिक) ति शब्द अन्तवाला और शत् शब्द अन्त वाला न हो तो। अतिशायने -Vill. 55
अत्यन्त प्रकर्ष अर्थ में वर्तमान (प्रातिपदिक से तमप् और इष्ठन् प्रत्यय होते हैं)। ...अतिसर्ग...-III. iii. 163
देखें-प्रैवातिसर्ग III. iii. 163 ...अतीण..-III. I. 141
देखें-श्याव्यधा० -III. I. 141 ...अतीत... - II. 1. 23
देखें-श्रितातीतपतित० II.i. 23 ...अतीसाराभ्याम् -V.ii. 129
अति-VII. 1. 105
अत् विभक्ति के परे रहते (किम् अङ्गको क्व आदेश होता है)। . . . अति:-I. iv.94
अति शब्द (कर्मप्रवचनीय और निपात संज्ञक होता है, उल्लंघन और पूजा अर्थ में)। अतिक्रमणे-I. iv.94
अतिक्रमण = उल्लङ्घन (और पूजा) अर्थ में (अति शब्द की कर्मप्रवचनीय और निपात संज्ञा होती है)। अतिग्रह...-v.iv.46 देखें-अतिग्रहाव्यथन V. iv. 46 . अतिग्रहाव्यवनक्षेपेषु-V. iv. 46
अतिमह = अन्यों को चरित्रादि के द्वारा अतिक्रमण करके गृहीत होना, अव्यथन = चलायमान या दुःखी न होना तथा क्षेप निन्दा-इन विषयों में वर्तमान (जो तृतीया विभक्ति, तदन्त शब्द से तसि प्रत्यय होता है)। अतिङ्-II. 1. 19 . तिङ् से भिन्न (उपपद का समर्थ शब्दान्तर के साथ नित्य समास होता है और वह तत्पुरुषसंज्ञक समास होता है)। अतिङ्-III.1.93
(धातु के अधिकार में विहित) तिङ-भिन्न प्रत्ययों की (कृत्' संज्ञा होती है)। अतिः - VIII. I. 28
अतिङ् पद से उत्तर (तिवद को अनुदात्त होता है)। ...अतिवर... -III. ii. 142'
देखें-सम्पृचानुरुथा III. 1. 142 ...अतिथि..-IV. iv. 104
देखें-पथ्यतिथिवसति० IV. iv. 104 अतिथे:-V.iv. 26
अतिथि प्रातिपदिक से (उसके लिये यह' अर्थ में ज्य प्रत्यय होता है)।
अत... -VI. iv. 14
देखें-अत्वसन्तस्य VI. iv. 14. अतुला...-II. 11.72
देखें- अतुलोपमाभ्याम् II. iii. 72 अतुलोपमाभ्याम् -II. iii. 72
तुला और उपमा शब्दों को छोड़कर (तुल्यार्थक शब्दों के योग में ततीया विभक्ति विकल्प से होती है.पक्ष में षष्ठी भी)। ...अतुस्...-III. iv. 82
देखें - णलतुसुस्० III. iv. 82 ...अतृतीयास्थस्य - VI. iii. 98.
देखें-अषष्ठ्यतृतीयास्थस्य VI. iii. 98 . अतृन् -III. ii. 104
(जूष वयोहानौ' धातु से भूतकाल में) अतुन् प्रत्यय होता है। अते: -v.iv.96
अति शब्द से उत्तर (जो श्वन शब्द,तदन्त प्रातिपदिक तत्पुरुष से समासान्त टच प्रत्यय होता है)।